भारत के मिथिला की लोक परम्परा

भारत के मिथिला की लोक परम्परा

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बच्चों,आज से तुम्हारी छुट्टियां शुरू हो रही हैं, अब से हम प्रतिदिन भारत के किसी न किसी प्रांत की विशेष प्रथा,संस्कृति,भाषा,साहित्य,लेखकों,खानपान ,पर्व,त्योहारों के बारे में चर्चा करेंगे।"नितिन चाचू ने ऐलान किया।

"चाचू,क्या मैं अपने मित्रों को भी बुला लूं ?उन्हें भी भारत के बारे में जानने की बहुत जिज्ञासा रहती है।"

"क्यों नहीं, जितने अधिक,उतना अच्छा।ज्ञान जितना बनती ,उतना बढ़ता है।"

पार्थ अपने मित्रों को सूचना देने दौड़ पड़ा।

जब अनामिका, अमित,सार्थक,अविरल,अभिनव सब अपनी - अपनी जगह ले चुके तो सबने चाचू की ओर निगाहें घुमाईं।


चाचू कुर्सी पर बैठ गए,मुस्कुरा कर अपने श्रोताओं की ओर देखा और बोले,"आज हम शुरू करेंगे सामा चकेवा की कहानी।यह मैथिलों का एक त्यौहार है इसे संदेश, चेतावनी और सुझाव का भंडार भी माना जाता है।

इस त्यौहार की सारगर्भित बात यह है कि

 भाई, पिता से भी बढ़कर रक्षक और शुभचिंतक होता है।"

"इसका क्या अर्थ हुआ,चाचाजी?"अभिनव ने जानना चाहा।

इसका अर्थ है कि भाई अपनी बहनों के ऊपर कोई भी मुसीबत ज्यादा दिनों तक नहीं रहने देते, बहन के सिर से मुसीबत टाले बगैर भाई शांत नहीं बैठता।" 

"यह बात तो सच है,मोहिनी को मैं कितना भी परेशान कर लूं,मगर कोई और करे,यह मुझे बर्दाश्त नहीं।"अभिनव ने स्वीकार किया।

"चाचाजी,कहानी बढ़ाइए,अब बीच में कोई न बोले।"अमित ने चेतावनी के स्वर में कहा।

"हां,तो मैं बता रहा था कि भाई-बहन के प्रगाढ़ स्नेह को दर्शाता ,अनगिनत विशेषताओं वाला मैथिली भाषियों यानी मैथिल ब्राह्मणों के घरों में मनाया जाने वाले इस त्यौहार का नाम है,सामा -चकेवा।"

"सामा -चकेवा', वाह,क्या नाम है!अविरल ने दोहराते हुए पूछा,यह कब और कैसे मनाया जाता है ?"

 इसे कार्तिक पंचमी यानी छठ पर्व के खरना वाले दिन मनाया जाता है।इस दिन बहनें अपने हाथों से चिकनी मिट्टी ,संठी ,जूट आदि का उपयोग कर सामा-चकेवा,वृंदावन, चुगला, आदि की अनेकों मूर्तियां बनाती हैं।"चाचू ने बताया।

"संठी,चुगला ये सब क्या हैं ?अभिनव का कौतूहल रोके नहीं रुक रहा था।

"यह प्रतीक होते हैं,जिन्हें मिट्टी से बनाया जाता है।

 शाम को टोले की लड़कियाँ बाँस की टोकरियों में अपने हाथों से बनायी हुई सामा -चकेवा की मूर्तियाँ सजाकर उत्सव मनाने के लिए घर से निकलती हैं।

पारंपरिक प्रथा के अनुसार सब एक दूसरे के दलान पर जाकर डाला फेरी करती हैं।" 

"डाला फेरी मतलब क्या,चाचाजी?"अनामिका ने मासूमियत से पूछा।

" लड़कियों का मायके आने पर अपनी सहेलियों से मिलने जाना,डाला फेरी कहलाता है।। उन्हें अपने बचपन को दोहराने का मौका मिलता है। 

 सारी सहेलियाँ डाला फेरी करते हुए अपने-अपने भाईयों का नाम लेकर ,उनकी लंबी उम्र और समृद्धि की प्रार्थना में आँचलिक गीत गाती हैं।"

"अच्छा,तब तो मैं भी राखी बंधवाने से पहले नीलू से अपनी लंबी उम्र के लिए गीत गाने की फरमाइश करूंगा।" अभिनव ने अपनी हंसी रोकते हुए कहा।

अमित ने कहा,"अभिनव ,तुम इसी तरह टोकते रहोगे तो कहानी का मज़ा कैसे लोगे?जरा शांति के साथ सुनो।"

"ठीक है,अब जब तक चाचाजी चुप नहीं होते , मैं मुंह बंद रखूंगा।"अभिनव ने का पकड़े।

चाचाजी मुस्कुराए,बोले,"बच्चों में जिज्ञासा होना अच्छी बात है,जिज्ञासा इस बात का संकेत है कि आप सुन रहे हैं,हां तो मैं कहां था?याद आया,बहने गीत गाती हैं,

