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Mens HUB

Horror Action Thriller

4  

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भूत

भूत

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राजीव अपने दोस्तों के साथ पिकनिक पर एक झील के किनारे गया हुआ था और रात वहीं गुजरने का प्रोग्राम पहले से तय  था इसीलिए साथ में कैंप और लाइट की व्यवस्था भी थी। दोपहर का खाना खाने के बाद राजीव अपने कुछ दोस्तों के साथ घूमने निकल पड़ा। घूमते घूमते काफी थक गए तो सोचा की चलो झील में नहा लिया जाये। कपड़े उतार कर झील में उतर पड़े तो सोचा की चलो तैरने की प्रतियोगिता की जाये और इस तरह सभी दोस्त झील के एक किनारे से दूसरे किनारे की तरफ चल पड़े। काफी लम्बे समय तक तैरने का प्रोग्राम चलता रहा और इसी तरह मौज मस्ती करते करते अंधेरा छाने लगा। जब सब दोस्त झील से बहार निकले तब सूरज डूबने की तैयारी कर रहा था और उस हलके अंधेरे में झील के दूसरी तरफ पेड़ो के पास रौशनी दिखाई दी। ऐसा लग रहा था जैसे की कहीं आग लग गयी हो। 

सभी ने जा कर देखने का निश्चय किया और झील के ऊपर से चक्कर लगा कर पेड़ो के झुरमुट की तरफ चल दिए। जब राजीव ने पेड़ो के उस पार ध्यान से देखा तो उनको ज्ञात हुआ की श्मशान है और कोई चिता जल रही है। जलती हुई चिता देखने के बाद सभी दोस्त खामोशी से वापिस लौट पड़े। शायद जलती चिता देखने का मनोवैज्ञानिक असर या शायद दिन भर की मेहनत और थकान और शायद भूख भी रही हो जिसने सबको खामोशी से चलने के लिए विवश किया। परन्तु राजीव को यह खामोशी अखरने लगी उसे कुछ ना कुछ बात करने की इच्छा हुई और उसने अपने दोस्तों को यह कह कर छेड़ना शुरू कर दिया की वह जलती चिता देख कर डर गए है। 

राजीव की छेड़छाड़ के कारण छा गयी खामोशी दूर हुई और दोस्तों के बीच एक भूत प्रेत के बारे में दिलचस्प बहस छिड़ गयी। सब दोस्त अपनी अपनी कहे जा रहे थे कोई किसी की नहीं सुन रहा था और इसी तरह बक बक करते सभी दोस्त कैंप साइट पर पहुँच गए। यहाँ बहुत सारे काम करने वाले बाकी थे इसीलिए सब व्यस्त हो गए परन्तु बक बक लगातार जारी थी। और यह बक बक उस वक़्त तक जारी रही जब तक की सब अपने अपने कैंप में नहीं चले गए। 

अब सिर्फ सो जाने का टाइम था परन्तु कभी कभार ही तो पिकनिक का अवसर मिलता है इसीलिए किसी ने भी सोना जरूरी नहीं समझा और पुरानी बक बक दोबारा चालू कर दी जहाँ सब बोल रहे थे और सुन कोई नहीं रहा था। अंत में निश्चय किया गया की बक बक बंद की जाये और सभी दोस्त बारी बारी से भूतों के बारे में अपने विचार रखे या कोई किस्सा सुनाए। 

सभी दोस्तों ने अपने अपने विचार रखे और अधिकतर का विचार था की भूत नहीं होते यह सिर्फ अंधविश्वासी है जिसका इस्तेमाल कुछ चालाक लोग बिज़नेस के रूप में करते है। इसी तरह के विचार सुनते सुनते राजीव का नंबर आ गया और अब राजीव को अपने विचार रखने थे या कोई किस्सा सुनना था शर्त सिर्फ इतनी थी की किस्से में भूत आना चाहिए। 

राजीव : “भूत का अस्तित्व है या नहीं यह सवाल अपने आप में बहुत उलझन वाला है। जितनी उत्तेजना इस सवाल से पैदा होती है उससे कम जवाब सुनकर नहीं होती। अधिकांश भारतीयों से यदि सवाल पूछा जाये तो ज्यादातर निःसंकोच कहेंगे की वह भूत के अस्तित्व को नहीं मानते। परन्तु सवाल अधिकांश लोगों का नहीं मेरा है क्या मैं भूत के अस्तित्व को मानता हूँ। और उससे भी रोचक है की क्या मेरी मान्यता से कुछ फर्क पड़ता है “

