नारी सशक्तिकरण
नारी सशक्तिकरण
हमारे समाज में पुरुष प्रधान होना ही नारी की निम्नता को दर्शता है । पुराणो से ही पति शब्द सक्रिय है जिसका मतलब होता है '' मालिक '' । अथवा पुरुष एक स्त्री से शादी करके वह उसका मालिक बन जाता है । इस प्रथा को हम कभी समाप्त नहीं कर सकेंगें ।
सरकार ने नारी उत्थान के लिए अनेक प्रकार के आरक्षणों की झड़ी लगा रखी है । अगर महिलाओं को आरक्षण मिल रहा है पुरुषों को नहीं , तो समानता कहाँ हुई ? अर्थात महिलाओं का आरक्षण पुरुषों की नजर में अपंगता है ।
अस्पतालों , दफ्तरों ,सिनेमाघरो आदि जगहों पर महिला और पुरुष की अलग - अलग कतार बनाई जाती है । बस में सीट के लिए भी महिलाओं को आरक्षण दिया जाता है और फिर महिला को देखकर पुरुष का सीट छोड़ देने का प्रावधान भी है । इसी में महिला को कमजोर दिखा दिया जाता है अगर पुरुष खड़ा रह सकता है तो महिला क्यों नहीं खड़ी रह सकती ? वह शरीर से कमजोर नहीं 
;है , उसको मानसिकता से कमजोर बना रखा है। और महिलाओं की अलग कतार बनाकर उन्हें सम्मान नहीं दिया जाता , बल्कि उन पर दया दिखाई जाती है । और इससे महिलाओं के आत्मविश्वास में कमी आती है । इसलिए सरकार को बिना आरक्षण के महिलाओं को पुरुषों से टक्कर लेने का अवसर देना चाहिये ।
महिलाओं को भी अपनी आत्मरक्षा के लिए पुरुषों पर निरभर नहीं रहना चाहिये । उन्हें यह समझना होगा कि बहुत मेहनत का काम भी वह अकेले कर सकती है तो वह यह बहादुरी घर के बाहर क्यों नहीं दिखाती ?
माता-पिता को अपने घर में भी बेटे और बेटी के अलग - अलग नियम नहीं बनाने चाहिये कि लड़कियाँ घर के कायोॅ में हाथ बटाँती है और लड़के नहीं । लड़के बाहर दोस्तों के साथ घूम सकते है और लड़कियाँ नहीं। अगर यह भेदभाव लड़कियों के बचपन से ही दिमाग में बैठ जाता है तो वो इसे ताउम्र नहीं निकाल सकती और अपनेआप में एक लड़की होने का दंश झेलती रहती है ।