आँचलिक गीत में पहले कुल देवी- देवताओं का गीत ,उसके बाद ननद-भाभी का हँसी-मजाक भरा गीत होता है।"

"ये ननद- भाभी, वहीं न जैसे बुआ और अम्मा?"अनामिका ने रिश्ते समझते हुए कहा। 

"बिल्कुल सही,वैसे ही"चाचू बोले,

कार्तिक पूर्णिमा वाले दिन सुबह से ही महिलाएँ ,घर में होने वाली बेटी की विदाई की तरह सामा की विदाई का इंतजाम करती हैं। चूड़ा- दही खिलाकर सामा की विदाई की रस्म पूरा करती हैं।उसके बाद घर की महिला सदस्य,भाइयों के साथ सामा -चकेवा वाली डाला लेकर समदाउन गाते हुए , जोते हुए खेत में या नदी किनारे इकट्ठा होती हैं।

"समदाउन मतलब, चाचाजी?"

"विवाह और विदाई के समय गाते जाने वाले गीत समदाउन कहे जाते हैं।

बहनें ,भाइयों के हाथों में मूर्तियाँ देती हैं,और भाई मूर्तियाँ तोड़कर विसर्जित करते हैं। महिलाएँ संठी से बने वृंदावन में आग लगा देती हैं। उसमे बहनें चुगला का मुँह झड़काती है।"

"ये चुगला क्या है,चाचू,क्या इसका काम चुगली करना है?"सार्थक बोला।

चाचाजी ने कहा कल आपको चुगला के बारे में बताएंगे।अब आगे सुनो,...चुगला के मुंह झड़काने के समय एक पद्य बोला जाता है ,जो बहुत ही हास्यपूर्ण होता है ।पद्य बोलते हुए सामा की विदाई का गम भूल सब के चेहरे पर हंसी आ जाती है। उसके बाद भाइयों द्वारा वृंदावन में लगी आग बुझा दी जाती है।


आठ या नौ दिनों तक लगातार चलने वाले इस त्यौहार के उत्सव का रंग ऐसा होता है कि कार्तिक पूर्णिमा की रात्रि में जब सामा विदा होती हैं तो लगता है सचमुच घर की बेटी विदा हो गयी ।   

सामा -चकेवा के त्यौहार में उत्सव मनाने के पीछे एक पौराणिक कथा है ......"

"अच्छा, इसके पीछे भी कथा है!इसका मतलब ,एक कथा में दो का मजा!"सार्थक ने कहा।


"सामा -चकेवा कृष्ण के पुत्र- पुत्री थे । सामा बचपन से वृंदावन में ऋषि -मुनियों के साथ खेलती थी।विवाह के पश्चात पहली बार वृंदावन आई तो, अपनी दासी के साथ ऋषि-मुनियों से मिलने चली गई, बचपन की तरह ही हँसते-खिलखिलाते हुए बातें कर रही थी। यह बात एक दुष्ट व्यक्ति को पसंद नहीं आई। उसने श्रीकृष्ण से जाकर चुगली कर दी कि सामा का उस ऋषि के साथ अवैध संबंध है। कृष्ण ने बिना सोचे- विचारे सामा को पक्षी बन जाने का श्राप दे दिया। चकेवा कृष्ण के इस निर्णय से आहत हो गये। वे सामा को मनुष्य रूप में लाने के लिए कठोर तपस्या करने लगे। ऋषि-मुनियों के दुख और क्रोध से वृंदावन मे आग लग गई। चकेवा की कड़ी तपस्या करके सामा मनुष्य रूप में परिवर्तित हो गई।मनुष्य रूप में आते ही सामा ने चकेवा की कलाई पर कच्चा धागा बांधा ,यह स्नेह का प्रतीक था। उसी दिन से रक्षाबंधन त्यौहार की शुरुआत हुई।कच्चा धागा बांधने के बाद सामा ने चकेवा से वृंदावन में लगी आग बुझाने का वचन लिया। चकेवा ने वृंदावन मे लगी आग बुझाई और सामा से आग्रह किया कि सबको माफ करते हुए प्रतिवर्ष मायके में कुछ दिन आकर रहे। तभी से कार्तिक मास में छठ पर्व के खरना से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक सामा के मायके आने के उपलक्ष में यह त्यौहार एक उत्सव की तरह मनाया जाता है।चाचाजी ने कथा पूरी की।

अच्छा,बच्चों क्या तुम्हें आनंद आया ?"अगर हां तो कल फिर एक नई कहानी होगी,आज के लिए इतना ही।"

"जरूर चाचाजी,आपका बहुत,बहुत धन्यवाद।"सभी निकलने लगे तभी नितिन की मम्मी सबके लिए गरमागरम हलुआ ले आईं।



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