क्या इतना ही काफी है?
क्या इतना ही काफी है?


सारांश - हम इंसानों को अपने जिम्मेदारी से आज़ाद होना बहुत पसंद है... लेकिन क्या जिम्मेदारी हमारा पीछा छोड़कर जाती है?
मेरे कहानी के पात्र आपस में शायद आपको जुड़े हुआ ना लगे लेकिन मैंने एक सोच को जोड़ने की कोशिश की है...
मैं किराये के मकान में जहाँ रहती थी उसके नीचे वाले घर में एक परिवार रहता था उनकी बेटी की उम्र मुझसे 2 साल ज्यादा था I लड़की देखने में साधारण सी थी और किसी कारण पढ़ाई में भी कुछ ज्यादा तेज़ नहीं थी, इसलिए एक उम्र होने पर उसके घरवाले उसकी शादी के लिए लड़के ढूंढने लगे I बात कुछ बड़ी और महत्वपूर्ण नहीं है.... बात खास ये है कि उन्होंने जिस लड़के का चुनाव किया था.... सुनने में आया कि वह कोई ऑटो चालक था... उन्होंने इस लड़के का चुनाव इसलिए किया क्योंकि लड़का दहेज कम ले रहा था I
शादी हुआ करीब 1 साल के ही अंदर लड़की को पहला बच्चा होने वाला था I लड़की अपने मायके आ गयी थी कारण यह था कि उसके ससुराल में उसके प्रसूति के समय में उचित खान - पान की व्यवस्था नहीं होना I लड़की को जब बच्चा हुआ उसका अस्पताल का ख़र्चा उसके मायके वालों ने ही किया I
क़रीब बच्चा 3 महीने का जब हुआ वो अपने बच्चे को लेकर ससुराल चली गयी I लेकिन करीब एक साल के भीतर ही फ़िर वापस बच्चे के साथ आ गयी... सुनने में आया उसके पति को काम से निकाल दिया गया है.... कुछ महीने तो घरवालों ने उसे अपने पास रखा... लेकिन शादी के बाद बेटी मायके में अच्छी नहीं लगती, तो वापस तो उसे जाना ही पड़ता... समाधान निकाला गया लड़की के घर वालों ने लड़की के पति के लिए एक ऑटो ख़रीद कर दे दिया I अब लड़की वापस ससुराल जा रही थी I
करीब 3 साल बाद एक दिन उस लड़की के बच्चे को मैंने देखा मुझे लगा शायद अपने माँ के साथ वापस आया है नानी घर घूमनेI लेकिन ऐसा नहीं था.... पता चला बच्चे की अपने दादी घर में अच्छी परवरिश नहीं हो रही थी जिस कारण उसके मायके वालों को चिंता उसके बच्चे की पढ़ाई की थी इसलिए उस 4 साल के बच्चे को अपने साथ लिवा लाए उसके माँ से दूर I
मन में एक विचार आया बेटी की शादी तो कम दहेज देने के चक्कर में किसी से भी करवा कर अपनी जिम्मेदारी से बच लिए... लेकिन क्या सच में अपनी जिम्मेदारी से बच पाए नहीं बल्कि पूरी जिंदगी उसके समस्याओं से घिर गए I
इसे बेहतर होता थोड़े और पैसे खर्च कर एक ढंग का लड़का ढूंढ लेते.... शायद आपको भी यही सही लगा होगा I चलिए इस प्रश्न को थोड़ा और समझते हैं... इस लड़की का एक छोटा भाई था... उस लड़की के शादी के करीब 5 साल बाद उसके भाई का रेलवे में नौकरी हो गयी अब उसके पिता के पास रोज नए रिश्ते आ रहे थे... लेकिन उस लड़के के पिता इस इंतजार में हैं कि जहां सबसे ज्यादा मोटी रकम मिले वहाँ शादी तय करें I
कमाल है ना जब बेटी की शादी करनी थी तो कम से कम दहेज देना पड़े और जब बेटे की शादी करनी है तो ज्यादा से ज्यादा पैसे मिल जाए... आपका मन करे तो आप दहेज प्रथा को गाली दे लेI लेकिन मैं आपको मेरे प्रश्न से भागने नहीं दूँगी I क्या लड़की की शादी तक की ही जिम्मेदारी हमारी है?
आप बोल सकते हैं कहाँ जिम्मेदारी से भागे बल्कि उसके मायके वालों ने तो पूरी मदद की थी ... उस लड़की के मायके वालों का दिल पिघला पर सच्चाई यही है कि कितने लोग शादी करने के बाद बेटियों को यही ज्ञान देते हैं... अब वही तुम्हारा घर है I मेरा दूसरा प्रश्न हम ऐसा क्यों सोचते हैं कि बेटियों को शादी कर दो बस हम अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हुए I क्या जरूरत नहीं कि हम अपनी बेटियों को आत्मनिर्भर बनाये... ताकी वो किसी भी मुसीबत में अपने हिम्मत से अपने घर को अपने को मज़बूत बना सके I
अगर आप ये दलील पेश करने की सोच रहे हैं कि आपने तो कहा कि लड़की पढ़ने में अच्छी नहीं थी तो मेरा आपसे एक प्रश्न है.... अगर आपके बेटे पढ़ने में अच्छे नहीं होते तो क्या आप उसकी शादी करवा कर बोलते हैं.. अब अपनी गृहस्थ जीवन देखो.. नहीं बल्कि आप उसे तब तक उसे संचित करते हैं जब तक वह आत्मनिर्भर ना बने I फिर लड़कियों के साथ ये भेद - भाव क्यों ?
