Nand Lal Mani Tripathi

Abstract

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Nand Lal Mani Tripathi

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बँटवारा

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पंडित महिमा दत्त और लाला गजपति अपने खुराफाती दिमाग से गांव में अपना सिक्का चलाने की कोशिशों में लगे रहते गांव में नई पीढ़ी का पदार्पण हो चुका था जिसके कारण पुरानी पीढ़ी के गांव के दबंग सत्ता धारीयो का सिंघासन हिलता नज़र आ रहा था, पंडित महिमा और लाला ग़ज़पति की उम्र लगभग सत्तर वर्ष हो चुकी थी, ठाकुर सतपाल को दुनिया छोड़े लगभग तीन वर्ष बीत चुके थे।पंडित महिमा ने एकदिन बड़े क्रोध से लाला ग़ज़पति से कहा लाला एक एक दिन हम लोग शमशान के करीब बढ़ते जा रहे हैं और ऐसा न हो कि गांव में हम लोग जीते जी अपना अस्तित्व खो दें , लाला ग़ज़पति ने बड़े धैर्य से कहा पंडित ध्यान से सुनो "मैंने तुमसे कहा था कि गांव की नई पीढ़ी बहुत तेज समझदार और प्रतिक्रिया वादी है अतः इस पीढ़ी की ताकत सोच को भारत की आजादी में मिली विरासत के सिद्धान्त पर बांट देते हैं जिसके लिये पहले से एक कार्य योजना तैयार है, पंडित महिमा दत्त बोले "लाला अब विलम्ब किस बात का शीघ्रता शीघ्र हम अपनी योजना को धार देते हुए अंजाम तक पहुंचाते हैं," लाला बोले "पंडित अब तोहरे मन में लड्डू फूटी रहा बा त सुनो हमारे पास सबसे बड़ा हथियार शोमारू प्रधान है उसका उपयोग कर हम गांव को ही देश की आज़ादी के विरासत में मिले ले राजनीतिक हथियार से गांव को सांस्कृतिक विचार व्यवहार के स्तर पर बांट देते हैं ,

पंडित ने पूछा "लाला उ कैसे?"लाला ने बड़े इत्मीनान से कहा कि "हप्ता भर बाद बसंत पंचमी है पंडित महिमा ने आश्चर्य से पूछा बसंत पंचमी से का होत है."

लाला ग़ज़पति ने कहा ठिके कहा जाता है पंडित लोग खाये और कथा वार्ता के अलावा कुछ नही जानते बकलोल ,पंडित बसंत पंचमी के हर साल पूरा गांव मिलके फाग गावत है और वोही दिने होली के संवत रखात है, आब पण्डित पंडिताई छोड़ जल्दी से जा सोमारू प्रधान से बोल की काल मतलब बसंत पंचमी से पांच दिन पहिले पूरे गांव के बैठक सभा बुलावे,"

पंडित महिमा लाला ग़ज़पति से राम रहारी करके सोमारू प्रधान के पास गए शोमारू ने पंडित महिमा को देखते ही बड़े आदर भाव से आवो भगत करते हए पूछा "पंडित जी आज एकाएक बहुत दिन बात का बात है सब कुशल त है आप हमें बोलवा लिए होते,"

पंडित महिमा चतुर राजनीतिज्ञ की कुटिलता पूर्ण भाषा मे जबाब दिया "अरे शोमारू तू ठहरे गाँव के प्रधान अगर हम ही लोग तोहार मतलब गांव के प्रधान कर इज़्ज़त ना कईल जाय तो ससुरा पूरे गांव वाले का करीहे छोड़ ई सब बात अब काम के बात सुन, वसंत पंचमी में पाँच दिन रही गइल बा काल गांव के समूचा लोगन के सभा बोलाव ,"

शोमारू सकते में आई गए बोले "पंडित जी सब ठीक ठाक त ह कौनो गड़बड़ त ना हो गइल या कौनो खास बात," पण्डित महिमा अबकी बार आंख की तरेर के बोलिन "शोमारू तोहे अगली बार प्रधान बने के बा कि नाही जेतना कहा जाय वोतने कर ज्यादा मीन मेख जिन निकाले,"

