Nand Lal Mani Tripathi pitamber

Romance Fantasy

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Nand Lal Mani Tripathi pitamber

Romance Fantasy

अनुराग

अनुराग

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 कोल समुदाय मूलरूप से आदिवासी जनजाति है रहन सहन तीज त्योहार अमूमन भारत के अन्य समुदायों कि तरह ही होते है रहन सहन भी कुछ विशिष्ट पहचान के साथ मिलता जुलता ही होता है।


कोल जन जाती को कहीं आदिवासी जनजाती तो कही अनुसूचित जाती का दर्जा प्राप्त है तीज त्योहारो में होली, दिवाली, संक्रांति ,आखा तीज, दिवासा रक्षाबन्धन, नागपंचमी आदि है कोल जनजाती का मुख्य कार्य कृषि एव वन उपज ही है ।


कोल जन जाती के लोग अपनी बस्तियां बना कर रहते है मकान में कोई खिड़की नहीं होती मिट्टी बांस फुश के संयोग से घर बनाते है कोल जन जाती के लोग निर्धनता के कारण वस्त्रों का प्रयोग कम करते है ।


पुरुष धोती कमीज एव सर पर विभिन्न प्रकार के रंगों के साफे का प्रयोग करते है गाय बैल बकरियां आदि पालते है ।


कोल जन जाती का रहन सहन बहुत सादा दैनिक पहनने के अलावा घर मे बिछाने के लिए मोटी चादर एव कम्बल होती है खाना बनाने के लिए मिट्टी का चूल्हा एल्युमीनियम मिट्टी लोहे के बर्तन अनाज पीसने का पत्थर का जाता अनाज रखने के लिए मिट्टी कि कूठिया आदि कोल जन जाती का मुख भोजन मकई ,ज्वार, बाजरा, गेंहू ,कोदो ,धान का भात, चना, उड़द, तुअर मौसमी घर कि बाड़ी में उगाई सब्जियां एवम मांस मछली का बहुत प्रचलन है। 


कोल जन जातियो का निवास एव बस्तियां वन प्रदेशो के आस पास एव घने जंगलों के प्रदेश में जंगलों के किनारे किनारे है अक्सर कोल आवंटन आदिवासी जंगलों में अपने पशुओं को चराने या जंगल से लकड़ियाँ शहद एव अन्य वन उपज जैसे जड़ी बूटियां जो उपयोगी होते है के लिए घने जंगलों में जाते है और उंसे बेचते है जो उनके आय के प्रमुख श्रोतों में एक है ।


तीखा और जुझारू कोल जन जातीय समुदाय से ही सम्बंधित थे कोल जनजाति में लड़के लडकिया महिलाएं सभी अपनी क्षमता के अनुसार कार्य करते एव घर परिवार में अपना सहयोग देते सौभाग्य लकड़ियां बीनकर लाती और घरेलू उपयोग से अधिक लकड़ियों को बेचने बाज़ार में बापू जुझारू के साथ जाती जुझारू भी शहद जंगली जड़ी बूटियां आदि बाज़ार में लेकर जाते कभी अच्छा पैसा मिल जाता तो कभी कुछ भी नहीं मिलता लेकिन सौभाग्य कि लकड़ियां हर बाज़ार को बिकती कभी ऐसा नहीं होता कि उसकी लकड़ियाँ बापू कि जड़ी बूटी और शहद कि तरह ना बिके लकड़ियां बेचने से जो पैसा मिलता उसे सौभाग्या अपने बापू को दे देती जुझारू बिटिया के लिये जो उसे पसंद होता खरीद लेते ऐसे ही जुझारू का परिवार चल रहा था।


शेरू के आने से परिवार में एक सदस्य कि संख्या बढ़ गयी थी और खुशियां भी शेरू आदिवासी बस्तियों के बच्चों के साथ ऐसे खेलता जैसे कोई इंसानों का सबसे निकटवर्ती मित्र वही एव उसके वंशज हो बस्ती के बच्चे जो भी शेरू के मन पसंद व्यंजन बनता घरों में लाकर खिलाते घुमाते खेलते खिलाते शेरू था तो छोटा बच्चा ही लेकिन था तो शेर का ही बच्चा जिसके कारण जंगली जानवरों के आतंक बस्तियों में समाप्त हो गए थे शेरू दिन रात पूरी बस्तियों में घूमता रहता इसी तरह दिन बीतते जा रहे थे ।


