बदरंग यादेँ

बदरंग यादेँ

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बचपन का वह स्कूल और हमारा छोटा सा घर।बस यूँ कह लीजिए कि मेरी जन्नत।

उचक उचक कर वो टूटी फूटी सीढीयों से चढ़ना-उतरना।वह कच्चे खपरैलों की छत से पानी की टप टप को निहारना।कोने की जमीन का वह बगीचा,जिसके लिए आसपास के लोग हमसे लड़ते रहते थे।और भी वहाँ की छोटी-छोटी बातें जैसे मेरा पीछा करती रहती थी।

शादी के बाद एक बड़े से घर और नौकरों की फौज भी उस अभाव वाले दिनों की यादें भूला नही पायी थी।कभी कभी मन करता कि यह आलीशान जिंदगी छोड़कर भाग कर वहाँ जाऊँ।

किसी दिन बड़े मुद्दत के बाद वहाँ जाने का मौका मिल गया।मेरा मन सोच सोच कर बहुत खुश हो रहा था।

लेकिन यह क्या? वहाँ सब कुछ बदला बदला सा था।मैं उन टूटी फूटी सीढीयों से उसी छत पर जाना चाहती थी जहाँ से मैं रात को तारों की बारात देखा करती थी।लेकिन नए लोगों ने टूटी सीढीयों की वजह से वह रास्ता ही बंद कर लिया था।

वहाँ रहने वाले लोग मुझे अजनबी निगाहों से देखने लगे।किसी ने मुझे सवाल किया,"आप कौन है?यहाँ किस से मिलने आयी है?"

मैने धीरे से जवाब दिया,"बचपन मे मैं यही रहा करती थी।मेरा सारा बचपन गुजरा है इस घर मे।" "अच्छी बात है।"कहते हुए उन्होंने दरवाजा बंद कर लिया।

मेरे मन का या फिर मेरी यादों का उनको क्या लेना देना था? मुझे बार बार यह अहसास हो रहा था की मुझे वहाँ जाना नही चाहिए था।

कल की रंगबिरंगी खूबसूरत यादें आज के हकीकत के स्याह सफेद रंगों में मिलकर जैसे बदरंग सी हो गयी थी....


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