भ्रुण हत्या
भ्रुण हत्या
सांस ले रही थी वो मुझमें, अभी अभी महसूस करने लगी थी उसे मैं खुद में..धीरे से सिर उठा रही थी, बड़ी कोमल सी थी..मुझमें ज़िन्दा हो रही थी वो
नन्ही सी मेरी आँखों में पल रही थी पर उसके आकार लेने से पहले ही चला दी मैंने कैंची उस पर।
ख़त्म कर दिया उसे अस्तित्व में आने से पहले ही। पहली बार नहीं था यह, पहले भी किया था यह काम दिल पर पत्थर रख कर। तब ख़त्म किया था अपनी आशा को, उम्मीद को, अपनी भावनाओं और चाहत को और आज मार डाला अपनी इच्छाओं को।
इस तरह आशा, उम्मीद, भावना और इच्छा..चार भ्रुण हत्याएं की मैंने इन्हें विराट स्वरूप में आने से पहले ही।