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Kumar Vikrant

Crime

4  

Kumar Vikrant

Crime

भाड़े का हत्यारा भाग : ३

भाड़े का हत्यारा भाग : ३

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दरवाजा खटखटाए जाने की आवाज से मैक और मै दोनों चौक पड़े।

"इस टाइम तो कोई नहीं आता यहाँ………..." मैक बोला और मुझे चुप रहने का इशारा किया, और लाइट बंद कर वो ख़ामोशी से गेट की तरफ चला गया।

पाँच मिनट बाद जब वो वापिस आया तो उसने कमरे का दरवाजा बंद करके लाइट जला दी और बोला, "देख भाई मुझे अब पैसा दे या यहाँ से चला जा।"

"मेरे पास अब कोई पैसा नहीं है........"

"ऑनलाइन ट्रांसफर कर…………"

"इतना पैसा खाते में नहीं है मेरे.........."

"हो गई बकवास तेरी, या तो पचास करोड़ या बात खत्म और एक करोड़ टोकन मनी अभी का अभी.........नहीं तो अब चलता बन, मेरी खोपड़ी घूम गई तो अभी विक्रम भाई को फोन करता हूँ; कुछ न कुछ तो दे ही देगा वो तेरा।" मैक गुस्से से एक लोकल दादा का नाम लेते हुए बोला।

"सुन मैं तुझे एक अड्रेस देता हूँ, वहाँ अलमारी में २५ लाख कैश रखा है और लगभग इतने ही कीमत के हथियार रखे है........उन्हें उठा ले।" मैं अपने लोकल ठिकाने का अड्रेस उसे देते हुए बोला।

"इतना बहुत नहीं है लेकिन तेरी जान फ़िलहाल तो बच ही जाएगी इतने से........." अड्रेस लेकर खड़ा होता हुआ वो बोला।

करीब एक घंटे बाद जब वो आया तो उसके पास लकड़ियों से भरी एक ट्रैक्टर ट्रॉली थी जिसमें ऊपर की तरफ एक ताबूत था। उसने ट्रॉली ऊपर उठा कर सारी लकड़ियां नीचे गिरा दी और ट्रॉली के एक कोने में ताबूत रख कर ताबूत के ढक्कन में एक ड्रिल मशीन से सुराख़ करते हुए बोला, "अब लेट जा इस बख्से में; इसे मैं चर्च के कब्रिस्तान से खरीद कर लाया हूँ, इसी से बचेगी तेरी जान।

थोड़ी देर में मैं उस ताबूत में लेटा हुआ था और मैक तेजी से लकड़ियां ट्राली में भर रहा था।

मैं लकड़ियों के ढेर में दफ़न ताबूत में लेटा हुआ था, ताबूत में जो हवा आ रही थी उसमे कटी लकड़ियों की गंध भी शामिल थी। करीब एक घंटे बाद मुझे ट्रैक्टर के चलने का अहसास हुआ। ट्रैक्टर के चलने से ट्रॉली बुरी तरह हिल रही थी, मै ये सोचकर परेशान हो उठा कि अगर लकड़ियों के बोझ से दबकर ताबूत टूट गया तो यही कहानी खत्म हो जाएगी।

न जाने कितनी जगह वो ट्राली रुकी, कभी वो पुलिस से बहस करता लगता, कभी किसी और से। ये अंतहीन सफर चलता रहा और मै होश खोता रहा और होश में आता रहा। करीब १२ घंटे बाद जब ये सफर खत्म हुआ तो मै बहुत बुरी हालत में था करीब आधे घंटे बाद जब मुझे ताबूत से निकाला गया तो मै एक बड़ी सी ईमारत में था मैक के साथ मोहन भी था। मुझे देखकर मैक बोला, "देख ये अभी किस हाल में है, दवा-दारू कर इसकी।

मैक के कहते ही मोहन मुझे एक दड़बे नुमा कमरे में ले गया और मेरे बांये हाथ में ड्रिप लगा दी, उसने ड्रिप से जुडी बोतल में कुछ दवा भी इंजेक्ट की। उसके बाद उसने मेरी पट्टियां बदल दी।

"परसो तक चलने लगेगा तू, अभी मैं यही हूँ।" कहकर मोहन चला गया ।

रात भर ड्रिप लगी रही, मैक गायब रहा। मोहन एक बार एक बन और चाय लाया जिसे खाकर मेरा मुँह खराब हो गया और जो खाया था उसकी उलटी हो गई, जिसे साफ़ करने कोई नहीं आया और मैं उसी गंदगी में लेटा रहा।

अगले दिन दोपहर को जब वो दड़बा नुमा कमरा खुला तो मोहन मेरी पट्टियाँ बदलकर मेरे हाथ नायलोन की एक रस्सी बांधकर बोला, "अब ठीक है तू, चल बाहर इंतजार हो रहा है तेरा।"

"हाथ क्यों बाँध रहा है, कही भाग थोड़े ही रहा हूँ मैं.........?"

