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Brijlala Rohanअन्वेषी

Horror Crime Thriller

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Brijlala Rohanअन्वेषी

Horror Crime Thriller

भैरव

भैरव

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मेरे चाचाजी के यहाँ आज शाम को एक बकरा आया नाम तो नहीं ही था उसका कोई लेकिन मैंने उसका काल्पनिक नाम भैरव रखा है। आश्चर्य की बात है इस प्रकार भैरव हर वर्ष हमारे चाचाजी के घर आता है और फिर काल का ग्रास बन जाता है !!

खैर छोड़िए! पिछले साल के भैरव के साथ हमारे जुड़ाव ,दोस्ती और लगाव के बारे में बात करते हैं फिलहाल!      वह बेचारा भैरव! बेचारा मैं तरस दिखाने के लिए नहीं बोल रहा हूँ अपितु स्वंय मैं उसपे तरस खाकर भी बेचारा ही बन गया उसे बचा भी नहीं सका गत वर्ष! मैं उसे उसके मरने के दिन के पहले तक रोज खाना - पानी खिलाता - पिलाता ! उसके घुला मिला रहता उसके साथ खेलता भी उसके दो नुकीले न्यारे सींगों को अपनी सिर से लगाकर खेलता भी कभी उसे पकड़कर ऊपर भी उठा देता ! कभी दूसरों के बकरियों के साथ दौड़ - रेस भी लगाता ! कभी - कभी तो कुश्ती की प्रतियोगिता भी हो जाती थी हमारे और दूसरों के बकरियों के बीच । हाँ ! इतना तो जरूर था कि बहुधा हमारी बकरी ही बाजी मार लेती थी इस तरह की प्रतिस्पर्धा में ।

 घर के लोग भी उसे बराबर पूछते रहते थे उसे दाना - पानी देने के लिए उसे घास चराने के लिए! लेकिन उस भैरव को कहाँ पता था कि यह हमदर्दी बस दिखावे की ही है ! असल में तो उसे ज्यादा से ज्यादा खिलाकर हट्टा- कट्ठा बनाने की थी ताकि माँस उसका अधिक हो सके ! 

बेचारा भैरव इन सब बातो कि परवाह किये बिना जीने जा रहा था उसे कहाँ पता था कि ये दरिन्दे दिखावे की दरिया दिली दिखा रहे हैं ?


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