दोस्त : कहना क्या चाहते हो 

राजीव : कुछ समय पहले की अगर बात की जाये तो मेरा जवाब बड़ा ही सामान्य एवं संतोषपरक था जैसा की अधिकांश लोग भूत के अस्तित्व को नहीं मानते मैं भी नहीं मानता। ऐसा मशीनी जवाब देकर मैं स्वयं को वैज्ञानिक मान्यता का दावेदार मानता रहा हूँ। परन्तु क्या मेरे मानने या न मानने से भूत पर कोई फरक पड़ जाता है। 

दोस्त : तो अब तुम भूत प्रेत में यकीन करते हो 

राजीव : मुझे नहीं पता। मुख्य रूप  से इसे इस तरह देख सकते है की अचानक मैं पृथ्वी को गोल मानने से इनकार कर देता हूँ और पृथ्वी के प्लेट नुमा होने की घोषणा कर देता हूँ। बड़े बड़े वैज्ञानिक अपने तर्कों के साथ मुझे मनाने के प्रयास मैं लग जाते है उपग्रह से खींची हुई तस्वीरों को देख कर मैं उपग्रह के अस्तित्व को भी नकार देता हूँ बाकी सारे के सारे तर्क भी नकार देता हूँ। सब वैज्ञानिक हार मान जाते है मेरी ज़िद्द के सामने परन्तु इससे क्या पृथ्वी प्लेट नुमा हो जाएगी ? नहीं पृथ्वी गोल ही रहेगी। कुछ ऐसा ही भूत के बारे मैं है मेरे नकार देने से भूत का होना या नहीं होना प्रभावित नहीं होता यह तो बस मेरी ज़िद मात्र है। 

दोस्त : तो तुम क्या करने वाले हो कोई किस्सा या अपने विचार 

राजीव : दोस्तों में आज एक नहीं बल्कि दो किस्से सुनाता हूँ। 


बहुत पुरानी बात है जब मैं छोटा था एक दिन अचानक डर गया। डर के मारे अंधेरे मैं सोने से इंकार कर दिया अकेले कहीं आने जाने से मना कर दिया ख़ास तौर पर अंधेरे मैं।  माँ बाप ने बताया की भूत काल्पनिक संज्ञा है वास्तव मैं भूत नहीं होता, बार बार बताया, लगातार बताया और आखिर मैंने मान लिया।  उन्होंने बताया परन्तु उनको कुछ साबित करने की जरूरत नहीं पड़ी क्योंकि न तो मैंने उनसे साबित करने के लिए कहा और न ही उनकी जानकारी के सोर्स एवं सत्यता पर कोई सवाल नहीं उठाया बस उन्होंने कहा और मैंने मान लिया। थोड़ा बड़े होने पर जब स्कूल जाना शुरू किया वहां भी पता चला की भूत नहीं होता एक बार फिर मैंने मान लिया बिना सोर्स की सत्यता पर सवाल उठाये। 


बस ऐसे ही माहौल मैं बड़े होते होते मैंने यूनिवर्सिटी मैं कदम रखे। यह पहला अवसर था जब घर के अनुशासन से बाहर होस्टल  मैं रहने का अवसर प्राप्त हुआ। होस्टल की घटना है। एक बुधवार की शाम को अपने रूम के सामने खड़े होकर नाख़ून काट रहा था तभी एक दोस्त ने कह दिया की बुधवार की शाम को नाख़ून नहीं काटे जाते वरना कुछ बुरा हो जाता है। मैंने दोस्त की बात को अनसुनी करते हुए अपने नाख़ून काट लिए। बॉयज होस्टल के माहौल को शब्दों मैं व्यक्त करना नामुमकिन है इसका आनंद बस वही ले सकता है जो होस्टल मैं  रहा हो।


