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Classics Inspirational Others

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जागो मोहन प्यारे

जागो मोहन प्यारे

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बात लगभग 17–18 साल पुरानी है, जब मेरे पिता का निधन हुआ था। उस समय उनके नाम पर कुछ संपत्ति थी, जिसकी कुल कीमत करीब एक करोड़ रुपये थी—एक मकान, एक प्लॉट और एक खेत।

मेरे अलावा मेरी दो बहनें भी हैं, और पिता के गुजरने के बाद हमने पूरी संपत्ति माँ के नाम करवा दी।

पिछले 18 वर्षों में बहुत कुछ बदला। प्लॉट बेचने की बात पर घर में इतना विवाद हुआ कि अंततः मुझे एक नया प्लॉट खरीदकर माँ के नाम करना पड़ा, जबकि उन पैसों के लिए मेरे कुछ और योजनाएँ थीं। नए प्लॉट में जो अतिरिक्त राशि लगी, वह लगभग 20 लाख रुपये थी, जो मुझे ख़ुद खर्च करने पड़े।

मकान, जो लगभग 1990 में बना था, जर्जर हालत में पहुँच गया था और उसकी मरम्मत जरूरी हो गई थी। उस पर भी मुझे लगभग 15 लाख रुपये लगाने पड़े।

खेत पर भी काफी पैसा लगा—चारदिवारी से लेकर कानूनी कार्यवाही तक में ही लगभग 30 लाख रुपये खर्च हो गए।

कुल मिलाकर, 18 वर्षों में मैंने उस संपत्ति पर—जो कागज़ों में मेरी है ही नहीं—लगभग 60–70 लाख रुपये खर्च कर दिए।

आज उस संपत्ति की कीमत लगभग 2 करोड़ रुपये है। लेकिन अगर यही 70 लाख मैं अपनी किसी व्यक्तिगत संपत्ति में लगाता, तो आज उसकी कीमत आसानी से 1 से 1.5 करोड़ के बीच होती। जबकि वास्तविकता यह है कि मुझे अब केवल 60–70 लाख ही मिलेंगे—यानि मूलधन ही वापस आएगा, और लगभग 70–80 लाख रुपये बिना किसी लाभ के डूब चुके हैं।

खाने-पीने पर भी इन 18 वर्षों में करीब 18 लाख खर्च हुए होंगे, लेकिन उसे मैं गिनती में नहीं रखता, क्योंकि खेत से आय आती रही। कुछ मेडिकल खर्च और तीर्थ यात्राओं पर भी पैसा लगा, जो मेरा ही लगा—उन्हें भी अलग रख देते हैं। लेकिन यह समझना जरूरी है कि अधिकांश घरों में खेत जैसा कोई आय स्रोत मौजूद नहीं होता—इसलिए वे सभी खर्च बेटे की जेब से ही जाते हैं।

कड़वी लेकिन सच्ची बात यह है कि 90% से अधिक परिवारों में माता-पिता के पास इतना धन या संपत्ति नहीं होती कि उनके बचे हुए जीवन का खर्च उसी से चल सके। उनकी पूरी जीवन-यात्रा हमारे पैसों से चलती है—और इस खर्च का कभी कोई हिसाब नहीं होता।

अब समय आ गया है कि हम इस फालतू दुनियादारी के भ्रम से बाहर निकलें और इस साधारण लेकिन बेहद महत्वपूर्ण सत्य को समझें—माता-पिता आपकी जिम्मेदारी नहीं हैं। अगर वे आपके साथ रहते हैं, तो उनके दैनिक खर्च उनका बैंक बैलेंस, उनकी संपत्ति और उनकी आय से ही पूरे होने चाहिए। अपनी मेहनत की कमाई आपको अपने भविष्य के लिए निवेश करनी चाहिए।

यह मत सोचिए कि उनके गुजरने के बाद सारी संपत्ति आपकी ही होगी। उस संपत्ति में बहनों का हिस्सा है—और यदि वे हिस्सा न भी लें, तब भी आप पर जीवन भर का एहसान जरूर जताया जाएगा।

अब जागने का समय आ गया है।

आजाद परिंदा


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