तीखा एवं जुझारू के जीवन मे कोई परेशानी नहीं थी जीवन परिवार वन देवता कि कृपा आशीर्वाद से बहुत अच्छा एव खुशहाल चल रहा था सौभाग्य बापू के संग अपनी जंगल से लाई लकड़ियाँ बेचने सप्ताह में दो दिन मंगलवार एव शनिवार अवश्य जाती बाज़ार ।


कोसो दूर गांवों से लोग अपनी जरूरतों के सामान खरीदने साप्ताहिक बाजार में आते रहते किरिन डुबान होते ही जुझारू बिटिया सौभाग्य के साथ घर वापस आ जाते चाहे बाजार में कुछो बिके या नाही ।


सौभाग्य कि आयु लगभग बारह तेरह वर्ष थी आकर्षक तीखा नाक नक्स सुडौल गोरी चिट्टी देखने पर कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था कि वह आदिवासी समाज की लड़की होगी क्योकि अक्सर आदिवासी समाज के विषय मे जो धारणा आम जन समुदाय है कि आदिवासी समाज कि बनावट आदि मानव से मिलती जुलती है दक्षिणी अफ्रीका के मैड्रिल का रंग एव ठोस ताकतवर शरीर खूबसूरती कि कल्पना भी आदिवासी समाज के परिपेक्ष्य में करना मात्र कल्पना ही है लेकिन यह अतिश्योक्ति नहीं होगा की मैले कुचैले आदिवासी पोशाक में सौभाग्य ऐसे लगती थी जैसे कोई आमस्या के चादर में लिपटी पूर्णिमा कि चांद जिसके चाँदनी कि किरणे आमवस्या के चादरों से बाहर निकल कर एक अजीब सुंदर क्या सुदरतम कल्पना के सत्यार्थ को दृष्टिगत कर रही थी ।


चिन्मय ने जब से सौभग्या को देखा वह मर मिटा चिन्मय कक्षा आठ में बाज़ार के निकट के ही स्कूल में पढ़ता था।


 मंगलवार का दिन था स्कूल के प्राचार्य कि माता जी का देहावसान हो गया और दोपहर इंटरवल के बाद स्कूल बंद कर दिया गया साथ ही साथ अगले दिन पूरे दिवस के लिये अवकाश घोषित कर दिया गया।


चिन्मय ने सोचा कल तो स्कूल आना नहीं है अतः बाज़ार घूमते हुए चलते है वह बाज़ार घूमने लगा घूमते घूमते उसकी नज़र बाज़ार में सड़क के किनारे बैठे बाप बेटी पर पड़ी जो जंगली जड़ी बूटी शहद आदि एव लकड़ियाँ बेच रहे थे जुझारू सुगा के दो तीन बच्चे भी लेकर आये थे बाज़ार में बेचने के लिए ।


चिन्मय सौभाग्य को देखा तो देखता ही रह गया वह यह सोचने लगा कि आखिर किस बहाने से जाए वह बाप बेटी के पास जिससे कि बात करने का बहाना मिल जाए तभी चिन्मय कि नजर सुगा पर पड़ी चिन्मय बिना किसी लाग लपेट के बाप बेटी के पास पहुंचा और बेटी से बोला सुगा बेचने है ?

सौभाग्य बोली बेचे खातिर नाही लाए है त का सुगा लोगन के दिखावे खातिर लाये है का

जुझारू बिटिया सौभाग्य से बोले बिटिया गहकी से ऐसन बात नाही बोला जाता है गाहक है तबे त दू पईसा हम लोग आपन समान बेचके कमाइत है

और चिन्मय कि तरफ मुखातिब होकर बोला बाबू बुरा जिन मानें बिटिया नादान है हा सुगा बेचे खातिर लाए है ।


चिन्मय बोला एक सुगा क दाम केतना पैसा लेब जूझारू बोला दस रुपया चिन्मय ने कहा दस रुपये त बहुत अधिक है हम तीन चार रुपया अधिक से अधिक दे सकित है।