खेर जब मैं नाख़ून काटने मैं व्यस्त था तब दोस्त लोग मेरे खिलाफ साजिश को आखिरी रूप देने की कोशिश कर रहे थे। उसी रात जब सभी दोस्तों के साथ पढ़ाई कर रहा था तभी खिड़की पर कुछ आवाज़ हुई। हमारा कमरा 1st फ्लोर पर था और कमरों के पीछे का खिड़की कुछ इस तरह बना हुआ था की कोई बहुत साहसी व्यक्ति ही खिड़की तक पहुँच सकता था। खिड़की के पीछे की तरफ जहाँ तक नज़र जाये कांटेदार झाड़ियों से भरा हुआ खाली मैदान, वहीं खिड़की की ज़मीन से ऊंचाई तकरीबन 20 फ़ीट। किसी का भी 1st फ्लोर की खिड़की तक पहुँच पाना संभव नहीं कोई अति साहसी ही ऐसा कर सकता था। तेज़ हवा के कारण खिड़की पर अक्सर कुछ आवाज़ें आती रहना सामान्य बात थी।


ऐसे मैं पढ़ाई करते हुए खिड़की पर खट्ट खट्ट की आवाज़ का आना सामान्य बात थी उसकी तरफ ध्यान  का न जाना उससे भी सामान्य बात थी परन्तु दोस्त लोग तो साज़िश किये ही थे। मुझे बार बार खट्ट खट्ट की तरफ ध्यान आकर्षित करवा रहे थे। आखिर मैं उनकी साज़िश मैं फस गया और खिड़की खोल बैठा। जैसे ही खिड़की खोला बाहर के छज्जे पर पहले से छिपा हुआ दोस्त अचानक झपट पड़ा। अप्रत्याशित हमले के कारण न केवल मैं पीछे की तरफ गिर पड़ा बल्कि बुरी तरह चीख भी पड़ा।

अगले कुछ दिनों तक साज़िश होस्टल मैं चर्चा का विषय बनी रही और शायद मेरे आत्मसम्मान पर भी कुछ चोट जैसी महसूस हो रही थी शायद इसी चोट का परिणाम था की एक बार फिर से खुद को बहादुर साबित करने की चुनौती मेरे सामने आ खड़ी हुई। कई दिन बाद जब अवसर सामने आया तो दोस्तों से शर्त बदकर श्मशान में रात गुजरने को भी तैयार हो गए। अमावस की काली अँधेरी रात सर्दी का मौसम जब सब मित्र अपने अपने कमरों मैं सो रहे थे तब मैं एक छोटी टोर्च के सहारे श्मशान की तरफ जा रहा था। 


दोस्त : तो क्या श्मशान में भूत मिला 

राजीव : नहीं परन्तु मच्छर बहुत मिले 

दोस्त : तो क्या तुम आज भी अपने उसी स्टैंड पर कायम हो 

राजीव : अब दूसरा किस्सा सुनो 


आज उस घटना को गुज़रे बहुत साल हो गए परन्तु आज जब उस घटना पर विचार करता हूँ तो हर तरफ अपनी मूर्खता ही दिखाई देती है। बहुत ही भयानक  रात थी सर्दी का कोहरा, अंधेरे रात और ठंडी हवा के झोंके टोर्च की रोशनी अगर आगे की तरफ करो तो पीछे का अंधेरे डर दिखाए और पीछे करो तो आगे का अंधेरा कई भूत प्रेत खड़े कर दे। और ऐसे मैं रात गुजरने के लिए एक बैंच और चार खंबों पर टिकी हुई टीन की छत्त।  आज लगता है की कैसी मूर्खता थी जो सिर्फ दोस्तों में खुद को बहादुर साबित करने के लिए बिना सांप, बिच्छू, सर्दी, बीमारी आदि की परवाह के श्मशान में रात गुजार दी। एक सच यह भी है की उस रात ने मेरा सोचने का पूरा नज़रिया ही बदल दिया। पूरी रात डर डर कर गुजार दी तब एक सवाल पैदा हुआ की अगर मैं भूत को नहीं मानता तो फिर डर किससे रहा हूँ। खुद को तसल्ली देने की बहुत कोशिश कर चुका पर हर बार जवाब एक ही मिला की वह डर अगर भूत का नहीं तो किसी और का भी नहीं था। सारी दुनिया को भरमाया जा सकता है स्वयं को नहीं आखिर मानना पड़ा की मैं कहीं ना कहीं भूत के अस्तित्व को स्वीकार करता हूँ। इसका कारण सिर्फ इतना है की मैं मानता हूँ भूत नहीं होता परन्तु जानता नहीं हूँ।


शायद मानने और जानने मैं यही फर्क है मानने के लिए तर्क का होना आवश्यक नहीं परन्तु जानने के लिए तर्क का होना अवस्यम्भावी है। अधिकांश लोग मानते है की भूत नहीं होता परन्तु जानते नहीं।


