Archana Kumari

Others

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हरियाली तीज

हरियाली तीज

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"आशी, तूने हरी चूडिय़ां जो उस दिन देखी थी ना!! मैं आज ले आयी तेरे साड़ी के साथ बहुत अच्छी लगेंगी, और कुछ चाहिए बेटा? अगर याद आए तो, एक काम करना फोन कर लेना I पापा की ट्रेन 7बजे है I"


"माँ, सुनो ना जरा छुटकी को फोन दे दो! कुछ जरूरी बात करनी थी I"


"हाँ, रुक आवाज़ लगाती हूँ I ये छुटकी तो इस दो कमरे के घर में ही खोई रहती है I पूरा दिन बोलो तो ये मोबाइल पर निकाल दे I मुझे तो समझ नहीं आता इस फोन में ये लड़की करती क्या है?"


"ये लो तुम्हारी दीदी है फोन पर..... बात करो I" माँ छुटकी को फोन पकड़ा देती है I दूसरी तरफ से आवाज आता है I


"हैलो!! छुटकी जो बोल रही हूँ ध्यान से सुनना I माँ वही है या चली गयी?"


"यहीं सामने खड़ी है, क्या हुआ?" 


"तू उनसे थोड़ी दूर चली जा, देख पापा को तू किसी तरह यहाँ आने से रोक दे I" छुटकी जो अपने माँ से थोड़ी दूर जाने की कोशिश कर रही थी उसके पैर रुक जाते हैं I एक अजीब सा अनहोनी का उसे एहसास होता है I


"दीदी! ऐसा क्यों बोल रही हो? ये पहला सावन है तुम्हारा शादी के बाद... ये तो पहली 'हरियाली तीज' है तुम्हारी ना.... ऐसे में तो मायके से ही ल़डकियों के साज- श्रृंगार के समान जाते हैं I एक बात पूछूँ!!! वहाँ सब ठीक तो है ना?" 


इस प्रश्न ने आशी के आँखों को आँसू से भर दिया, उसका गला भर आया... उसने अपने भावना पर काबू करते हुए कहा -" हाँ!! यहाँ क्या होगा? देख ना छुटकी अभी तीन महीने तो पापा ने शादी में इतना कुछ देकर भेजा है...... और ये तू भी जानती है कि इसके कारण पापा को कितने पैसे का कर्ज हो गया है I" 


"दीदी, तुम्हें लगता है कि पापा और माँ मानेंगे? और दीदी माँ तो आज सुबह से तुम्हारे पास भेजने को एक छोटी से छोटी चीजों को एक जगह रख रही है ताकि कुछ छूट ना जाए I" 


थोड़ा रूककर फ़िर बोलती है - "दीदी!! पता है माँ सुबह से एक पैरों पर दौड़ रही है और क्या बोल रही है? आशी को बचपन से हरियाली तीज बहुत पसंद हैI सावन आते ही उसका(आशी) शुरू हो जाता था.... माँ मुझे मेहन्दी लगानी है, माँ मुझे हरी चूडिय़ां ला दो ना I हर साल सावन में तुम्हारा हरे रंग का सलवार सिवाना, तुम्हारी एक- एक बात को माँ सुबह से कई बार दुहरा चुकी है... और तुम बोलती हो पापा को मना कर दो I"


आशी, छुटकी की बातों को सुन कर रोना शुरू कर देती है लेकिन अपने आप को सम्हालते हुए बोली - - 


" पता है छुटकी वो बचपना था मेरा, आज हर पल पापा का कर्ज याद आता है , जो उन्होंने मेरी शादी के लिए ले रखे हैं I" 


"सुनो दीदी, मुझे इतना पता है कि अगर तुम पापा को मना करोगी ना तो वो और ज्यादा दुखी होंगे... आज उनको ये अफसोस नहीं की उनके उपर कर्ज है बल्कि सुबह से उनको ये खुशी है कि तीन महीने बाद वो कल तुमसे मिलने वाले हैं, वहीं अगर माँ का बस चले तो तुम्हारे लिए हर वो समान ला कर तुम्हारे थैले में भरना चाहती है जो तुम्हें खुश करे I"


"छुटकी, सुन मेरी सास बुला रही है... अभी फोन रखती हूँ I" 


बोलते हुए बिना छुटकी का जबाव सुने आशी ने फोन रख  दिया I आशी और कुछ सुनती तो शायद उसके आँसू और हिचकियों से छुटकी समझ जाती कि उसकी दीदी रो रही है I अभी तीन महीने पहले ही तो 'आशी' शादी करके इस घर में आयी थी.... जाने कितने सपनों को लेकर उसका पति ऐसा होगा, वैसा होगा, उसकी माँ ने भी तो बोला था-" एक घर से दूसरे घर में जा रही हो बस इतना समझना.. आशी, अब वो तुम्हारा घर है I" 