चिन्मय के पास मात्र चार रुपये ही था वह इसलिये कि कही सायकिल पंचर हो गई तो बनावे खातिर जीतना चिन्मय के पाकेट में था उतना ही दाम बोला सुगा का इतना सुनत सौभाग्य के पारा चौथे आसमान पर बोली का समझे ह सुगा फ्री में मिले सुगा के बच्चा खातिर जान जोखिम में डारी के बापू पेड़ के पूताली तक बिना सोचे चढ जात है कि गिर जाए त का होए और तू दाम क बाती छोड़ सलिको नाही जानत लागत है कौनो छिछोर घर के है का ।


चिन्मय को गुस्सा नहीं आया वह गुस्से में तमतमाती सौभाग्य को देखता हुआ अंतर्मन से बहुत प्रसन्न हो रहा था क्योकि सौभाग्य गुस्से में बेहद खूबसूरत लग रही थी चिन्मय बोला तोहरे बिटिया बड़ी नकचढ़ी है एकर नाव का है?

जुझारू बोले ए अभागिन के नाव है सौभाग्य जहै जात वही बखेड़ा खड़ी कर देत है सौभाग्य गुस्से में चिन्मय को अनाप शनाप बोले जा रही थी चिन्मय सौभाग्य कि तरफ मुखातिब होते हुए बोला तू त पूरे बाज़ार में ऐसे लगत हऊ जैसे घनघोर अंधेरे क चीरत सुबह कि लालिमा हो, ऐसे लग रही हो जैसे अवसान होते सूर्य के बढ़ते अंधकार में पूर्णमासी के चांद है कोई पूरे बाज़ार में तोहरे जोड़ के तोहार सानी नाही है।


चिन्मय के मुंह से अपनी तारीफ सुनकर सौभाग्य का गुस्सा कुछ ठंठा हुआ जुझारू चिन्मय और सौभाग्य कि नोक झोंक सुनने के लिए भीड़ एकत्र हो चुकी थी जो सौभाग्य और चिन्मय के बीच चल रहे नोक झोंक का भरपूर लुफ्त उठा रहे थे ।


सौभाग्य बोली जब जेब मे पईसा नाही है त काहे सुगा खरीदे आए ह चिन्मय बेवाक बोला सही ह सुगा खरीदे क बहाना रहा असल मे हम तोहे निहारे ही आये है काहे तोहरि जइसन खूबसूरत लड़की कबो कबो हम अपने सपना में देखिले इतना सुनते ही सौभाग्य का चेहरा सुर्ख लाल हो गया वह निरुत्तर हो बोली बापू इन्हें बिना पईसा के सुगा दे द ।


जुझारू एक सुगा निकाल के चिन्मय के थामावत बोले बापू हमरी इहे एक बिटिया भगवान दिए है एकर खुशी खातिर हम जिये ली मरेली ई कही दिहिस सुगा ले जा एको पईसा जिन द। 


चिन्मय बोला नाही चाचा आज हमारे पास चार रुपया है रखे बाकी पईसा हम अगली बाज़ार दे जाब हम सुगा के दाम नाही देत हई हम त आज सौभाग्य जईसन लक्ष्मी कि खातिर देत हई जैसे आज सुगा बहाने मुलाकात भइल ।


बिना बताए चिन्मय अपना परिचय देते हुए बोला हम बल्लीपुर के पंडित शोभराज तिवारी का एकलौता बेटा हई इतना सुनते ही जुझारू को लगा जैसे सुगा जैसे चिड़िया के लिए पंडित जी के लड़के से वाद विवाद हो गइल वह बिटिया सौभाग्य कि तरफ मुखातिब होते हुए बोला ई का किहु सौभाग्य सुगा खातिर पंडित जी कि बेटबा से झगड़ गयऊ सौभाग्य बोली बापू कौन आफत के पहाड़ टूट पड़ा कि तू दुनियां सर पर उठाई लिए ह चिन्मय बोला चाचा कौनो बात नहीं और सुगा लेकर घर कि तरफ चल पड़ा।

चिन्मय अपने गांव बल्लीपुर लौट गया पिता शोभराज तिवारी ने बेटे चिन्मय से पूछा बेटा गांव के जो लड़के तुम्हारे साथ पढ़ते है बहुत पहले स्कूल से घर लौट आए तुम्हे लौटने में क्यो विलंब हुआ? 


