बदलाव

बदलाव

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ममता घर में अपने बेटे-बहू के साथ रहती हैं। इस घर से उनकी बहुत सी यादें जुड़ी हैं। शादी के दो साल बाद उनके पति ने ये घर बनाया था, पहले किराए के मकान में रहा करते थे। उसके पति अपने माता-पिता को उनका अपना घर देना चाहते थे, गृह प्रवेश की पूजा पर ममता के सास-ससुर ही बैठे थे। उनकी सास बहुत खुश थीं। ममता और अपने बेटे को उन्होंने खूब आशीर्वाद दिया था, वो बहुत ही सरल हृदया थी। ममता और सास दोनों की खूब पटती थी। खाली समय में ममता और सास खूब बतियाती, बाप-बेटे का झगड़ा भले हो जाये सास-बहू का झगड़ा कभी न होता। दोनों माँ-बेटी की तरह एक-दूसरे से चिपकी रहती।

ममता के पति को तो माँ और ममता के मधुर संबंध को लेकर ईर्ष्या होने लगती। एक दिन ममता की सास हँसते खेलते चल बसी। अपने पोते की शादी देखने का बड़ा चाव था किंतु न देख सकीं। उनके स्वर्गवास के चार साल बाद ममता ने अपने बेटे की शादी की। हाल ही में ममता के पति का भी देहांत हो गया। ममता के जीवन में अचानक खालीपन पसर गया।

शाम के चार बजे हैं। आदत के मुताबिक ममता चाय बनाने रसोई की तरफ जा रही हैं, उन्होंने बहू को पुकारा- बहू मैं चाय बना रही हूँ तुम पीओगी।

नहीं अम्मा जी, मैं ग्रीन टी पीऊँगी, थोड़ी देर बाद।

ममता अपनी चाय बनाती हैं और पीकर बाहर जाने के लिए तैयार होती हैं।

बहू आज भजन मंडली है, जा रही हूँ सात बजे तक लौट आऊँगी, ममता ने बहू से कहा।

बहू कमरे से बाहर निकल ममता को देख कर बोली- अम्मा जी ऐसा नहीं लगता आप बाबू जी के गुजर जाने के बाद कुछ ज्यादा ही बाहर घूमने-फिरने लगी हैं। सुबह शाम जब भी मन चाहा मंदिर और भजन कीर्तन के बहाने घर से निकल पड़ती हैं। घर में जैसे आप का मन ही नहीं लगता।

तुम ठीक कह रही हो बेटी, पहले मैं तुम्हारे बाबू जी की सेवा टहल में लगी रहती थी। दिन न जाने कहाँ निकल जाता था, कब सुबह से शाम हो जाती थी, दोनों बतिया लिया करते थे, समय कट जाता था किंतु उनके जाने के बाद मेरा समय काटे नहीं कटता। बेटा काम पर चला जाता है, बच्चा स्कूल चला जाता है, ट्यूशन से आता है खाकर सो जाता है। तुम अपने कमरे में रहती हो, न साथ खाती हो न साथ बैठती हो। अब तुम ही बताओ, मैं क्या करूँ, मेरा समय काटे नहीं कटता। इसी कारण मैं कभी मंदिर चली जाती हूँ, कभी हम उम्र महिलाओं के साथ पार्क में जा बैठती हूँ। मैंने मोहल्ले की भजन मंड़ली ज्वाइन कर ली है। भजन-कीर्तन करने चली जाती हूँ।सुन कर बहू कुछ न बोली।

अम्मा जी की बातों से उसे एक भय सताने लगा। कहीं ऐसा तो नहीं अम्मा जी मोहल्ले की औरतों से उसकी चुगली करती फिरती हैं।

एक शाम अम्मा जी जैसे ही पार्क जाने के लिए निकली वो अम्मा जी के पीछे पीछे पार्क आ गई। नजर बचा कर पेड़ के पीछे छुप कर बैठ गई। अम्मा जी हमेशा की तरह अपनी मित्रमंड़ली संग बतियाने लगी। अचानक मिसेज वर्मा ने उनसे पूछा- ममता बहन आपकी बहू कैसी है, कभी आपके मुँह से उसके बारे में कुछ सुना नहीं। हम सब अकसर बहू की कोई बात बुरी लगी हो तो बतिया लेते हैं किंतु आप ने कभी अपनी बहू के बारे में कुछ नहीं कहा।

दरअसल हमारे बीच सास-बहू जैसा कुछ है ही नहीं, मैंने उसे बहू कभी माना ही नहीं, उसे सदा बेटी माना। मेरे कोई बेटी नहीं है, इसलिए मैं उसे बेटी ही मानती हूँ। बेटी से क्या शिकवा क्या शिकायत। वह भी मुझसे माँ जैसा ही प्यार करती है। मेरी बहू बड़ी संस्कारी है, मेरा और घर परिवार का खूब ध्यान रखती है। मुझे कुछ कहने सुनने का मौका ही नहीं देती।

पेड़ के पीछे छुप कर बहू जया, अम्मा जी की सारी बातें सुन रही थी। अम्मा जी की बातें सुन वह अवाक रह गई। वह तो कुछ और ही सोच रही थी। उसे बड़ी आत्मग्लानि हुई, वह चुपचाप घर लौट आई और उसी पल से उसने तय कर लिया कि वह अम्मा जी को अकेलापन महसूस न होने देगी। बेटी बन कर ज्यादा से ज्यादा समय अम्मा जी के साथ बितायेगी।

दूसरे ही दिन से वह दोपहर का खाना अम्मा के साथ खाने लगी। शाम की चाय साथ पीने लगी। खाली समय में अम्मा के साथ उनके कमरे में बैठ बतियाने लगी।

बेटे महेश ने महसूस किया माँ के चेहरे पर रौनक रहने लगी है। पत्नी को माँ के साथ बैठते, खाते , बतियाते देख उसे बहुत खुशी हुई। महेश ने अपनी पत्नी के सुंदर व्यवहार और बदलाव के लिए उसे धन्यवाद दिया। इस सुखद बदलाव से सभी खुश थे।


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