Prabodh Govil

Abstract

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Prabodh Govil

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भूत का ज़ुनून-12

भूत का ज़ुनून-12

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भटनागर जी को ये पहेली बिल्कुल समझ में नहीं आई कि आख़िर ऐसा क्यों होता है ?

ये कैसा भूत है जो सपने और हकीक़त में कोई फ़र्क ही नहीं करता।

वो जो कुछ सपने में देखते हैं वो उनकी पत्नी को कैसे पता चल जाता है ?

इसी उधेड़बुन में लगे वो जब अगले दिन ऑफिस पहुंचे तो उन्होंने अपने मित्र विलास जी से ही सलाह लेने की ठानी।

जब विलास जी को इस अनोखे भूत के बारे में पता चला तो वो भी चकरा गए।

अगले दिन ऑफिस में छुट्टी थी। तो प्लान ये बना कि पहले तो दोनों दोस्त उस भिखारिन को खोजेंगे जो रबड़ी की दुकान के आसपास ही घूमती रहती है। फ़िर विलास जी भटनागर जी को एक ऐसी जगह लेकर जाएंगे जहां भूत- प्रेत का मुकम्मल इलाज होता है।

ये तय हुआ कि अगले दिन दोनों अपने- अपने घर में ये खबर बिल्कुल नहीं देंगे कि आज ऑफिस की छुट्टी है। तैयार होकर विलास जी भटनागर जी के घर ही आ जाएंगे और फिर वहां से दोनों उन्हीं की गाड़ी से अपनी ख़ास मुहिम पर निकल जाएंगे।

यदि घर पर छुट्टी होने की बात बता दी जाती तो मुमकिन था कि उन दोनों को कहीं बाहर जाने ही नहीं दिया जाता। और ये भी हो सकता था कि छुट्टी की तफ़रीह का लुत्फ़ लेने के लिए उन दोनों की पत्नियां भी साथ हो लेतीं।

ऐसे में उनका प्लान तो धरा का धरा ही रह जाता।

अगले दिन प्लान के मुताबिक़ विलास जी आए तो भटनागर जी भी उनके साथ ही निकल लिए।

रबड़ी भंडार के आसपास उन्हें कोई भिखारिन तो नहीं दिखाई दी मगर दोनों ने छक कर रबड़ी ज़रूर खाई। उसके बाद विलास जी भटनागर जी को अपने एक गुरुजी के पास ले गए जिनका आश्रम शहर से कुछ दूर एकांत स्थान में बना हुआ था।

बड़ी मनोरम जगह थी।

भटनागर जी ने आश्चर्य से पूछा- ये स्वामी जी भूत भगाते हैं ?

विलास जी बोले- भूत तो नहीं भगाते पर कोई भी बाधा हो तो उसे ज़रूर भगा सकते हैं। भूत आपके लिए बाधा ही तो है, इसी से यहां लाया हूं। बहुत पहुंचे हुए हैं।

सचमुच भटनागर जी की बात स्वामी जी ने बहुत ध्यान से सुनी। बीच- बीच में वो आंखें बंद भी कर लेते थे।

पूरी बात सुनने के बाद स्वामी जी कुछ न बोले। चुपचाप कुछ सोचते रहे।

विलास जी स्वामी जी से बोले- क्या सोच रहे हैं प्रभु? क्या इस संकट का कोई हल नहीं है ?

नहीं!

ओह, फ़िर ? क्या करना होगा ? विलास जी और भटनागर जी एक साथ बोल पड़े।

स्वामी जी बोले- नहीं ! ये तो बहुत आसान है।

अच्छा! दोनों की जैसे रुकी सांस फ़िर से चलने लगी।

स्वामी जी बोले- बेटा, बहुत आसान है, समझो तुम्हारी तो लॉटरी लग गई।

कैसे स्वामी जी ? भटनागर जी ने कहा।

तुम्हारी धर्मपत्नी तुम्हारे स्वप्न के विषय में जान लेती हैं ये तो तुम्हारे लिए अत्यंत हर्ष का विषय है। तुम ऐसे भूत को क्यों भगाना चाहते हो? ये तो तुम्हारे लिए वरदान है। तुम्हें अब जब भी स्वप्न आए तो तुम स्वप्न में यही देखना कि तुम सपने में अपनी पत्नी को ख़ुश करने वाली वस्तुएं ख़रीद कर दे रहे हो। उसे उसके मनपसंद वस्त्र, आभूषण आदि ख़रीद कर देना। इस तरह उसे जब ये आभास होगा कि तुम स्वप्न में उसके लिए क्याक्या कर रहे थे, तो उसकी प्रसन्नता कई गुणा बढ़ जाएगी। उसे ख़ुश देख कर भूतप्रेत भी तितर बितर हो जाएंगे। ये दुखी होने पर ही सताते हैं।

पर स्वामी जी, अपने मनपसंद ख़्वाब देखना कैसे संभव है? सपने तो अपने आप आते हैं, उन पर भला मेरा क्या नियंत्रण!

चुप! नालायक। स्वामी जी क्रोध से चिल्ला उठे। बोले- अरे मूर्ख, तेरे सपनों पर तेरी बीवी ने नियंत्रण कर लिया तो तू ख़ुद नहीं कर सकता?

भटनागर जी भय और अपमान से तिलमिला गए। लगभग मिमियाते हुए बोले- मगर कैसे?

स्वामी जी एकाएक नरम पड़े। भटनागर जी की ओर देख कर बोले- बच्चा, हमें उसी बात के सपने आते हैं जो हम हकीक़त में नहीं कर सकते। तू महंगे- महंगे शो रूम्स, ज्वैलरी शॉप आदि में जाकर अपनी पत्नी को पसंद आने वाली वस्तुएं देख। जब दिन में तू उन्हें नहीं ख़रीद पाएगा तो तू रात में उन्हीं का ख़्वाब देखेगा और सपने में उन्हें ज़रूर ख़रीद लेगा।

भटनागर जी की आंखें चमकने लगीं। उन्होंने कृतज्ञता से विलास जी की ओर देखा और दोनों दोस्त अपनी समस्या का समाधान पाकर वापस चले आए।

दोनों बहुत खुश थे।

( क्रमशः)


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