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Mahima Bhatnagar

Abstract

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Mahima Bhatnagar

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भारत भाग्य विधाता

भारत भाग्य विधाता

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कटी फटी, उतरती जाती पैंट, बिन बाजू की बनियान और अग्रेंजी मे गिटपिट करते बेतकल्लुफ लड़के-लड़कियों का समूह सब की निगाहों का निशाना था। प्रतिमा-शलभ का भी ध्यान रह रह कर वहीं जा रहा था।

"क्या होगा इस पीढ़ी का...किसी तरह की तमीज नहीं है...पूरी नस्ल ही बर्बाद हो रही है। हिन्दुस्तान का तो भविष्य ही बिगड़ गया।" शलभ बड़बड़ाये जा रहे थे।

"ऐसा कुछ नहीं है, आजकल के बच्चे अपनी भावनाओं को जाहिर करना जानते है। हाँ, करते अपनी मर्जी का है पर जिम्मेदारी के साथ। देखो ना, अपने में ही मस्त है सब, किसी को फब्तियाँ तो नहीं कस रहे। धक्का-मुक्की तो नहीं कर रहे। आसपास वाले अपने को असुरक्षित तो नहीं महसूस कर रहे है ना...." प्रतिमा सदा से नयी पीढ़ी की पक्षधर रही है।

"लेकिन असहज तो है ना सभी लोग.." शलभ ने असहमति दर्शायी।

"अभी ये सब बेतकल्लुफी आदत में नहीं है ना, इसलिए असहज हो रहे हैं, अरे...चलिये गेट खुल गये, अंदर चलते है।"

सिनेमा हाल मे वो समूह शलभ प्रतिमा से दो तीन पंक्ति आगे बैठ गया...

"लो...इन्हें भी यही बैठना था...अब इन्हें झेलेंगे या मूवी देखेंगे..." शलभ परेशान थे।

तभी विज्ञापन खत्म होने पर राष्ट्रगान की घोषणा हुई...सभी शांतिपूर्ण तरीक़े से खड़े हो गये। लेकिन सिर्फ वहीं समूह था जो पूर्ण लय मे राष्ट्रगान गा रहा था... बाकी दर्शको को या तो राष्ट्रगान याद नही था या शायद खुल कर राष्ट्रगान गाने का हौंसला नही था। 

राष्ट्रगान समाप्त होते ही शलभ प्रसन्नता से बोले,

"तुम सही थी प्रतिमा...हिन्दुस्तान का भविष्य सही हाथों में है।


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