हंस समझ
हंस समझ
हंस समझ
"क्या हुआ? तुम लोगों की आंखों पर लगा पर्दा हटा या नहीं।
अब तो 'दूध का दूध पानी का पानी' हो गया होगा न, अब तो पूनम के भविष्य पर बुरी नजर नहीं डालोगी न।"
" हमें माफ कर दीजिए मैडम, आइंदा हम कभी भी पूनम तो क्या किसी और के बारे में भी ऐसी बातें नहीं करेंगे , हमसे बहुत बड़ी भूल हुई है।"
" चलो अच्छा है, देर आए दुरुस्त आए।" एक अध्यापिका ने तीन-चार छात्राओं से कहा। दरअसल अध्यापिका ने इन छात्राओं को एक होनहार छात्रा 'पूनम' के बारे में गलत बातें करते सुना कि 'वह ही हमेशा हर प्रतियोगिता में प्रथम आती है', 'जरूर इसका कोई सोर्स है', 'इसकी मम्मी ने हर अध्यापिका के साथ मित्रता कर रखी है' और न जाने क्या-क्या।
"बस अब और नहीं," अध्यापिका के मुंह से अनायास ही निकल गया। उन्होंने तुरंत ही निर्णय लिया, बनस्बत इसके कि प्राध्यापिका से शिकायत करके इनके मुँह पर ताले लगाए इनकी सोच पर लग रहे जालों को साफ़ करेगी। नियमों का उल्लंघन करके उन्हें प्रतियोगिता स्थल पर जहां अन्य विद्यार्थियों को बैठने की अनुमति नहीं होती है, बैठाकर, पूनम की भरतनाट्यम परफॉर्मेंस दिखाई। पूनम को अनुशासित ढंग से, तल्लीनता और शालीनता से अपना उत्कृष्ट भरतनाट्यम परफॉर्मेंस देते देख, इन सभी छात्राओं की आंखें फटी की फटी रह गई।
जब ग्लानि भाव से जाने लगी तब अध्यापिका ने उनसे यह सवाल किया।
फिर कहा "स्पेशल ट्रीटमेंट तो तुम लोगों को मिली है, तुम लोगों के लिए नियम जो तोड़ा लेकिन पूनम के मामले में तो ऐसा कुछ भी नहीं हुआ न?"
बरसों पहले अध्यापिका जो खुद के लिए नहीं कर पाई, पूनम के लिए करके बहुत खुश थी क्योंकि वह अपने आपको पूनम में देख रही थी।
पिक्चर की रील की तरह घूमते चुभने वाले वाक्यों की टीस भी अब खत्म हो चुकी थी।