"चुप कर.........."मोहन मुझे धक्का देते हुए बोला।

बाहर एक बड़ा सा अहाता था जिसमें मैक और एक मोट

ा सा आदमी एक छोटी सी मेज के पीछे बैठे थे।

"मैंने तेरी जान बचाई अब मेरा पैसा दे मुझे, मुझे पता है तेरे जैसे लोगों का पैसा विदेशी बैंकों में होता है, अब बैंक की डिटेल बोल, फकीरा तेरी तरफ से पैसा ट्रांसफर करेगा मेरे खाते में।" मैक बोला।

"कोई विदेशी खाता नहीं है मेरा, जो मैंने तुम्हें दिया वही था मेरे पास………"

"ये तो बहुत गलत हुआ, तू अब किसी भी काम का नहीं है, मोहन………."

इतना सुनते ही मोहन ने मुझे एक कुर्सी पर कस कर बाँध दिया और एक सीरिंज में एक लिक्विड भर कर सीधे मेरी गर्दन में ठूंस दिया।

"इस इंजेक्शन में जहर है जो तुझे बहुत बुरी मौत देगा, १५ सेकंड में बैंक की डिटेल बता दे नहीं तो मोहन ये जहर तेरी गर्दन में इंजेक्ट कर देगा।

मै समझ चुका था मै उन्हें बैंक डिटेल्स नहीं दूंगा तो ये मुझे मार डालेंगे और दूंगा तब भी मार डालेंगे, लेकिन बता देने पर शायद छोड़ दे, मैंने १४ वे सेकंड में उन्हें बैंक की डिटेल दे दी।

२० मिनट में वो मेरे खाते को खाली कर चुके थे।

"तो विजय नाम है तेरा………जो भी है तूने माला-माल कर दिया हमें, अब चलते है। विल सिटी के सब दादाओ को खबर दे दी है तेरी, और एक फोन पुलिस को भी कर दिया है और सुन न तो मैं मैक हूँ और न ये मोहन और फकीरा । वो वर्कशॉप तो मेरे छिपने का ठिकाना थी लेकिन तकदीर से तू मेरे हाथ लग गया।" कह कर मैक या वो जो भी था अपने साथियों के साथ उस अहाते से निकल गया।

मुझे पता था वो ऐसा ही कुछ करेगा इसलिए मै बहुत देर से अपने हाथ आजाद करने की कोशिश कर रहा था। अगले पाँच मिनट बाद मैं आजाद था, सबसे पहले मैंने अपने खून से रँगे कपड़ों से छुटकारा पाया, वही अहाते में सिर्फ एक फटा कुर्ता पड़ा था जिसे मैंने पहन लिया, जूते उतार कर उनमें छिपे पैसे और अपने लोकल बैंक का ए टी एम कार्ड और पासपोर्ट निकाल कर कुर्ते की जेब में डाल लिया और देहाती सा दिखने के लिए वही कोने में पड़ा एक फावड़ा निकाल कर अपने कंधे पर रखकर बाहर निकल आया।

लगता है ये कोई देहाती इलाका था, थोड़ी दूर एक पक्की सड़क थी। सड़क पर एक हाट लगी थी, कुछ लोगों ने मुझे गौर से देखा लेकिन फिर अपने काम में व्यस्त हो गए। तभी सड़क से धड़धड़ाती हुई चार एस यू वी गुजरी और सड़क से उतर कर उस बड़े से मकान की और बढ़ गई, हर एस यू वी में खतरनाक से लगने वाले लोग भरे थे। थोड़ी दूर कई ऑटो रिक्सा वाले खड़े थे और शहर-शहर चिल्ला रहे थे। मै एक लोगों से भरे ऑटो में जा बैठा मेरे बैठते ही वो रिक्शा चल पड़ा। तभी पुलिस से भरा एक ट्रक सड़क पर दिखा और वो भी सड़क से उतर कर उस बड़े से मकान की और बढ़ गया और पाँच मिनट बाद पूरा इलाका भारी गोलाबारी से थर्रा उठा।

दो दिन बाद में नई दिल्ली के इंटरनेशनल एयरपोर्ट से मॉरीसस के लिए हवाई जहाज पकड़ रहा था, इस समय वही एकमात्र देश था जहाँ मैं बिना वीजा के जा सकता था। उस गांव सुल्तानपुर से शहर तक का सफर और वहां से दिल्ली तक का सफर बिना किसी दिक्कत के हुआ। सुबह के अखबार से पता लग गया था कि सुल्तानपुर गांव में पुलिस और अज्ञात बंदूक धारियों के बीच जबरदस्त गोलाबारी हुई जिसमें आठ बंदूक धारी मारे गए और बाकी ने पुलिस के सामने हथियार डाल दिए थे।

मेरी सारी पाप की कमाई लुट चुकी थी, अब मेरे पास सिर्फ इतना पैसा बचा था कि मॉरीसस जाकर वहाँ बस जाऊँ और भाड़े के हत्यारे 'आर्टिस्ट,' के स्थान पर असली आर्टिस्ट बनकर लोगों के पोर्ट्रेट बना कर एक नई जिंदगी जीने की कोशिश करूँ।


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