आशी ने अपनी नजर एक बार चारों तरफ़ कमरे में दौड़ाई, माँ बोलती है ये अपना घर है फिर क्यों ये मुझे अपना सा नहीं लगता I क्या अपने घर में भी रोज ऐसे ही ताने दिए जाते हैं.... माँ डांट तो हमेसा लगाती थी पर कभी ऐसा ताना नहीं दिया जो दिल को दुखा दे I आशी को अपना पहला दिन याद आ गया जैसे वो दुल्हन बनकर घर आयी थी... अपने कमरे में जा कर बैठी ही थी कि उसकी सास की तेज आवाज़ ने उसका ध्यान खिंच लिया था I उसे आज भी याद है उसके द्वारा सास का बोला हुआ एक - एक शब्द, "हे भगवान!! हम तो इस शादी में पूरी तरह ठगा गये... एक ढंग का समान नहीं दिया है इसके घरवालों ने I"


'आशी' के कान में ये शब्द कोई जहर से कम ना लगे थे.... उसने अपने पिता और भाई को एक - एक समान के लिए घंटों भाग दौड़ करते देखा था I उसे बहुत अच्छे से याद है उसके भाई ने कहा था, "हम तो अपनी बहन को सबसे अच्छा हर समान देंगे... क्योंकि हम दहेज सोच कर नहीं दे रहे हैं, हम तो ये सोचकर दे रहे हैं कि अपनी बहन को दे रहे हैं I उसके पापा ने तो शायद उसके जन्म लेते ही एक - एक कर पैसा जोड़ना शुरू कर दिया था ताकि बेटी की शादी में कोई कमी ना रह जाए I उन मेहनत की कमाई को एक पल में खराब बोल देना... आशी का दिल अंदर से कितना दुखी हुआ था वही जानती थी I आज तीन महीने हो गए थे लेकिन तानों का कारबार अभी भी जारी था I आज सुबह ही नरेश (आशी का पति) ऑफिस जाते समय बोल गया था, "सुनो अपने पिता को फोन करके बोल देना,ढंग के कपड़े लाना हो तो लाए नहीं तो रहने दें I मुझे सबसे सुनना पड़ता है इसके ससुराल वालों ने ऐसा दिया तो वैसा दिया I" 


आशी को उस समय मन किया कि बोल ही दे... तुम्हें भी तो बोला था आते हुए मेहंदी लेते आना Iआज सावन आए 10 दिन निकल गए अभी तक हाथों पर मेहंदी नहीं लगी I एक दिन ननद अपने लिए मेहंदी ले कर आयी तो उसने आशी से अपने हाथों पर मेहन्दी लगवा लिया I कुछ मेहन्दी अभी भी बची हुई थी.... आशी ने सोचा इसे फेंकने से अच्छा अपने हाथों पर लगा के सावन में मेहन्दी लगाने की रस्म पूरी कर ले I मेहन्दी लगाए हुए आधा घंटा भी नहीं हुआ था सास कमरे आ कर चाय माँगने लगी... हाथों में मेहन्दी लगा देखते ही पूरा घर सर पर उठा लिया... "लो जी काम के समय में यहाँ मेहँदी लगा कर बैठा जा रहा है I" आशी ने गुस्से में जा कर तुरंत हाथ धो लिया I उस दिन भी उसे अपने मायके में मेहँदी लगाने पर माँ के हाथ से खाना खिलाना याद करके कितना रोना आया था I


आशी जानती थी, उसके माँ - पापा अपनी हर कोशिश करके उसको हर अच्छी समान देने की कोशिश में आज भी लगे होंगे लेकिन यहाँ उसे किसी को कदर नहीं था इसलिए तो वह चाहती थी कि उसके पापा आए ही नहीं.... लेकिन वो ये भी जानती थी कि अगर वो सामने से मना कर देती तो उसके घरवालों को कितना बुरा लगता आखिर उसके घरवालों के लिए भी तो उनकी बेटी का शादी के बाद पहला सावन था I 


    आशी के मायके का दृश्य

आशी के फोन रखते ही, आशी की माँ छुटकी से पूछने लगी, "क्या बोल रही थी आशी तुझसे?" 


"कुछ नहीं माँ, बस इतना की पापा कब तक आएँगे?" 


"ये तो वो मुझसे भी पूछ सकती थी... फिर तुझे फोन देने को क्यों बोला? तू मुझसे कुछ छिपा तो नहीं रही है ना?" 


"नहीं माँ, आपको तैयारी नहीं करनी दीदी के पास भेजने वालों के समान के लिए? "


" अरे! हाँ जरा हीरा को फोन लगा... अभी तक पायल नहीं पहुंचाया है I ये लोग भी ना कर्ज के नाम से ऐसे करते हैं जैसे कभी पैसे लेंगे ही नहीं I शाम के 4 बज गए अभी तक पायल नहीं पहुंचाये I" 


दरवाजे पर दस्तक होती है, लगता है हीरा आ गया I बोलते हुए आशी की माँ दरवाजा खोलती है I दूसरे कमरे से आशी के पिता भी निकल कर आ जाते हैं I 


"आइए! आपकी ही बात अभी हो रही थी... पायल दिखा दीजिए I" 


हीरा तीन - चार थैलियों को निकाल कर सामने रखता है, "भाभी एक बात बोलूँ आपने अभी तक शादी में लिए गहने का पैसा नहीं दिया है और फिर ये पायल... देखिए आप ये ना सोचिए कि मैं आपसे पैसे माँग रहा हूँ I मैं बस इतना बोल रहा था इतनी फिजूल खर्च क्यों?" 