शोमारू कातर अस काँपत बोले "मालिक हमे अगली बार प्रधान बने के बा कि नाही ई त हम नाही जनतीं मगर ई बात हमरे संमझ में नाही आवत बा कि सगरे गांव के बैठक काहे खातिर खैर आप कहत हाईन त काल गांव के सगरे मनई जटीहन,"

पंडित महिमा बोले "आज सांझी के डुग्गी पिटवाई द,"

फिर विहने दोबारा डुग डुग्गी बजवाई दिह ताकि गांव के बच्चा बूढ़ा जवान नौजवान सभे ये सभा मे हाजिर होवे एतना कहिके पंडित महिमा उहा से चल पड़े सीधे लाला ग़ज़पति के पास पहुंचे लाला गजपति को देखते ही बोले आव पंडित का भईल सोमारुआ मीटिंग खातिर राजी भईल पंडित बोले का बताई लाला सोमारुआ ससुरा मीटिंग खातिर बहुते नाकुर नुकुर करत रहा

मगर हमहू सारे प्रधान के औकात बताई दिए लाला काल मीटिंग होई गांव के सब मनई जुटीहै मगर लाला काल तू कौन खेला करे वाला हव लाला बोले बकलोल पंडित काल सभा मे रहब न खाली हमरे हा में हा मिलाए,

पंडित अपने घर चले गए ।ईधर शोमारू प्रधान ने गांव में डुग डुग्गी पिटवाना शुरू कर दिया कि गांव के सभी बच्चे बूढ़े जवान नौजवान ठाकुर सतपाल जी के स्मारक पर ठीक बारह बजे इकठ्ठा हो डुग डुग्गी सुनते ही गांव में चर्चा शुरू हो गई कि शोमारू त प्रधान की नाव पर काठ के उल्लू हाईन मीटिंग सभा के विचार त इंकर होही ना सकत फिर का बात है कि लोग घूम फिरके पंडित महिमा और लाला ग़ज़पति के साजिस की सभा मान रहे थे चुकी शोमारू सीधा साधा गवार किस्म का इंसान था जिसके कारण उसके प्रति गांव वालों की सद्भावना थी गांव वालों ने निश्चय किया कि सभी गांव बासी मीटिंग में शामिल होंगे और कौनो खुराफात पंडित महिमा और लाला ग़ज़पति किहेन त अबकी बार उनके उनकी औकात में मज़ा चखावा जाई।

 दूसरे दिन ठीक बारह बजे से ठाकुर सतपाल सिंह के स्मारक के पास गांव के हर उम्र के लोग इकट्ठा होंना शुरू हो गए आपस मे खुसुर फुसुर करते एक बजते बजते गांव के सभी बूढ़े बड़े बच्चे नौजवान जवान ठाकुर सतपाल के स्मारक के पास इकट्ठा हो गए पंडित महिमा और लाला ग़ज़पति शोमारू प्रधान के साथ ठाकुर ग़ज़पति के स्मारक के पास एकत्र गांव वालों के बीच पहुँच गए।सर्व प्रथम शोमारू प्रधान ने अपने दोनों हाथ जोड़कर गांव वालों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते बोला आप सब लोगन क आभार आज कौनो खास बात पर चर्चा खातिर लाला गजपति और पंडित महिमा आइल हवन सारे गांव वाले एक बार एक स्वर में विरोध करते खड़े हो गए और सभा से जाने लगे फिर शोमारू ने हाथ जोड़के विनती कर गांव वालों से निवेदन किया कि आप लोग कम से कम पंडित महिमा और लाला ग़ज़पति की बात सुन ले ओके बाद जउन फैसला करके करे ।गांव वालों के मन मे शोमारू की

बुर्बकाही और सिधाई पर दया भाव था अतः सभी पुनः बैठ गए तब शोमारू ने कहा पंडित जी अब आपन बात कही पंडित जी लाला ग़ज़पति की तरफ इशारा करते हुये बोले लाला जी अब सभा मे अपनी बात गांव की तरक्की के नज़रिया के साथ रखिये।लाला ग़ज़पति खड़े हुये और बोलना शुरू किया प्यारे ग्राम वासियों वैल्लोर गांव एक ऐसा गांव है जिसमे हर जाति धर्म के लोग रहते है और प्यार परिवार सम्बन्धो में कभी कोई कमी नही आई 