चलिए इस पात्र में तो शायद ये दलील देकर खुद को बचा ले... मेरी अगली पात्र को मैं अपनी बहन के माध्यम से जानती हूँ.. बहुत ही ग़रीब परिवार फ़िर भी लड़की के अंदर पढ़ने का ज़ज्बा था इसलिए उसने मास्टर्स की पढ़ाई कर ली... लेकिन मास्टर्स करते ही उसकी पढ़ाई छुड़वा दी गयी और उसके लिए रिश्ते ढूंढे जाने लगे..... एक दिन पता चला उसकी शादी तय हो गयी है... मैंने अपनी बहन से लड़के के बारे में पूछा पता चला कि लड़का कम ही पढ़ा लिखा है और किराने की दुकान है I मैंने फ़िर अपनी बहन से पूछा तो क्या वो लड़की शादी से खुश है... बहन ने कहा नहीं लेकिन अब उसकी उम्र हो गयी है अगर उसकी शादी इस उम्र में ना हो तो उसके जात में फ़िर लड़के नहीं मिलते... और लड़की के परिवार की आर्थिक स्थिति भी कुछ खास अच्छी नहीं है तो लड़की को कम दहेज देकर किसी तरह शादी करके निपटाना तो होगा I मैंने अपनी बहन से कहा तो उसने मास्टर्स किया ही है कहीं नौकरी पकड़ ले साथ में सरकारी नौकरी की तैयारी करे I बहन का जवाब था नहीं उसके घर वाले बस किसी तरह उसकी शादी करवा देना चाहते हैं I वरना फ़िर उसके जाति में लड़के नहीं मिलते I
कमाल की बात ये है कि उस जाति में मैंने किसी लड़के को नहीं देखा जिसकी पढ़ाई को रुकवा कर शादी करवा दी जाती है कि फिर लड़की नहीं मिलेगीI
मेरी अगली पात्र भी मेरी बहन की सहेली ही है... इतनी खूबसूरत की एक बार आप उसे देखे तो आप भी सोच में पड़ जाए कि इसे तो फ़िल्म जगत में होना चाहिए.... उसके परिवार की आर्थिक स्थिति भी अच्छी है, लड़की क़रीब 22 साल कि हुईं उसकी शादी तय की गयी... जैसा कि मैंने बताया लड़की की परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी थी तो सरकारी नौकरी वाले लड़के को ढूंढ कर निकाला गया... लेकिन इतनी सुन्दर लड़की के लिए जिस लड़के को चुना गया वो उससे उम्र में 9 साल बड़ा था I
ये कोई दिक्कत नहीं की लड़के की उम्र लड़की से ज्यादा हो... दिक्कत तब शुरू हुई जब लड़के को लड़की के साथ निभाने में आत्मविश्वास की कमी महसूस होने लगी.... जिसके वजह से दोनों में झगड़ा शुरू हो गया और अंत में दोनों का विवाह खत्म हो गया I लड़की वालों ने तो सोचा की लड़की सुन्दर है तो क्या लड़के के साथ निबाह तो कर ही लेगी... लड़की ने तो कर भी लिया I उसने अपने घर पर कभी ये शिकायत नहीं किया की उसकी विवाह उसे बड़े उम्र के लड़के के साथ क्यों किया गया I पर लड़के का शक क्या ये वह बर्दाश्त कर पाती I
लड़की के घर वालों ने एक बार भी ज़रूरी नहीं समझा की इस कम उम्र लड़की को थोड़ा जिंदगी को समझने का मौका दिया जाये I
ऐसे और कई पात्र हैं मेरी जिंदगी में बताने बैठूं तो कहानी से उपन्यास बन जाए... ये सभी पात्र सच में है... मेरा प्रश्न इतना है कि हमने कह तो दिया की हम लड़के - लड़कियों में भेद नहीं करते I हम तो अपनी बेटी को रोक टोक नहीं करते लेकिन ये झूठ है हर माँ पिता का सपना यही होता की बेटे की अच्छी नौकरी और बेटी की अच्छी शादी हो जाए बस इतना ही काफी है.... लेकिन नहीं इतना ही काफ़ी नहीं है I जी इतना ही काफी नहीं है... बेटियों से जुड़ी समस्याओं का अंत तब तक नहीं होता जब तक आप उसे आत्मनिर्भर बनना नहीं सिखाते I इससे उनकी जिंदगी की मुसीबतें तो नहीं खत्म होंगी, लेकिन उनको इन मुश्किलों से लड़ने की हिम्मत जरूर मिलेगी I