" हीरा जी आपके पैसे भगवान के दया से जल्द चुका देंगे, बेटी की शादी के बाद पहला सावन की ये हरियाली तीज है I सुना - सुना अच्छा नहीं लगेगा I"


आशी के माँ और पापा पायल पसंद करने लगते हैं I


     आशी के ससुराल का दृश्य 


आशी सुबह से अपने काम को जल्दी - जल्दी निपटाने में जुटी हैं ताकि जब उसके पापा आए तो बैठ कर उनसे थोड़ी देर बात कर पाए I उसका ध्यान बार - बार घड़ी के सूई पर है I करीब 11 बजते ही उसके पिता पहुँच जाते हैं..... आशी को लगता है जैसे कितने सालों बाद अपने पिता को देख रही हो I

नाश्ता करने के बाद, आशी के पिता उसे थैला दे कर बोलते हैं बेटा- " इसमें माँ ने तेरे लिए कुछ सामान भिजवाए है रख ले I" 


आशी उसे लेकर अपने कमरे में आती है, पीछे से उसकी सास भी पहुँच जाती है, "देखूँ क्या आया है पहले सावन के हरियाली तीज पर I" 


आशी थैले को सास के सामने खोल कर रख देती है, "शादी के पहले सावन पर कौन चाँदी का समान भिजवाता है?" 

आशी बिना कुछ बोले समान को उठा कर अपने अलमारी में रख कर अपने पिता के पास आ कर बैठ जाती है और कई घंटे तक मन भर उनसे बातें करती है I 


शाम को उसके पति के घर आते ही उसकी सास का ताना शुरू हो जाता है Iआशी का पति कमरे में आ कर आशी को बोलता है -" कहा था न! अपने घर वालों को मना कर दो I अब माँ मुझे सुना रहीं हैं I" 


आशी को अचानक से पता नहीं क्या होता है, वो बोल पड़ती है, "हाँ तुमने कहा था और पता है... मैंने फोन भी किया था पर पता चला माँ - पापा को तो फुर्सत ही नहीं थी मेरी बात सुनने को Iमाँ मेहँदी लाने में व्यस्त थी क्योंकि उन्हें पता था उनकी बेटी को मेहँदी लगाना कितना पसंद है.... वही मेहँदी जो उस दिन यहाँ लगाया था तो तुम्हारी माँ ने काम की गिनती याद दिला कर मेरे हाथों पर आधा घंटा भी नहीं रहने दिया था I वही मेहँदी जिसे तुमसे मैं पिछले एक सप्ताह से लाने की ज़िद कर रही थी तुम समझ सकते हो कितना क़ीमती है ये मेहँदी I फिर मैंने अपने पापा को भी फोन लगाया पता चला वो तो उस दुकानदार से बात करने में व्यस्त थे... जिनके कर्ज अभी भी वो नहीं चुका पाए हैं शादी के गहने का कर्ज चुका नहीं पाए उनसे मेरे पापा पायल लेने गए थे I पता है क्यों उनकी बेटी का शादी के बाद पहला सावन का तीज था ना I कैसे मैं बोलती कि इसे भी क़ीमती कुछ लाओ I इससे क़ीमती कुछ होता है क्या? 


आशी के बातों का नरेश के पास कोई जवाब नहीं होता है, वो चुपचाप कमरे से बाहर चला जाता है I

      हरियाली तीज वाले दिन

घर में सुबह से आशी शाम की पूजा की तैयारियों में व्यस्त है I दिन भर तैयारियों के के बाद शाम का समय आ गया आशी नहा कर तैयार होने जाती है, आशी अलमारी से अपनी माँ की दी हुई थैली को निकालती है.... माँ ने साड़ी के साथ का मेचिंग चूड़ी, बिंदी, कान के झूमके हर छोटी-सी चीजों को ध्यान से रख दिया  था I आशी एक - एक समान को उठा कर बहुत ही प्यार से उसको पहन रही थी I जब वह पूरी तरह से तैयार हो गयी, उसने अपनी बहन को वीडियो कॉल लगाया I


"छुटकी ये देख कैसी लग रहीं हूँ?" 


"बहुत सुन्दर दीदी"


"ये देख मैंने पूरे हाथ में भरके मेहँदी भी लगायी है I माँ को बुला ना उसे भी दिखा I" छुटकी माँ को आवाज देकर बुलाती है I 


"माँ, ये देखो कैसी लग रहीं हूँ?" 


" बहुत सुन्दर मेरी गुड़िया(आशी को प्यार से), बहुत सुंदर I" 


"अच्छा सुनो मैं अपनी कुछ फोटो भेजती हूँ पापा को भी दिखा देना I" 


"हाँ, भेज देना मेरी गुड़िया और आज अपनी नजर उतार देना इतनी सुन्दर दिख रही है मेरी ही नजर ना लग जाए I" 


आशी माँ को अपनी मेहँदी भी दिखाती है I माँ के आँख में खुशियों की चमक देखते बनती है I



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