भूतों का बसेरा
भूतों का बसेरा
गिरजाघर के पास पीछे बने कब्रिस्तान से हर रोज रात में अजीब अजीब सी आवाजें आती थी।शाम के समय उस रास्ते से कोई नहीं गुजरता और इसी वजह से वो रास्ता सुनसान हो जाता था।
गर्मी के दिन थे, दीपक घर में परेशान हो रहा था, इसलिए शाम के चार वह घर से घूमने निकल गया।चलते चलते वह बहुत दूर चला गया और उसे पता ही नहीं चला कि कब वह उस कब्रिस्तान के पीछे वाले जंगल के रास्ते पहुँच गया।
जंगल में ख़ूब घना अँधेरा हो चुका था, ऊपर आसमान में चाँद तारें टिमटिमा रहे थे, डर के मारे उसके हाथ पैर काँपने लगे।कहीं से लोमड़ी की आवाज भी आने लगी।भूत प्रेतों की सुनी सुनाई बात उसे सच लगने लगी।अब घर कैसे लौटे ,रास्ते में कब्रिस्तान का डर और जंगल में जानवरों का डर।
डरते भागते वह सड़क तक पहुँचा, अचानक कब्रिस्तान के पास उसे हवा में एक चुड़ैल उड़ती हुई दिखाई दी।काले कपड़ों में पैर से सिर तक ढकी वह चुड़ैल उसका पीछा करने लगी, वह पूरी ताकत लगाकर अपने गाँव की तरफ दौड़ा। तीन चार किलोमीटर दौड़ने और डर के कारण वह घर पहुँचते ही बेहोश होकर गिर पड़ा।

