भाईचारा
भाईचारा
बात सन 1975 की है, तब समाज में आज की तरह मोबाइल फोन का प्रचलन नहीं था I लोग अपनी बात को दूर क्षेत्र में पहुँचाने के लिए तार पत्र को प्रयोग में लाया करते थे I नरेश को भी अपने घर के बारे में पत्र आने पर ही जानकारी प्राप्त होती थी I वह अपने नौकरी के लिए पश्चिम बंगाल में आ गया था और अपने पत्नी और दो बच्चों को भी ले आया था,, लेकिन उसके दो भाई और उनका परिवार बिहार में रहता था I नरेश अपने भाइयों से बहुत ज्यादा प्यार करता था I उसे जब भी कभी समय मिलता तो वो अपने गांव को चल देता था I नरेश की आमदनी उतनी नहीं थी, जिस कारण वह अपने दो बच्चों और पत्नी का पेट किसी तरह पालता उसने अपने बच्चों के पेट पालने के लिए नौकरी से आने के बाद कुछ ट्यूशन लेना पड़ता था I इसी तरह नरेश की जिन्दगी गुजर रही थी भले ही नरेश के पास ज्यादा पैसे नहीं थे लेकिन जो भी था उसमें उसका परिवार संतुष्ट था I
एक दिन नरेश ट्यूशन पढ़ा कर घर की ओर लौट रहा था I सामने से कुछ लोगों का झुंड हाथ में तलवार और बंदूक लिए रास्ते पर चीखते हुए जा रहे थे I तब के समय में ये बात बहुत आम हुआ करता था I आये दिन लोग धर्म के नाम पर लड़ते हुए देखे जाते थे I नरेश ने धर्म के नाम पर आतंक के बारे में सुना तो था,, आज पहली बार देख भी रहा था I नरेश ने जब ये सब देखा तो वो अपनी साइकिल लेकर एक गली के कोने में ही छिप गया था I वो इस झुंड के पार हो जाने का इंतजार कर रहा था I गली में छुपे हुए उसका कलेजा मुँह को आया हुआ था,, आज उसे अपनी जिंदगी पहली बार सुरक्षित महसूस नहीं होता लग रहा था I उसके कान में कुछ आवाज सुनाई दिया," उधर कोई है.. पकड़ कर लाओ" नरेश समझ गया अब आज उसका जिंदगी हाथों से निकल गया,, सभी लोग उसके तरफ चीखते हुए बढ़ने लगे... नरेश अपनी आँख बंद किए अपने भगवान और अपने परिवार को याद कर रहा था,, तभी उसे किसी ने हाथ पकड़ कर खिंचा I अगले पल नरेश एक घर में था वह जिस घर के सामने छिपा था उसी घर के किसी सदस्य ने उसका हाथ खिंच कर अपने घर में कर लिया था I नरेश ने आँखे खोल कर देखा सामने एक 34 साल का तगड़ा आदमी था Iउसके भेष- भूसा को देखकर समझ आ रहा था कि वो कोई मुस्लिम व्यक्ति था I नरेश अभी उतना ही डरा हुआ था उस आदमी ने नरेश को शांत रहने का इशारा किया... तभी जो झुंड के लोग थे उन्होंने दरवाजे पर दस्तक दी,, अंदर वाले व्यक्ति ने बिना दरवाजे को खोले आवाज़ दिया कौन है? " बाहर से आवाज आयी," अंदर में कोई है क्या? अभी एक हिन्दू दिखा था I" अंदर वाले व्यक्ति ने कहा,"यहाँ करीम है कोई हिन्दू नहीं आगे बढ़ो" l नरेश को जो हो रहा था उसे समझ नहीं आ रहा था.. एक तरफ बाहर वो मुस्लिम समुदाय था जो बिना कारण उसके केवल हिन्दू धर्म का होने के लिए जान लेना चाहते थे I वही दूसरी तरफ ये करीम था जो अपने ही समुदाय के लोगों से नरेश को झूठ बोलकर बचा रहा था I थोड़ी देर बाद जब वो दंगाई लोग चले गए तो करीम ने नरेश के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, "भाई जान डरो नहीं अब वो चले गए हैं और इतनी रात को अकेले ना घूमा करो माहौल अच्छा नहीं चल रहा है आजकल I" नरेश जो अभी तक बुरी तरह डरा हुआ था करीम की बात से कुछ निश्चिंत हुआ और बोला,, "मुझे समझ नहीं आता आप अपने ही समुदाय के लोगों से झूठ बोलकर मेरी जान क्यों बचाए I" करीम ने कहा,, "माफ़ कीजियेगा भाई जान इन दंगाइयों का कोई हिन्दू या मुस्लिम समुदाय नहीं होता इनका केवल एक ही समुदाय है वो है आतंकीI" नरेश को करीम की बात सही लगी,, उसने हाथ जोड़कर कहा, "आज आपके कारण मैं ज़िन्दा हूँ मेरी ये जिन्दगी आप का दिया हुआ उपहार है I" करीम ने इस बार हाथ जोड़कर कहा, " नहीं भाई जान ये तो भाईचारा है अगली बार इसी तरह कोई मुस्लिम आपको किसी मुसीबत में दिखे तो ये ना