अब इस घटना को बहुत लम्बा समय गुजर चुका है विज्ञान की उच्चतम पढ़ाई करके मैं वैज्ञानिक के तौर पर कार्य कर रहा हूँ  परन्तु भूत के बारे मैं मेरे विचार आज भी कुछ ख़ास नहीं बदले। श्मशान की उस रात के बाद से मैं भूत को अस्तित्व को स्वीकार नहीं करता परन्तु अस्वीकार भी नहीं कर पाता। शायद वक़्त को मेरी यह दुविधाग्रतः स्थिति स्वीकार नहीं थी और इसीलिए एक बार फिर से मुझे चुनौती देने की साज़िश रची जा रही थी और इस बार साज़िश रचने वाले कोई दोस्त नहीं बल्कि स्वयं समय था और मैं हर साज़िश से अंजान अपने मैं ही व्यस्त था। और फिर आखिर वह दिन आ ही गए जब मैंने भूत से सामना किया। 


किस्सा कुछ यूं शुरू हुआ की मैं ट्रांसफर होकर एक नए शहर मैं आ गया। नए शहर को सुविधा के लिए हैदराबाद कह लेते है। तो नए शहर मैं जैसी भी व्यवस्था हो सकी एक फ्लैट किराये पर ले लिया। तकरीबन 6 महीने उसी फ्लैट मैं रहा और आखिर ऑफिस के नज़दीक एक अन्य फ्लैट का इंतज़ाम हो गया और मैं नए फ्लैट में रहने के लिए आ गया। 


नए फ्लैट में वातावरण बहुत बढ़िया था परन्तु वहां आने के तकरीबन 4 महीने के अंदर ही मेरे पिता की मृत्यु हो गयी। और यही से मेरी लाइफ पूरी तरह बदलनी आरंभ हुई। अब मैं फ्लैट मैं अकेले रह रहा था। अकेले इसीलिए क्योंकि पिता की मृत्यु हो चुकी थी और माता जी होम टाउन छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी। शादीशुदा था परन्तु बच्चे वगैरह नहीं थे। तो सवाल पैदा होता है की अकेले क्यों पत्नी मेरे साथ होनी चाहिए। 


तो हुआ यूं की मुझे तो नौकरी करनी ही थी और माता जी अभी साथ आने के लिए तैयार नहीं थी और पत्नी माता जी के साथ रहने के लिए तैयार नहीं थी। जैसे तैसे 2 महीने गुजरे उसके बाद माताजी को साथ लेन के लिए टिकट वगैरह बुक किये तो पत्नी ने घर छोड़ दिया क्योंकि माताजी भी साथ आ रही थी। मतलब यह की मेरे सामने माँ या पत्नी  दोनों मैं से एक को चुनने का वक़्त आ खड़ा हुआ।  अपने राम ठहरे आज़ाद ख्यालों के व्यक्ति सो गुलामी तो करने से रहे इसीलिए पूरी तरह आज़ाद हो गए गुलामी को हमेशा के लिए दूर कर दिया। पत्नी को निराशा हुए परन्तु वकीलों ने उसे आश्वासन दिया की कुछ आपराधिक मुक़दमे कायम कर देने मात्र से आज़ाद पंछी दोबारा पिंजरे मैं आ जायेगा। कुल मिलाकर  5 आपराधिक मुक़दमे दर्ज़ कर दिए गए। मैंने 10 साल मुक़दमे लड़ते हुए व्यतीत कर दिए परन्तु आज़ाद पंछी दोबारा पिंजरे मैं नहीं आया। तो पूरा मामला इन्हीं 10 मैं से शुरुआती 8  सालों का है। 


जैसे की मैंने बताया मैं अकेले फ्लैट मैं रह रहा था शुरू के 1 साल तक ठीक ठाक  रहा (कम से कम मुझे ऐसा ही याद आता है ) उसके बाद नींद मैं सपने दिखाई देने लगे कोई बड़ी बात नहीं नींद मैं सपने आते ही है। समस्या पैदा हुई जब मुझे अहसास हुआ की मुझे जो सपने दिखाई दे रहे है वह सच है। अहसास होने के बाद मैंने सपनों की डायरी  में तारीख के साथ लिखना शुरू कर दिया नतीजा अगले 2 - 3 महीने मैं यह साफ़ हो गया की जो भी सपने मैं देख रहा था वह सब सच हो रहे थे। जैसे की आज कोई सपना देखा तो अगले 15 - 20 दिन मैं सपना सच हो गया। दिखाई दिए सपनों मैं छोटी छोटी घटनाओं जैसे को गाडी का चालान, मोबाइल स्क्रीन टूटना , मेड का छुट्टी कर देना से लेकर बड़ी घटनाएँ जैसे की गाड़ी का एक्सीडेंट , कोर्ट से मुक़दमे  का नतीजा मेरे खिलाफ आना, माताजी का गंभीर रूप से बीमार हो जाना आदि सब दिखाई दे रहा था। और हर सपना सच हो रहा था। 


