suman singh

Inspirational

4.4  

suman singh

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उत्साह

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पूनम एक चौदह साल की बच्ची थी, जिसके पिता जी करण दूबे एक खूफिया एजेंसी में कम करते थे। वे सभी सूचनाएँ पाकिस्तानी एजेंसियों को भेजते थे कि भारत में कौन से, कहाँ गोला, बारुद और हथियार बन रहे है और सेना की टुकड़ी कहाँ पर जमी हुई है। इसके बदले वे दुश्मन सरकार से मोटी कीमत वसूलते थे। इसी बात को लेकर दोनों पति-पत्नी में आए दिन बहस होती थी। पूनम भी इसी कारण बहुत दुखी रहती थी कि वह अपने पापा पर गर्व नहीं कर सकती थी। उसके दिमाग में एक ही बात चलती रहती थी कि काश ! उसके पापा भी एक देशभक्त इन्सान होते। लेकिन वह डरी सहमी सी रहती थी कुछ बोल नहीं पाती थी। एक दिन वह साहस करके अपने पापा से कहने लगी, पापा क्यों न आप अपनी गलतियों का पश्चाताप कर ले और आत्मसमर्पण कर दे। आप के काम से हम लोग (मम्मी और मैं ) खुश नहीं है। आप कभी भी पकड़े जाओगे और हम कहीं मुँह दिखाने के लायक नहीं रहेंगे। तभी करण दूबे कड़क कर बोले, इसमें कुछ भी गलत नहीं है पूनम। तुम अपनी पढ़ाई में ध्यान दो। एक साधारण सी नौकरी करके मैं तुम को क्या दे पाऊँगा ? तभी नम्रता (पत्नी) की आवाज़ आती है, हमें कुछ नहीं चाहिये करण। इन महंगे कपड़ों और गहनों में मुझे चुभन महसूस होती है । तभी टी.वी. पर चल रहे न्यूज चैनल पर एक रिपोर्ट आती है, घाटी में रात को तेज बमबारी हुई जिससे दस जवान शहीद हो गए और बीस के करीब गम्भीर अवस्था में घायल है। पूनम के शरीर में एक कंपन सी दौड़ गई और वह बिना सोचे विचारे घर से भाग गई। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे, वह तो बस उन जवानों की मदद करना चाहती थी जो बिना ग़लती के मौत के मुहँ में जा रहे थे। वह उनका दर्द महसूस करना चाहती थी। घर से भागकर वह एक कालोनी के बड़े बग़ीचे में आकर एक पेड़ के नीचे एक बेंच पर बैठ गई और आँखे बंद करके सोचने लगी और एक सपना देखने लगा जिसमें वह घायल जवानों को खाना खिला रही थी और जोरों से गोलाबारी हो रही है और पूनम फंसे हुए जवानों को भाग -भागकर गोला -बारुद पकड़ा रही है।


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