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Avinash Agnihotri

Tragedy Classics Inspirational

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Avinash Agnihotri

Tragedy Classics Inspirational

भिखारी

भिखारी

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आज अचानक बेटी चित्रा के यूँ घर आ जाने से सब हतप्रभ है। उसकी पेशानी पर उभरी हुई चिंता की इन लकीरों को देख, उसके पिता को भी याद आया कि परसो ही इसकी माँ ने उन्हें बताया था।

कि पिछले कई दिनों से,फोन पर बात करते हुए वह कुछ परेशान सी लग रही थी।

यह विचार आते ही उनके मन मे सेकड़ो आशंकाओं ने जन्म ले लिया था।

कि कहीं इसके ससुराल में तो कुछ..... पर भी उन्होंने खुद को संभालते हुए,सभी को आदेश दिया कि अभी उससे कोई कुछ नही पूछेगा।

उसे अभी आराम करने दो, शाम को इत्मीनान से बात करेंगे। और फिर सभी पहले की तरह अपने अपने काम मे जुट गए।

फिर उसके पिता ने द्वार पर खड़े एक याचक को, जब एक के बाद दूसरी मांग करते हुए देखा,तब वह अपनी पत्नी को समझाते हुए बोले,ओ हो सुधा ये भिखारी है। तुम इन्हें कभी भी संतुष्ट नही कर पाओगी। इनकी एक मांग पूरी की नही, कि दूसरी इनके पास तैयार ही रहती है।

अपने पिता के ये शब्द पास बैठी चित्रा के जैसे कानो से मन तक उतर गए। और कुछ ही पलों में उसका चेहरा यूँ खिल सा गया, मानो उसके मन की कोई बहुत बडी उलझन सुलझ गई।

फिर वो मुस्कुराते हुए अपने पिता से बोली,पापा क्या अब आप मुझे मेरे घर छोड़ आएंगे। बच्चो के स्कूल से घर आने का वक्त हो चला है।


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