Archana Kumari

Abstract

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Archana Kumari

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अमर जवान

अमर जवान

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दो कमरों का छोटा सा मकान जिसमें इस परिवार की जिंदगी बस गुजर रही थी, माँ - बाप मिलकर कमाते और अपने इकलौते बेटे को हर खुशी देने की कोशिश करते। बाप वैभव ज्यादा पढ़ा - लिखा नहीं था इस कारण ऑटो रिक्शा चालक था, और माँ शांति घर से दूर अमीरों की बस्ती में घर का काम करती जिससे घर चलाने को और बेटे के परवरिश का काम चल जाता था। जहाँ दिल्ली जैसे शहर में अपना पेट पालना बड़ा मुश्किल काम था, वंहा किसी तरह तीनों परिवार के सदस्य कम पैसे में हँसी - खुशी जीवन बिता रहे थे। इस परिवार के पास एक ही दौलत था, वो था इनका लाडला बेटा अमन, शादी के 8 साल बाद अमन पैदा हुआ था।

उसके पैदा होते ही वैभव के भाई सब उससे जलने लगे क्योंकि उनके वैभव के हिस्से की जमीन हथियाने की आश टूट गयी थी। कई बार वैभव के बेटे अमन को मरने की कोशिश भी की गयी लेकिन विधाता को पूज कर शांति ने अमन को जना था, इतनी आसानी से कैसे उसे कुछ होता। वैभव कुछ दिन ये सब बर्दाश्त किया फिर अपने पत्नी और बेटे को लेकर दिल्ली आ कर मेहनत करके अपना और अपने परिवार का पेट पालने लगा, साथ ही शांति जैसी पत्नी भी तो थी जो अपने पति के कंधे से कंधा मिलाकर चलती और साथ देती। शांति जहाँ काम करती वंहा अपने बेटे को भी ले जाती थी क्योंकि घर पर अनजाने शहर में उसे छोड़ना सही नहीं लगता था। एक परिवार में जहाँ वो काम करती थी वहां उस परिवार में एक फौजी था। अमन उसे बड़े ध्यान से देखता, उसके हर चाल - ढाल को वो अपने अंदर बैठा रखा था। अमन जब पाँच साल का हुआ तो उसके पिता ने एक स्कूल में दाखिला करवा दिया, वैभव जब अपने बेटे का दाखिला करवा कर लौट रहा था तो उसने अपने से बेटे से पूछा बड़े हो कर क्या बनना है? अमन ने बड़े खुश होकर कहा, "मुझे भी देश का सेवा करना है"। उसकी बात सुनकर वैभव बड़ा खुश हुआ लेकिन एक डर भी आया कैसे अपने इकलौते बेटे को फौज में जाने दे, इस डर से वह खुद को रोक नहीं पाया। वैभव को लगा बच्चा है समय के साथ ही इसकी इच्छा में भी परिवर्तन आ जाएगा पर हुआ कुछ और ही समय के साथ अमन को फौजी बनने की इच्छा और बढ़ते गयी और उसका जुनून बन गया।

माँ - बाप घंटो समझाते बेटा फौजी की जीवन सुरक्षित नहीं होती तो बेटा बोलता जो फौजी अमर होते हैं वो भी तो किसी का बेटा ही होते है। उसके बात से निरुत्तर होकर माँ - बाप चुप हो जाते लेकिन शांति कई मन्नतें माँगती मन ही मन की बेटे का मन परिवर्तन हो जाए। जब अमन 20 साल का हुआ सेना की भर्ती का फ़ार्म भर आया और वो चयनित भी हो गया। अब घर में कलह शुरू हो गया, माँ - बाप बेटे को इस नौकरी पर नहीं जाने देना चाहते थे और बेटा का ये बोलना था कि अगर वो सेना में नहीं गया तो अपने जीवन में कभी खुश नहीं हो सकता है। अंत में उसके फैसले से हार मान कर वैभव ने हामी भर दी लेकिन माँ का हृदय कैसे मानता वो अभी भी तैयार नहीं थी, वो अपने बेटे के सामने रोते हुए बोली," 8 साल कितनों के ताने सुने हैं और कई मन्नतें की है तब तुझे पाया है बेटा अगर भगवान ना करे तुझे कुछ हो गया तो हमारा तो ज़िन्दा रहना मुश्किल हो जाएगा।" माँ की बात पर मचलता हुआ अमन बोला,"माँ फौज में कोई मरता नहीं है बल्कि मर कर अमर जवान बन जाता है। देखना माँ अगर कुछ मुझे हुआ भी ना तो तुम्हारे बेटे को इतनी इज़्ज़त के साथ विदा किया जाएगा कि तुम्हारा सीना गर्व से फूला ना समाएगा। मुझे ऐसे जीना है माँ और मरना है तो ऐसे अगर मैं सेना में नहीं गया तो मैं ऐसे ही मर जाऊँगा जीते जी।" उसकी ये बात सुनकर शांति ने कहा, "ठीक है फिर जा लेकिन हाँ अपना ध्यान रखेगा और हाँ ये याद रखना हमारे जीने का आधार केवल तू ही है।" माँ तू फिक्र ना कर मेरे मरने से पहले तेरे को जीने के कई कारण दे दूँगा देखना, तू अमर जवान की माँ बन जो जाएगी। "