शोभराज तिवारी ने बहुत साधारण प्रश्न किया जो किसी भी पिता द्वारा पूछा जाना स्वभाविक है चिन्मय बोला पिता जी स्कूल के प्रिंसिपल साहब की माता जी का देहावसान होने के कारण स्कूल बारह बजे बंद हो गया और कल भी बंद रहेगा स्कूल से निकलने के बाद बाज़ार के घूमने लगा बाज़ार में सुगा के सुंदर सुंदर बच्चे बिक रहे थे मुझे सुगा अच्छा लगा खरीद लिया शोभराज जी ने सुगा देखा वास्तव में उनका भी मन सुगा को देखकर बहुत प्रफुल्लित हुआ बोले ठीक किया लेकिन सुगा पर ध्यान तुम्हारी माँ और तुम्हें देना पड़ेगा मैं भी ध्यान देन कि कोशिश करूंगा ।


चिन्मय को सुगा जुझारू ने पिंजरे के साथ दिया था पिता को खुश देख चिन्मय के मन मे भय का संसय समाप्त हो गया और उसने सुगा दरवाजे के सामने टांग दिया और माँ दमयंती को सुगा दिखाने के लिए घर के अंदर दाखिल हुआ और हाथ पकड़ कर बाहर लाते बोला माँ सुगा बाज़ार से खरीद कर लाये है पिता जी कह रहे है कि सुगा पर तोहे विशेष ध्यान देना पड़ेगा माँ दमयंती ने सुगा देखा बोली बहुत खूबसूरत है हम एके अपने जियरा जैसे रखब माँ की बात सुन कर चिन्मय को अत्यधिक खुशी हुई उसे विल्कुल स्प्ष्ट हो गया कि उसने सुगा ला कर कोई गलती नहीं किया है घर मे सुगा के आने से खुशी का माहौल था ।


चिन्मय ने रात का खाना खाया और सोने चला गया नीद बहुत जल्दी आ गयी लेकिन बहुत जल्दी टूट गयी चिन्मय को लगा जैसे सौभाग्य कह रही हो बाज़ार में हमे छोड़ कर चले आए एतना नाही सोचे कि हम पर का बीतत होई चिन्मय के सामने जैसे सौभाग्य साक्षात बैठी कितने प्रश्न कर रही हो और उनका उत्तर मांग रही हो चिन्मय कि नींद गायब हो चुकी थी वह कभी इस करवट कभी उस करवट बदलता लेकिन जिस भी तरफ देखता उसे सौभाग्य ही दिखती चिन्मय को प्यार प्रेम जैसे किसी भाव का एहसास नहीं था ना ही उसके कोमल मन मे प्रेम के भाव ही प्रस्फुटित हुये थे उसे सौभाग्य के चेहरे और अंदाज में एक सच्चा मित्र ही दिखता पूरी रात वह सौभाग्य के साए प्रतिबिंब को प्रत्यक्ष अनुभव करता कल्पना लोक में खोया रहा कब सुबह हो गयी पता ही नहीं चला।


सुबह उठा सुगा के पास गया और बोला सौभाग्य से तोहे खरीद कर लाए है तोहार नाव लकी है उसे अब भी यही लग रहा था कि सौभाग्या सामने खड़ी है स्कूल बंद होने के कारण उसे स्कूल जाने के लिए तैयार नहीं होना था अतः वह बड़े स्थिर एव शांत भाव मे था लेकिन वह जिधर जाता सौभाग्य ही नजर आती सौभाग्य से मुलाकात अगले बाज़ार के दिन ही सम्भव था वह भी तब जब वह अपने बापू के साथ बाज़ार आये। 


बुधवार का दिन था दो दिन बाद शनिवार को ही बाज़ार लगता है चिन्मय क्या करता वह शनिवार का इंतजार करने लगा लेकिन शनिवार उसे लग रहा जाने कितने दिनों बाद आएगा पल प्रहर सौभाग्य कि खूबसूरत मुलाकात में ही जिये जा रहा था।

 

