मैं हिन्दी हूँ
मैं हिन्दी हूँ


मैं हिन्दी हूँ। मैं हिन्दुस्तान की पहचान हूँ मैने सभी हिन्दुस्तानियों को अपनी गोद में खिलाया है लेकिन मुझे दु:ख होता है जब सभी मुझे छोड़कर अंग्रेजी को अधिक महत्व देते है मैं इन्हें कैसे समझाऊँ कि अंग्रेजी सिर्फ एक भाषा है यह ज्ञान नहीं है।
लोग कहते है कि हिन्दी एक गुलाब के फूल की तरह है, बोलने और समझने में तो अच्छी और आसान लगती है लेकिन जब इसकी गहराई में उतरते है तो बहुत कठिन लगती है।
वैसे तो मुझे सभी भाषाओं से उच्च स्थान प्राप्त है लेकिन मुझे लगता है यह सिर्फ कागज़ों तक ही सीमित है क्योंकि आजकल की नई पीढ़ी को हिन्दी बोलने मे
ं शर्म महसूस होती है।
कई सरकारी, गैर सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में मुझे सिर्फ एक दिन ही याद किया जाता है, १४ सितंबर को। उसे दिन मेरे जन्म दिन के तौर पर उत्सव मनाया जाता है जिसमें वाद-विवाद प्रतियोगिताएं ,निबंध -लेखन , पत्र-कहानियाँ आदि का प्रचलन है ।
मुझे अनिवार्य तो कर दिया गया, लेकिन छात्र -छात्राएं मुझ से परेशान रहते है क्योंकि सही मात्रा का प्रयोग न करने से अध्यापक गण उनके नंबर काट लेती है ।
मैं उन छात्र -छात्राओं से कहना चाहती हूँ कि अगर तुम थोड़ा सा भी ध्यान मुझ पर दोगे तो मैं तुम्हें बहुत आगे तक पहुँचाऊँगी ।