अब केवल चार दिन रह गये थे, अमन अपनी तैयारियों में लगा था वो अपने साथ ले जाने के लिए कुछ सामान खरीदने को बाजार गया हुआ था। बाजार में पूरी तरफ भीड़ था, कुछ ही देर में अचानक लोग इधर-उधर भागने लगे पता चला बाजार में एक जगह बॉम्ब है सब डर कर केवल अपनी जान बचाने में लगे थे। कितने बच्चे और बुढ़े इस दौड़ में लोगों के पैरों के नीचे दब और कुचले जा रहे थे, इसका किसी को ध्यान नहीं था। अमन को जब पता चला तो वो पहले भीड़ के लोगों को चीख कर ऐसा करने से मना करने लगा लेकिन कोई उसका बात नहीं सुन रहा था। अमन ने देखा कई बच्चे पैरों से दब कर अपनी जान खो रहे थे। अमन बिना देरी किए बॉम्ब की तरफ दोड़ कर गया वहां देखा एक ठेले के नीचे बॉम्ब था। उसने चारों तरफ नज़र दौड़ाई सामने कुछ दूरी पर उसे एक छोटा सा तालाब दिखा जिसमें बाजर वाले शायद कूड़ा फेंकते थे।

अमन ने बिना देर किए उस ठेले को घसीटते हुए और तेज चीखते हुए सामने से हट जाओ बॉम्ब यहाँ है भागने लगा, उसने सोचा उस ठेले को वो तालाब में छोड़कर वापस लौट कर आ जाएगा, इससे किसी के जान का नुकसान भी नहीं होगा। अचानक भागते हुए लोग रुक कर अमन की बहादुरी देखने लगे, अमन पूरी फुर्ती से उस ठेले को तालाब के पास लेकर पहुँचा वो ठेले को तालाब में फेंक ही रहा था कि उसका पैर एक रस्सी में जो कि तालाब के पास इकट्ठे कूड़े में था, उसमें उसका पैर फंस जाता है। अगले पल बॉम्ब फट जाता है।

आस-पास के लोगों को कुछ नहीं होता, लेकिन अमन अब बिना सेना में गए अमर हो गया था। उसके शरीर के चिथड़े इधर - उधर पड़े हुए होते हैं। कुछ देर बाद मीडिया, सरकार, पुलिस सब इकट्ठा हो जाता है। अमन के शरीर के टुकड़ों को पूरी सरकारी इज़्ज़त के साथ उसके घर पर लाया जाता है। समाचार- पत्र, न्यूज चैनलों पर हर जगह देश के बेटे अमर जिसने लोगों की रक्षा के लिए अपनी जान दे दी का चर्चा हो रहा था। अमन की माँ अपने बेटे की इज़्ज़त को देख कर गर्व महसूस करती हैं।उनके बेटे को कई पुरस्कार भी राज्य सरकार और केंद्र सरकार द्वारा दिया जाता है। उनका बेटा आज नहीं था लेकिन उसने अपने माँ - पिता को गर्व से जीना सिखला दिया था। कुछ दिनों बाद बाजार के बीचोंबीच अमन की मूर्ति बनाया गया और 'अमर जवान ' उसके मूर्ति के ठीक नीचे लिखा गया।


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