सोचना कि ये मेरे क़ौम का नहीं है उसकी मदद कर देना और इस भाईचारे को बढ़ाते रहना,, देखना एक दिन हम केवल इंसान बनेंगे हिन्दू या मुस्लिम नहीं I" उस दिन नरेश ने एक नया बात सीखा वो कुछ देर बाद करीम से घर जाने की अनुमति माँगने लगा I करीम ने कहा, "मैं आपको बिना घर तक छोड़े अभी नहीं मानूँगा I" नरेश आज एक मुस्लिम को नहीं बल्कि एक सच्चे इंसान को अपने आँखों के सामने देख रहा था I करीम, नरेश को घर तक पहुँचा कर आया I इस बात को हुए कुछ महीने बीत चुके लेकिन नरेश को आज भी करीम बहुत अच्छे से याद था I गर्मियाँ शुरू हुई नरेश अपने गांव जा रहा था,, उसके साथ उसका पूरा परिवार भी था सभी घर लौटने के लिए बहुत उत्साहित थे I तब के समय में लोग टिकट रिजर्व करके नहीं जाते थे नरेश जिस बोगी में था उसी बोगी में एक मुस्लिम परिवार था,, उस परिवार में तीन बच्चे और उसका पिता एक महिला थी I नरेश की नजर उस परिवार के मुखिया पर पड़ा जो बहुत ही परेशान दिख रहा था, वो बार - बार ट्रेन में इधर - उधर देखता फिर एक कोना पकड़ कर बैठ जाता I नरेश ये सब देख रहा था,, कुछ देर बाद टिकट के लिए टीटी आया नरेश ने अपनी टिकट निकाल कर दिखा दिया I अब टीटी उस मुस्लिम परिवार की तरफ बढ़ा, परिवार का जो मुखिया था वो अचानक टीटी के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो गया,, " सर वो क्या है कि मेरे पास टिकट नहीं है आपने गांव से लौट रहा हूँ, गांव जाकर पता चला कि भाई जान गुजर गए हैं जो भी पैसे थे उनके कब्र में दफनाने में खर्च हो गए,, बस चार स्टेशन बाद मेरा शहर कोडरमा आ जाएगा वहीं उतर जाऊँगा हमें जाने दो साहब जी I" बोलता हुआ वो व्यक्ति गिड़गिड़ा रहा था लेकिन टीटी को जैसे उसकी कोई बात सुनाई नहीं दे रहा था उसने कड़क भरी आवाज़ में कहा," तू लोगों का ये रोज का कहानी है या तो चुपचाप पैसे दो नहीं तो अगले स्टेशन पर उतार कर जेल में पूरे परिवार के साथ ठूँस दूँगा I" वो व्यक्ति वापस गिड़गिड़ा ने लगा,, "नहीं साहब यकीन करो अपने पास बिल्कुल पैसा नहीं है खुदा कसम I साहब कभी ऐसा नहीं होता है खुदा का वास्ता आपको जाने दो इस बार I" उसके बात पर टीटी फिर से चीखते हुए बोलता है, "ये सब हम रोज देखते हैं हमें बेवक़ूफ़ ना बना I अगले स्टेशन पर सब उतरो I" इस बार वो व्यक्ति रोने लगता है.... नरेश ये सब देख रहा होता है वो अपने जेब में देखता है उसके पास भी करीब 800 रूपए ही थे जिसे उसने अपने गांव जाकर खर्च करने के लिए और वापस आने के लिए रखा था I वो चुप बैठा हुआ रहता है उसकी नजर फिर से उस व्यक्ति के तरफ जाता है जो बहुत ज्यादा डरा हुआ था,,,नरेश को अपनी वो रात याद आ जाती है बिल्कुल ऐसा ही दहशत उसकी आँखों में था उस रात अगर उस दिन भी करीम अपने जान की चिंता करता तो आज नरेश जिंदा नहीं रहता I नरेश इस पल बिना कुछ सोचे कि वो गांव पर क्या करेगा, वापस कैसे लौटेगा उठकर खड़ा हो जाता है I वो टीटी को आवाज लगाता है," साहब इनके टिकट का पैसा हमसे ले लो" नरेश की बात सुनकर टीटी के साथ ही बोगी में भरे सभी हिन्दू - मुस्लिम परिवार उसके तरफ देखने लगते हैं I टीटी बोलता है, "ठीक है लाओ दो" नरेश 500 रुपये टीटी को देता है I टीटी वहाँ से चला जाता है I जो व्यक्ति था वो नरेश का हाथ पकड़ कर रोने लगता है,," आज आपने मेरी इज़्ज़त बचा ली भाई जान" नरेश उसे बैठा कर बोलता है, "नहीं ये तो भाईचारा है... कभी आपको भी कोई व्यक्ति किसी मुश्किल में दिखे तो उसे अपने भाईचारा से सहयोग कीजिएगा I ये भाईचारा रुकना नहीं चाहिए I उस व्यक्ति ने नरेश को ये कसम दिया कि इस भाईचारे को वो याद रखेगा और अपने जीवन में जब भी किसी को आवश्यकता होगी तो जरूर मदद करेगा I