सपनों का सच होना या सच्चे सपने एडवांस मैं देखना कोई चिंता की बात नहीं परन्तु चिंता की बात है जब सपना बुरा हो और पता हो की अगले 15 - 20 दिन मैं यह बुरा होने जा रहा है। जैसे की गाड़ी का चालान कटना है तो कटेगा ही परन्तु यदि 15 दिन पहले से पता हो तो यह 15 दिन परेशानी मैं गुजरना स्वाभाविक ही है। इस तरह परेशानी भरी ज़िंदगी गुज़ारते हुए तकरीबन 3 साल गुजर गए। इन 3 सालों मैं अच्छे पल भी आये और बुरे पल भी आये और बुरे पलों का तनाव सपनों के कारन वक़्त से पहले दिखाई दिया। 


खेर कुछ किया नहीं जा सकता था इसीलिए इग्नोर करना शुरू कर दिया। फिर एक दिन की बात है देर रात एक हॉरर मूवी (मुझे पसंद है) देख रहा था और अंत मैं TV पर नोट दिखाई दिया की उपरोक्त फिल्म सत्य घटना पर आधारित है। गूगल सर्च मैं जिस घटना पर आधारित फिल्म थी उसका डिटेल प्राप्त किया। जैसे जैसे सर्च करता गया मेरे कान खड़े होते गए। फिल्म मैं जिस तरह का घटना क्रम दिखाया गया या जिक्र किया गया लगभग वैसी ही घटनाक्रम मेरे साथ फ्लैट मैं भी हो रहा था। ऐसे मैं घटनाक्रम पर सोच विचार और रिसर्च आवश्यक महसूस होने लगी। और मैंने रिसर्च किया भी। उद्धरण के तौर पर दो घटनाओं का जिक्र करना चाहूँगा। 


पहली घटना : फिल्म मैं दिखाया गया की  भूतिया घर में कुछ हिस्से में रोटॉन स्मेल आती है। अब मैंने महसूस  किया की फ्लैट मैं पिछले 2 सालों से रोटॉन स्मेल आ रही थी। यह स्मेल हमेशा नहीं आती बल्कि 7 से 10 दिन बाद आती थी और तकरीबन 5 या 7 मिनट मैं समाप्त हो जाती थी।  मैं इस स्मेल को अभी तक यह सोच कर इग्नोर करता रहा था की शायद सड़क की तरफ के नाले से आ रही है। जैसा की फिल्म मैं दिखाया गया इस तरह की स्मेल भूतिया घटना के कारण हो सकती है तो इसी बात को दिमाग मैं रखते हुए मैंने स्मेल का सोर्स तलाश करने का फैसला किया। अपने पैसे से नाले की सफाई करवाई टॉयलेट पानी के पाइप आदि साफ़ करवा दिया हर वह जगह जिसके गन्दा होने की सम्भावना हो सकती थी उसे साफ़ करवा दिया और इंतज़ार करने लगा। स्मेल नहीं आनी चाहिए थी परन्तु स्मेल आयी और इस बार मैं तैयार था सोर्स की तलाश के लिए। स्मेल का सोर्स तलाश करने के लिए नाक का इस्तेमाल किया और सिर्फ इतना ही सुनिश्चित हो पाया की स्मेल नाले मैं से नहीं आ रही थी। खेर अगले सप्ताह और फिर उसके अगले सप्ताह, कई सप्ताह की मेहनत से सिर्फ इतना निश्चित हो पाया की स्मेल का सोर्स  घर से बाहर नहीं अंदर ही है। फिर घर की सफाई आरम्भ की। हर संभव प्रयास किये और अंत मैं इस नतीजे पर पहुंचा की स्मेल का कोई सोर्स है ही नहीं। स्मेल एक मीटर स्क्वायर के एरिया मैं आती है ना उस एरिया के बहार स्मेल है और न ही उस एरिया के अंदर कोई ऐसा सोर्स है जिससे स्मेल आ सके। इस निष्कर्ष को निकलने मैं वैज्ञानिक उपकरणों जैसे की सेंसर  का भी इस्तेमाल किया परन्तु नतीजा वही रहा। नतीजा तो निकला परन्तु इस नतीजे को निकलने में कई महीनों की कड़ी  मेहनत लगी और हल कोई भी नहीं निकल सका सिर्फ नतीजा हाथ में आया। 