सौभाग्य बाजार से बापू जुझारू के साथ अपनी बस्ती लौटी शाम ढल चुकी थी अंधेरी रात का पल प्रहर बढ़ता जा रहा था खाना खाने के बाद उसने माई तीखा से कहा माई एक छोकरा आए रहा सुगा खरीदे वदे बहुत झिक झिक कियेस और वोकरे पॉकेट में सुगा भर के दामों ना रहा माई तीखा बोली बिटिया दुनिया है तरह तरह के लोग है केकरे केकरे विषय मे सोची सोची आपन जीव देबू सौभाग्य बोली माई तू ठीके कहत हऊ लेकिन सौभाग्य का मन नहीं माना उसने माई तीखा से सवाल किया माई चिन्मय के का मतलब होत है तीखा बोली हम का जानी बिटिया हम त लिख लोढ़ा पढ़ पत्थर हई सौभाग्य जाने किस सोच में डूब गई माई तीखा बोली चल बिटिया सोवे ।


सौभाग्य माई के साथ एक ही चौकी पर सोने चली गयी तीखा को बहुत जल्दी नीद आ गयी लेकिन सौभाग्य विस्तर पर करवट बदलती रही जब भी वह सोने का प्रयास करती उसकी नजरो के सामने चिन्मय खड़ा सुगा खरीदने के लिए झिक झिक करता नजर आता कभी कभी अर्धनिद्रा में सौभाग्य बड़बड़ाती एका एक तीखा कि नींद टूटी बोली बेटी का बात है का बड़बड़ा रही हो सौभाग्य बोली माई जब हम आँखी बंद करीत हई हमरे सामने चिन्मय क चेहरा घुमत नादान भोली सौभाग्य किसी झल प्रपंच से अनजान माई तीखा बोली होत है बेटी कबो कबो जब केहू से रक झक हो जात है त

बड़ा परेशान करत है जियरा करत है कब दुबारा मिल जाए और जौंन कुछ अधूरा हिसाब रही गवा हो पुर किया जाय सोच जिन भूल जा बजारी में कुछ भइल रहा और चुप मारीक़े सोई जा ।


माई तीखा के लाख समझाने के बाद भी सौभाग्य कि स्थिति जस की तस थी वह करवट बदलती आंख बंद करती लेकिन किसी भी स्थिति में चिन्मय उसके मन मस्तिष्क से ओझल होने का नाम नहीं लेता सुबह हुई सैभाग्य परेशान उधर चिन्मय परेशान किसी तरह दो दिन बीते बहुत मुश्किल से शनिवार का दिन साप्ताहिक बाज़ार का दूसरा बाज़ार चिन्मय को बड़ी बेशब्री से इंतज़ार था उधर जुझारू बाज़ार जाने कि तैयारी कर रहे थे साथ साथ सौभाग्य भी तीखा पति जुझारू से बोली आज के बजारे सौभाग्य ना जाई माई का गुस्सा देख सौभाग्य कि सिट्टी पिट्टी गुम हो गईं जुझारू ने पत्नी तीखा से सवाल किया आखिर कहे ना जाई सौभाग्या तीखा बोली पिछले बज़ारे गयी रही बीच मे जुझारू बोला पिछले का ई त हमरे साथ हमेशा दुनो बज़ारे जाती ह तीखा बोली हमहू जानत है सैभाग्य तोहरे साथ हर बाज़ारे जात है लेकिन पिछले बाजरे कौनो छोकरा से बक झक कई लिए रही लौटी के आयी है तब से ना सोबती है ठीक से ना खात है भर पेट खाली वोही छोकरा के अनाप शनाप बोलती रहती है जुझारू ने बड़े शांत भाव से पत्नी को समझाते हुए कहा कि परेशान जिन होव हमरे साथ है सौभाग्या हमरी आंखे क पूतरी वोके जिनगी में हमरे जिअत कुछो गड़बड़ ना होय।

जुझारु के बहुत समझाने के बाद तीखा ने सौभाग्य को बाज़ार जाने कि अनुमति दी ।

जुझारू बेटी सौभाग्य के साथ नियमित बाजारों कि तरह ही बाज़ार पहुंचे चिन्मय को तो बेकरारी से बाजार के दिन का इंतज़ार था ही ।

