suman singh

Tragedy

4.8  

suman singh

Tragedy

बोखी बुआ- नारी का अस्तित्व

बोखी बुआ- नारी का अस्तित्व

2 mins
865


आज जब हम महिलाओं के त्याग और बलिदान की कहानियाँ सुनते है तो बोखी बुआ की याद आती है। बोखी बुआ एक विधवा महिला थी और पूरे गाँव की चहेती थी। गाँव में किसी के घर में छोटा -मोटा समारोह होता था तो बोखी बुआ को सबसे पहले बुलाया जाता था। उनका वास्तविक नाम तो कुछ और था लेकिन मुँह से सभी दाँत टूट जाने के कारण सभी उन्हें बोखी बुआ के नाम से जानते थे।

बोखी बुआ की शादी के कुछ ही महीनों के पश्चात ही उनके पति का देहान्त हो गया था तब से वह अपने पीहर में रह रही थी। कभी -कभी अपने ससुराल जाती थी और आठ-दस दिन रहकर वापिस आ जाती थी।

मैने बोखी बुआ को जवानी में नहीं देखा , करीब सत्तर-अस्सी वर्ष की रही होगी जब से मैने उन्हें देखा। रंग बहुत गौरा था, नैन-नक्श भी अच्छे थे। शायद अपनी जवानी में बहुत सुंदर रही होंगी बोखी बुआ।

आज जब उनकी याद आती है तो सोचने पर मजबूर हो जाती हूँ कि क्या सचमुच बोखी बुआ बहुत खुश थी अपनी जिंदगी से ? आखिर अपनी जिंदगी के इतने वर्ष कैसे बनावटी ढंग से गुजार दिए उन्होंनें।

शायद कभी तो उनका मन उदास हुआ होगा अपने पति की याद में। या कभी तो उनका मन तड़पा होगा गृहस्थी के सुख के लिए , या अपनी औलाद के लिए।

आखिर इतने कष्टों को दबाकर वो किसे खुश करना चाहती थी ? अपने आपको या अपने ससुराल के परिवार को या अपने पीहर के परिवार को शायद सभी को ही।

क्या कभी किसी का भी ध्यान बोखी बुआ पर नहीं गया होगा ? क्या किसी ने भी उनकी मन की व्यथा जानने की कोशिश की होगी ? कि उनके दिमाग में क्या चल रहा है ? क्या उन्होंनें कभी किसी सहेली या करीबी को अपनी पीड़ा सुनाई होगी ? शायद नहीं। क्योंकि यह पीड़ा केवल एक बोखी बुआ की नहीं होगी। उस समय गाँव में बहुत सी महिलाएँ ऐसी रही होंगी जिनकी किसी भी समाज के ठेकेदारों को कोई परवाह नहीं होती थी। और उनको फूटी किस्मत का नाम दे दिया जाता था।

वो असली विरांगनाएँ थी जिन्होंने अपने परिवार और समाज को खुश करने के लिए अपनी पीड़ा को कभी उजागर नहीं होने दिया। और अपने कष्टों को उन्होंने अपनी बनावटी हँसी के नीचे दबाकर अपनी पूरी जिंदगी दूसरो के नाम कर दी।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy