Archana Kumari

Others

4.5  

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नकाबपोश रिश्ते

नकाबपोश रिश्ते

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सारांश - मनुष्य एक लालची प्राणी है, वह अपनी हर लालच को हर प्रकार से पूरी करने की कोशिश करता है I


श्रेया के शादी में बहुत से रिश्तेदार आए थे... पूरा घर खचाखच भरा हुआ था I लेकिन श्रेया को बार - बार अपने मामी की याद आ रही थी नयी नवेली मामी जिनके शादी में वो अपने परीक्षा के कारण नहीं शामिल हो पायी थी....आज शाम को उसकी मामी आने वाली थी I श्रेया ने अपने माँ से उनके बारे में बहुत कुछ सुन रखा था.. माँ ने बताया था कि एक गरीब घर की लड़की है लेकिन देखने में और बात करने में बहुत ही सुंदर है I जब से शादी करके आयी हैं तब से पूरे घर का काम बहुत ही कुशलता से कर रही हैं I


शाम हुआ श्रेया की मामी आयीं, श्रेया ने जैसा सुना था बिल्कुल सच था... सुन्दर के साथ - साथ बातों से लगता था कि मुँह में मिश्री घुली हो I मामी तो आयीं लेकिन उनके साथ मामा नहीं आये... मामा दिल्ली में काम करते हैं और मामी यहाँ नानी और छोटे मामा के साथ रहती हैं I नाना का देहांत कुछ सालों पहले ही हो गया था I श्रेया ने मामी से बहुत सारी बातें की... रात को हल्दी की रस्म थी भीड़भाड़ था I एक तो रिश्तेदार और कुछ लोग श्रेया के शहर वाले लोग इतने भीड़ में भी श्रेया का ध्यान अपनी मामी पर रुक - रुक कर चल ही जाता.... मामी ने हल्दी के रस्म के लिए एक पीली रंग की साड़ी पहनी हुई थी जिसमें वो बहुत खूबसूरत दिख रही थी I मामी नानी से थोड़े देर के लिए भी दूर नहीं हो रही थी I वह सबके सामने कभी नानी को कुर्सी बैठने को देतीं कभी पानी लाकर देती I श्रेया ये देख कर बहुत खुश हो रही थी.. उसे लगा "चलो नानी के बुढ़ापे में कोई दिक्कत नहीं रही" I


हल्दी के रस्म में श्रेया व्यस्त हो गयी... रात को जब सब लोग इधर- उधर सोने चले गए, श्रेया को नींद नहीं आ रही थी वह उठ कर अपने नानी के कमरे में गयी उसने सोचा चलो एक बार चल कर देखते हैं नानी को कोई दिक्कत तो नहीं.... श्रेया कमरे के पास पहुंची उसके पैर दरवाजे पर ही रुक गए I अंदर से उसकी मामी के आवाज कानो में आई I मामी नानी से लड़ रही थी, वजह कुछ समझ नहीं आ रहा था... लेकिन मामी, नानी को बहुत अपशब्द बोल रहीं थीं I श्रेया को विश्वास नहीं हो रहा था ये वही है जो थोड़े समय पहले सबके सामने नानी से इतने प्यार से बर्ताव कर रहीं थीं I तभी शायद किसी को महसूस हुआ कि मैं दरवाजे पर हूँ.... नानी बाहर आयी, मैंने कहा नानी आप ठीक हैं ना I नानी ने कहा हाँ बिल्कुल ठीक हूँ बहु पैर दबा रही थी... बोलकर नानी ने मुस्करा दिया I मामी अंदर से निकलते हुए बहुत ही मीठी आवाज़ में बोली "कुछ काम है क्या " मैंने कहा नहीं बस नींद नहीं आ रही थी तो सोची नानी को देख लूँ कोई दिक्कत तो नहीं I मामी ने बड़े प्यार से कहा मेरे होते हुए कैसी दिक्कत.... है ना माँ? नानी ने हाँ में सिर हिलाया... लेकिन मैं नानी के आँखों में एक डर को देख पा रही थी I मैं वहां से लौट आयी... मन हुआ माँ को सब बताऊँ लेकिन माँ दिन भर के भागदौड़ से थक कर सो गयी थी I मैं अपने कमरे में आ कर सोचने लगी कोई इतनी दोहरी व्यक्तित्व का कैसे हो सकता है... पता नहीं क्यों मन में मामी के लिए जो सम्मान था वो एक पल में खत्म हो गया थाI


अगले दिन माँ से इस बात के लिए बात करनी चाही लेकिन हर समय कोई ना कोई आसपास होता जिसके वजह से बात नहीं हो पायी I मेरी नजर अब बार - बार मामी पर चली जाती मैं उन्हें सब के सामने नानी की बहुत खातिर करते देखती I


शादी वाला दिन था मैं बहुत व्यस्त थी मेरे लिए एक अलग कमरा का इंतजाम किया गया जिससे मेहमान का आना जाना ज्यादा नहीं हो रहा था... मैं कमरे में बैठ कर अपना कुछ समान पैक कर रही थी, मेरा कमरा नानी के कमरे से सटा हुआ था... मुझे कुछ आवाज़ सुनाई दी, शायद मामी नानी को कुछ बोल रहीं हो मैं गुस्से में अपने कमरे से निकली की जो भी हो.... आज मैं साफ- साफ बात करके ही आऊंगी I मैं जैसे ही नानी के कमरे में आयी... छोटे मामा मामी को डांट रहे थे... मामी भी उनसे दुगने गुस्से में बोल रही थी... मेरे पति बनने की कोशिश मत कीजिए और नानी उन दोनों को मेहमान का हवाला दे कर शांत करवाने में लगी थी I मुझे देखते ही सब शांत हो गये मुझे कुछ समझ नहीं आया क्या बोलूँ मैं वापस अपने कमरे में आ गयी I मैंने अपनी माँ को कुछ नहीं बताना ही सही समझा क्योंकि माँ मेरी शादी में वैसे ही बहुत व्यस्त थी I मेरी शादी हो गयी मैं ससुराल आ गयी, अपने नए परिवार में उलझ गयी और मामी की बात बिल्कुल ही दिमाग से निकल गयी I


  मेरे शादी के बाद करीब 4 साल बाद एक बार माँ ने फोन पर मामी का जिक्र किया... माँ ने बताया कि इस बार जब नानी माँ के पास आयी... तो उन्होंने ने बताया कि कैसे मामी उनके साथ गाली गलौज करती हैं मैंने माँ से पूछा कि तो मामा उन्हें कुछ बोलते क्यों नहीं.... माँ ने जो बात बतायी मैं सुन कर दंग रह गयी बड़े मामा को दिल्ली से छुट्टी बहुत कम मिलती थी वो कभी कभी आ पाते थे I वो जब भी आते मामी उनके सामने नानी से बहुत अच्छे से व्यहवार करती I मैंने माँ से कहा और छोटे मामा कुछ नहीं बोलते... माँ ने कहा कैसे बोलेगा वो तो उसके रूप के जाल में फंस चुका है... मुझे विश्वास नहीं हो रहा था क्या ऐसा भी हो सकता है.... मनुष्य अपने शारीरिक सुख के लिए क्या इस हद तक भी गिर सकता है एक तरफ अपने भाई के ही स्त्री के साथ... और दूसरी तरफ अपने माँ के लिए भी कुछ ना बोलना केवल शारीरिक सुख के लिए.... मन में मामी के लिए बहुत घिन सी होने लगी I 


   कुछ साल और निकल गये एक दिन माँ ने सुबह सुबह फोन कर बताया कि वो नानी के घर जा रहीं हैं... मैंने कारण पूछा तो बतायी की बड़े मामा को अपनी पत्नी का सच मालूम चल गया है... मामी और छोटे मामा ने उन्हें घर से निकाल दिया है I नानी की स्थिति भी कुछ ठीक नहीं है लेकिन वो बड़े मामा के साथ रह रहीं हैं I बड़े मामा अभी भी जो कमाते हैं वो पूरा पैसा मामी को देते हैं क्योंकि उनके बच्चे भूखे ना रहें... मामी को इस बात से भी कोई फर्क नहीं पड़ता I


  ये सब सुन कर मैं सोचने लगी क्या मनुष्य इतना गिर गया है कि उसे अपनी लालच के सिवा कुछ दिखता नहीं... नहीं रिश्तों का मान सम्मान नहीं किसी का दर्द I


 


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