वह भी स्कूल से छुट्टी होने से पहले अपने क्लास टीचर से छुट्टी लेकर स्कूल से निकला जुझारू सड़क किनारे बेटी सौभाग्य के साथ अपने दुकान पर बैठे ग्राहकों का इंतज़ार कर रहे थे चिन्मय वहाँ पहुंचा और बोला चाचा पहचाने पिछले बाजार के सुगा ले गए रहे चार रुपया दिए रहा छः रुपया बाकी रहा देबे आए है जुझारू बड़े प्यार विनम्रता से बोले बाबू तोहार परिवार के रिवाज दूसर है आप लोग केहू के दु पईसा देब नाही त लेब कत्तई नाही आज कल दुनियां ऐसी बा कि जे जेतना दुनियां के लूट सके थोखा दे सके बेईमानी कर सके धूर्तई कर सके ऊहे बड़ा आदमी है तोहार बापू कबो केहू के एक पईसा नाजायज अपने पास ना रखे हम लोग एक एक पईसा खातिर जान जोखिम में डारी डारी जंगल से आपे लोगन कि ख़ातिर एक से बढ़कर एक मन पसंद चीज इकठ्ठा कर बज़ारे ले आईत कि दु पईसा हमे भी मिले काम चले बड़ा अच्छा किए बाबू कि पईसा दे दिए।

सौभाग्य बापू जुझारू और चिन्मय कि वार्ता को बड़े ध्यान से सुन एकटक चिन्मय को देखती ही जा रही थी जुझारू को पैसे देने के बाद चिन्मय सौभाग्य कि तरफ मुखातिब होते बोला आप कैसी है ?

सौभाग्य बोली हमहू ठीके है चिन्मय को कोई न कोई बहाना चाहिए था सौभाग्य से बात करने का उसने सौभाग्य से पूछा सौभाग्य पढ़ती हो कौने दर्जा में पढ़ती हऊ सौभाग्य बोली हमरे नसीब में पढ़े लिखे के कहा बदा बा हम लोग के नसीब भगवान तोहरे जईसन थोड़े लिखेंन है हमन के तकदीर लोढ़ा से लिखे हैं तोहार सोने के कलम से लिखे है चिन्मय बोला प्राइमरी स्कूल त सगरो जगह है त का दिक्कत है स्कूल जाए में सौभाग्य बोली हमार जिनगी लकड़ी बिननें से शुरू होत है और लकड़ी में जल जात है ।

सौभाग्य के एक एक शब्द उनके बाल निष्पाप निश्चल अबोध अंर्तमन वेदना को अभिव्यक्त कर रहे थे ।

जुझारू को भी क्या था कोई ग्राहक नहीं आता दोनों कि बतकही में चिन्मय ने बोला सौभाग्य तोहरे बापू कहे त हम तोहे पढ़ाई सकित है ।


जुझारू बोला नाही बाबू एके अपने हालत हालात पर रहे द जब कभी चिन्मय बात चीत का सिलसिला आगे बढ़ाए रखने के लिये कोई रास्ता निकालने की जुगत लगाता जुझारू तुरते खत्म कर देते।


चिन्मय ने सौभाग्य से बोला

हम हर बज़ारे के तोहे दस पांच दस मिनट में कुछ पढ़ाए देब कुछ दिन हमरो बात मानी के देखल जुझारू को लगा कि इमा त कौनो खास बात है नाही है बोला बाबू दस मिनट यही जो बताए सक बताए दिह।


चिन्मय को लगा जैसे उसने जुझारू की सहमति पाकर बहुत बड़ी समस्या का हल खोज लिया हो चिन्मय को इत्मिनान इस बात का हो गया कि उसे हर मंगल और शनिवार को सौभाग्य से मिलने का अवसर मिलेगा उसका प्रस्ताव भी इसी निमित्त था ।


चिन्मय बहुत खुश हुआ और सौभाग्य से बोला सौभाग्य मंगलवार के मुलाकात होई चिन्मय कि खुशी का कोई ठिकाना नहीं था कल्पना लोक में खोया वह घर पहुंचा और सौभाग्य से मुलाकात बात की यादों में और मुलाकात के खयालों में खो गया। 