मगर इसमें कुछ ही लोग गांव की तरक्की और राज नीति में सक्रिय हो पाए बाकी गांव के लोग पिछलग्गू होकर रह गए हम चाहते है कि गांव के हर टोले से नेतृत्व उभरे इसके लिये गांव के टोले चम टोली ,अहिरान ,मिया टोली,पण्डितान,बिनटोली,केवटाना, भर टोली ,गोड़ टोला ,लोहराना ,कोहार टोली कुर्मी कोइराला ,नाई टोला, ठस्कुराना,लाला टोला धोबियान कुल मिलाकर चैदह टोलन क ई विल्लोर गांव ह हर टोला म करीब दस पंद्रह बीस ज्यादे से ज्यादे पच्चीस घर है हम लोगन का विचार है कि ई बारी वसंत पंचमी के फाग हर टोला पर होई पूरा गांव सबहर ना होई गांव वाले फिर क्रोध से आग बबूला हो गए मगर लाला ग़ज़पति ने बड़ी चतुराई से नौजवानों के पाले में बात फेंकी बोले ऐसे ई होई हर टोला के जवान नौजवान अपनी विरादरी से मिली जुली और अपन सुख दुख खातिर चरचा करीहे लडीहन सरकार से शासन से और तरक्की के रास्ता खुली कचहरी तहसील जगहे जगहे जाईहन भटक खुले और हर टोलन विरादरी से जवान नौजवान तैयार होईहन केहू प्रधान केहू पंचायत केहू जिला पंचायत में जाई ए तरह गांव में जब हर विरादरी अपने हक की खातिर जागरूक होई त समूचा गांव में राजनीतिक चेतना जागी और गांव आगे भागी एक बात और सब टोलन के लोग आपन पुस्तैनी धंधा के साथ बाजार में जाई अहिरान दूध बेंचे कुर्मी कोइरई साग सब्जी नाई सैलून खोले कोहार बर्तन के दुकान बनिया विशाता 

मिर्च मशाला कपड़ा लत्ता चमार आपन काम करे मियां लोग अंडा गोश्त क दुकान और तांगा चलावे केवटाना मछली लोहार हसिया कुल्हाड़ी खुरपा खुरपी निहाई चलावे धोबी कपड़ा के प्रेस धुलाई के काम करे और बिन कोहार चमार और लोग गांव के बारी में देशी दारू बनावे बेचे जैसे जवरा पर निर्भरता खत्म होई ए खातिर अबकी वसंत पंचमी पर हर टोलन पर मृदंग के साथ फाग होई और एक बात ध्यान दिह जा एक दूसरे से आगे निकले के होड़ होएक चाही मतलब स्वस्थ प्रतिस्पर्धा बसंत पर हर टोलन पर फाग होई मगर सब टोलन के संबत एक जगह रखाई और जलावल जाई और फिर फगुआ अपने अपने टोलन से पूरा गांव में होई अबकी बार लाला ग़ज़पति की बात पर सिर्फ बुजुर्गों ने विरोध किया जिसे नौजवानों ने यह कह कर चुप करा दिया कि लाला ग़ज़पति सही कह रहे है एक बार फिर लाला ग़ज़पति और पंडित महिमा ने सीधे साधे शोमारू के कंधे पर बंदूख रखकर भोले भाले गांव वालों को अपने कुटिल चाल की जाल में फंसा दिया।सभा समाप्त हुई और सब गांव वाले अपने अपने घर चले गए तब पंडित ने लाला से सवाल किया कि लाला ई बताओ कि टोलन की बात त हमारे समझ मे आई मगर जाती के पुश्तेनी धंधा गांव के बाहर बाज़ार में भेजे के पीछे का मकसद लाला बोले बकलोल पंडित गांव में सब एक दूसरे के अपनी पुश्तेनी कारोबार से एक दूसरे के सहयोग करतन और वोकरे बदले जवरा अनाज या खेत पवतन उहो कौनो साल उपज ठीक भईल त मिल जाता है ना त बिना जवरों के एक दूसरे के मतलब कारे आवत है ऐसे पूरे गांव में भावनाओं की एकता है जब सब बाज़ारे जहियँ त रोज रोज नकद पैसा पाएहन तब जवरा के प्रथा समाप्त होई सब पैसा नगद चहियँ गांव के एकात्म स्वरूप खत्म होई एक बात दूसर बात ई की जब गांव के बाज़ार में