दूसरी घटना : दूसरी घटना में सपनों का जिक्र करना चाहूँगा। जैसा की मैंने बताया सपने लगातार आ रहे थे और सपने सच हो रहे थे। कई विद्वानों से संपर्क करने पर वह सपनों का अर्थ तो बताने मैं समर्थ थे परन्तु सपने क्यों आ रहे है इसका कोई सन्तुषिदायक उत्तर नहीं मिल पा रहा था। वैसे मेरी नज़र मैं सपनों का आना कोई महत्व नहीं रखता महत्व है उनके द्वारा भविष्य दिखाई देने का। जिसका आज भी मेरे पास कोई संतुष्टि दायक उत्तर नहीं है। 


इसके अलावा भी कई ऐसी घटनाएँ है जिसका सामान्य तौर पर कोई उत्तर नहीं परन्तु क्या सिर्फ इसीलिए उनको परामानवीय कहा जाना उचित होगा ?


जब घटनाक्रम से मुक्ति हासिल नहीं हो पायी तो आखिर मैंने निश्चय किया की उस फ्लैट को छोड़ दिया जाये हो सकता है की जगह बदलने से घटनाक्रम से मुक्ति हासिल हो। किराये का फ्लैट था बदलना मुश्किल नहीं था। इसके बावजूद उस फ्लैट से निकल नहीं पाया। किसी ना किसी कारण से फ्लैट बदलने का निश्चय लगभग 2 साल तक टलता गया। तीन बार तो ऐसा भी हुआ की मैंने दूसरा फ्लैट फाइनल कर दिया नए मकान  मालिक को कह दिया की मैं अगले महीने की एक तारीख से आ रहा हूँ। पुराने मकान मालिक को भी टाटा बाई बाई  बोल दिया इसके बावजूद फ्लैट नहीं बदल सका कुछ न कुछ कारण पैदा हो गया। एक दफा तो नए फ्लैट का एडवांस किराया भी दे आया इसके बावजूद फ्लैट नहीं बदल पाया। 


हर घटनाक्रम का अंत होता है मुक़दमे के फैसले का दिन नज़दीक आ रहा था और मेरे दिल मैं यह बात घर कर चुकी थी की यह फ्लैट मेरे लिए शुभ नहीं है (या यूं कहे की भूतिया है)। इसी कारण एक  बार फिर से भागदौड़ शुरू की नए फ्लैट के लिए और आखिर एक फ्लैट निश्चित कर दिया। नया फ्लैट निश्चित करने से पहले की घटना है। नए फ्लैट की तलाश जारी थी परन्तु कहीं न कहीं निराशा भी थी। इसी निराशा के बीच  एक स्वप्न देखा , स्वप्न मैं मकान मालिक मुझे फ्लैट खाली करने के लिए कह रहा तह। इस स्वप्न ने मुझे जोश से भर दिया और अगले ही वीकेंड मैं मैंने जो भी फ्लैट दिखाई दिया उसे फाइनल कर दिया। एक सप्ताह और गुजरा और संडे दोपहर का आराम का वक़्त था जब फ्लैट का मालिक आ पहुंचा और ठीक वैसा ही उसने कह दिया जैसा की मैंने सपने मैं देखा था। अब क्योंकि मैंने नया फ्लैट निश्चित कर लिया था इसीलिए मैंने महीने के आखिरी सप्ताह मैं फ्लैट खाली करने का आश्वासन दे दिया। 


फ्लैट के मालिक ने एक सवाल मेरे सामने रखा जिसने मुझे चौंकाने के लिए पर्याप्त था। फ्लैट के मालिक ने मुझसे पूछा की क्या मुझे ‘इस फ्लैट मैं स्वप्न आते है’ और मैंने मना कर दिया। फ्लैट मैं मुझे स्वप्न आते थे इसके बावजूद मैंने मना कर दिया मैं नहीं जनता क्यों। 


महत्वपूर्ण बात सिर्फ इतनी है की फ्लैट मालिक ने मुझसे यह सवाल क्यों किया ? क्या उसे इस बात की जानकारी थी की उस फ्लैट मैं स्वप्न आते है ? मैंने तो कभी किसी से जिक्र नहीं किया शायद मुझसे पहले जो रह रहा हो उसे किसी किस्म की समस्या का सामना करना पड़ा हो। खेर ....... 