सप्ताह के पहले बाज़ार मंगल का दिन चिन्मय प्रतिदिन् से कुछ अधिक जोश खरोश से स्कूल जाने के लिए तैयार हुआ स्कूल में भी चिन्मय मेधावी छात्र के रूप में चर्चित था शिक्षक उस पर गर्व करते यदि कोई छात्र या शिक्षक किसी प्रकार की बात चिन्मय के विषय मे शिकायती लहजे में कहते तब भी चिन्मय के शिक्षक चिन्मय के विषय मे सुनने को तैयार नहीं होते क्योकि स्कूल का नाम हर जगह चिन्मय के कारण गौरवान्वित होता रहता चाहे खेल हो बात विवाद प्रतियोगिता हो सांस्कृतिक कार्यक्रम हो स्वतंत्रता दिवस हो या गणतंत्र दिवस किसी भी आयोजन में चिन्मय कि सहभागिता रहती और आयोजन का शिखर चिन्मय ही रहता। 


चिन्मय स्कूल पहुंचा और छुट्टी होने के बाद सीधे वह जुझारू कि चिर परिचित दुकान पहुंचा जो बाज़ार के अंतिम छोर पर सड़क के किनारे रहती और जुझारू से बोला चाचा अभी कोई ग्राहक नहीं है तब तक हम सौभाग्य को कुछ बता देते है जुझारू बोले ठीक है चिन्मय कार्ड बोर्ड पर काट काट कर हिंदी वर्णमाला के दस अक्षर सौभाग्य को देता हुआ दसो को दस मिनट में ही दस दस बार दोहरा दिया जिसे सौभाग्य ने भी दोहराया चिन्मय बोला आज का समय समाप्त बाकी अगले बाज़ार को तब तक तुम इन दस अक्षरों को पहचान कर ऐसे ही जमीन पर बनाने की कोशिश करना चिन्मय बोला जुझारू चाचा अब हम जात हई और गाँव कि तरफ चल दिया।


चिन्मय अनुशासन पसंद सांस्कारिक परिवार से था अतः वह परिवार औऱ अपने अनुराग के बीच बेवजह कोई संसय या फसाद नहीं चाहता था चाहे उसके अपने माता पिता कि तरफ से हो या सौभाग्य के माता पिता कि तरफ से वह निर्धारित समय स्कूल जाता स्कूल से बाजार के दिन अपने बिभिन्न प्रयोगों से मात्र दस मिनट के निर्धारित समय मे सौभाग्य को जो कुछ सम्भव होता पढ़ाने कि कोशिश करता और समय से घर लौट आता ।


सौभाग्य भी अब बाज़ार के दिन चिन्मय का इंतजार करती और उसके द्वारा दी गयी शिक्षा को गंभीरता से ग्रहण करती और बाकी दिनों में उसका अभ्यास करती दो वर्ष के चिन्मय के निरंतर प्रयास से सौभाग्य पढ़ना लिखना आदि सिख गयी थी चिन्मय को सौभाग्य से मिलना और पढ़ना अच्छा लगता तो सौभाग्य को चिन्मय से मिलने में इतनी खुशी होती जैसे उंसे दुनियां कि सबसे बड़ी खुशी मिल गयी हो।


चिन्मय जब घर पर पढ़ता तो लकी सुगा को साथ पिजरे में सामने रखता और जब कभी अवसर मिल जाता सौभाग्य और अपनी मुलाकात और अपनी संवेदनाओं को व्यक्त करता जब कभी बाज़ार के दिन चहकते हुये स्कूल के लिए चिन्मय निकलता और माँ स्वाति उंसे दरवाजे तक छोड़ने आती तब लकी सुगा बोलता सौभाग्य सौभाग्य स्वाति को लगता कि सुगा शुभ का सौभाग्य चिन्मय के लिए बोल रहा है वह लकी के पास आती और बोलती लकी तू केकरे सौभाग्य के बात करत है लकी अपनी भाषा में स्वाति को समझाने कि कोशिश करता लेकिन स्वाति को कुछ समझ में नहीं आता।।


सौभग्या और चिन्मय एक दूसरे के प्रति आकर्षित हो चुके थे लेकिन उनके आकर्षण में अबोध भाव कि पवित्रता बरकरार थी प्रेम का प्रस्फुटन हो चुका था लेकिन वैराग्य भाव था दोनों में स्वार्थ था ही नहीं अतः दोनों का आकर्षण अनुराग निर्मल निश्छल गंगा यमुना के प्रवाह कि तरह अनवरत बढ़ता जा रहा था ।


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