पैसा मिली त बाहर दूर देश भी जायके बारे मे होड़ मची और जहियन जैसे गांव से कमाय जब नौजवान बाहर जइहैं तब उहा लतियावल जेहन तब इन्हें आवे पर हमार कदर पता चली तीसर बात जब गांव के लोग गांव से बाहर हाट बाजार जइहैं त राजनीति लाभ हानि सोचिहे जैसे जे गांव में रही

ऊ खुराफात अपने लाभ की खातिर करि आपस मे लड़ी तबे न हम जईसन के सिक्का जमी पंडित बोले वाह लाला गजपति मान गए असली लाला की खोपड़ी लाला ग़ज़पति गर्व से बोले पंडित आज पूरे गांव को हमने अफीम का नशा पिला दिया है देखिह ठाकुर सतपाल सिंह के पास जाए से पहिले गांव कईसन होई जाई केहू से केहू मतलब ना रही जाई सब अपनी अपनी टोलन के नेता बनिजाई एक टोला दूसरे टोला से लड़त मरत रही जाई वार्तालाप करते पंडित और लाला अपने अपने घर चले गए । लाला ग़ज़पति की मंशा रंग लाई गांव की युवा पीढ़ी गांव के बाज़ार से क्या जुड़ी राजनीति के देश विदेश के दांव पेंच के प्रति सजग जागरूक हो गयी अब सभी ग्रामवासी अपनी उपज हुनर बाज़ार में बेचते और गांव वालों की एक दूसरे की जरूरत पर व्यावसायिक गणना करते और हानि लाभ के आधार पर करते धीरे धीरे गांव का भोला भाला चरित्र समाप्त होने लगा स्वार्थ और आर्थिक लाभ हानि के आधार एक दूसरे के संबंधों और टोले टोले के संबंधों का बनना विगड़ना शुरू हो गया प्रतिदिन गांव का हर बासिन्दा अपने हुनर उपज से जो कमाता उसका अधिकांश हिस्सा शाम को दारू पीकर खत्म कर देता क्योंकि गांव के कृषि उत्पादन के साथ दारू भी एक उपज बन चूकि थी जैसाकी दारू के लत में होता है गांव के अधिकांश घरों में नियमित मारपीट कलह तो होती थी गाहे बेगाहे नशे के गुरुर में टोलो में दो दो हाथ हो जात्ते कुल मिलाकर पूरे विल्लोर गांव का बातावरण चालाक होशियार स्वार्थी अर्थ प्रधान बन चुका था परिणाम स्वरूप गांव में पुराने पीढ़ी का भोला भाला ग्राम वासी गांव के विषाक्त वातावरण से पलायन करता हुआ देश के विभिन्न शहरों की तरफ भागने लगा गांव विशुद्ध राजीतिक अखाड़ा बन चुका था अब क्या था पंडित महिमा और लाला ग़ज़पति के द्वारा गांव वालों को पिलाई गयी मीठी जहर धीरे धीरे असर करने लगी थी अब गांव सिर्फ पंडित महिमा और लाला ग़ज़पति जैसे लोंगो के लिये मुफीद रह चुका था।

अब गांव में किसी पर्व के अवसर पर लोग सिर्फ अपने टोले तक ही सीमित रहते सारे गांव के लोग अपने अपने टोलो में बैठने के बाद गांव की नई पीढ़ी दूसरे टोले के व्यक्ति को पहचान नही पाते क्योकि गांव की संपूर्णता बिखर चुकी थी गांव में कुटिलता की संस्कृति ने जन्म ले लिया था वास्तव मे भारत की आजादी से मिले दो विरासत बटवारा और बदलाव सम्पूर्ण विल्लोर गांव ने अंगीकार कर लिया था।।



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