फ्लैट मैंने बदल दिया परन्तु फ्लैट खाली करने से पहले एक आश्चर्यजनक घटना घटी। शुक्रवार की रात थी TV पर फिल्म चल रही था और मैं बेड पर तकिये के सहारे लेटा हुआ फिल्म देख रहा था, अचानक राटन स्मेल आयी मुझे पता था की यह स्मेल 5 या 7 मिनट रहेगी परन्तु मैंने आदत बना ली थी की जब ऐसी स्मेल आती मैं रूम फ्रेशनर छिड़क देता। इसी इरादे से मैंने उठने का प्रयास किया। मेरे सामने TV था और मेरे पीछे वह अलमीरा थी जिसमें रूम फ्रेशनर था। तो मुझे रूम फ्रेशनर उठाने के लिए पीछे की तरफ पलटना था और मैंने ऐसा ही किया। मैं लेटे लेटे  180 डिग्री घूम गया। मतलब की पहले मैं बाएं हाथ के सहारे तकिये पर था घूमने के बाद दाएं हाथ के सहारे हो गया। और जैसे ही मैं घूमा वहीं पर वह मौजूद था। शायद वही जिसे हम भूत कहते है बिलकुल स्पष्ट आकृति कोई भ्रम नहीं। 


मेरे सामने मैं खुद था ठीक वैसे ही जैसे की मैं मिरर के सामने खड़ा हूँ और खुद को ही देख रहा हूँ। मेरे सामने मैं खुद खड़ा था। मेरे दिमाग ने सामने खड़ी आकृति के बारे मैं सोचना शुरू कर दिया परन्तु दिमाग ने शरीर को कोई निर्देश प्राप्त नहीं हो रहे थे। मैं समझ ही नहीं पाया की सामने क्या है यह अवस्था करीब करीब 10 या शायद ज्यादा सेकंड रही होगी उसके बाद मेरे सामने वाले मुझ में बदलाव आरम्भ हुए और उसका चेहरा गोरे  (मेरा रंग गोरा है) से गहरा भूरा पड़ने लगा और चेहरा सिकुड़ना आरम्भ हो गया और अंत मैं मेरे सामने मैं न होकर रह गया एक गहरा भूरा चेहरा जो दिखने मैं बहुत ही ज्यादा भयानक था और यह सब हुआ सिर्फ 50 या 60 सेकंड मैं। भयानक  चेहरे को देखकर मैं डर गया और मैंने अपनी आंखे बंद कर ली। आँखें बंद करने के बाद भी डर दूर नहीं हुआ और लगभग तुरंत ही मैंने आँखें खोल दी (ज्यादा से ज्यादा 10  सेकंड बाद) और जब आँख खोले तब सामने कुछ  नहीं था अगर कुछ बचा था तो राटन स्मेल और धुआँ।  शायद वह आकृति धुएं में बदल गयी थी। 


और उस रात मैं सो पाया या नहीं यह तो मुझे याद नहीं आ रहा परन्तु अगले दिन ही मैंने फ्लैट बदल लिया महीना खत्म होने का इंतज़ार नहीं किया। नए फ्लैट मैं मुझे सपने  परेशान नहीं करते। मुकदमा भी मैंने जीत लिए बाइज़्ज़त बरी हो गया , कुछ और परेशानियां भी थी जो लगभग ख़त्म हो चुकी है। कभी कभी सपने आते है परन्तु सामान्य सपने जिनका सच से कोई लेना देना नहीं है। 


मुझे उत्सुकता है उस फ्लैट को देखने की परन्तु फिलहाल मैं उस फ्लैट मैं जाने से बच रहा हूँ। परन्तु उस फ्लैट को देखने कभी न कभी अवश्य जाऊँगा क्योंकि उस फ्लैट मैं कुछ रहस्य दफ़न है जिनमें मेरी उत्सुकता है। 

नोट : सत्य घटना पर आधारित


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