बदला
बदला
"मुझे न्याय चाहिए। अगर नहीं दिलवा सकते, तो, मरने के लिए तैयार हो जाओ। हा..हा...हा...हा..हा...हा..."
ठहाकों की आवाज़ें कोहरे वाली रातमें भी जोरों से गुँजने लगी।
ठहाकों को सुन प्रज्ञान ने दुम दबाकर भागना चाहा। पर वो ऐसा कुछ भी न कर पाया। कोहरे में अपने आप को बचाते हुए घंटो पैदल चला जा रहा था वो। फिर भी उसे मंज़िल नहीं मिल रही थी।हड़बड़ाहट में प्रज्ञान 13 बाय 13 डायमीटर वाले राउंड बेड से नीचे धड़ाम करके गिर पड़ा। उसकी सांसें गहरी होती जा रही थी। मुँह से भी सांस लेने की सारी की सारी कोशिशें नाकाम रही। और वो चिल्लाने लगा, पर, गले पर किसीके मजबूत हाथों की पकड़ को उसने दोबारा महसूस किया। हाथों की छटपटाहट बढ़ने लगी। आखरी कोशिश को अंजाम देने के लिए उसने एडी-चोटी का जोर लगाया। और उन मजबूत पकड़ में से ख़ुदको छुड़ाकर भाग खड़ा हुआ।
उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि, कल सुहावनी रात को जोगी के वहाँ दो पेग में ही वो टल्ली हो चुका था। और पीकर गाड़ी चलाना बीजी ने मना किया था। इसलिए वो जोगी के फार्म हाउस पर ही तो सोया था। तो, आधी रात को वो जंगल के बीचोबीच कैसे पहुँच गया!? और वो भी अकेले!?
प्रज्ञान अपनेआप से ही बड़बड़ाने लगा -
"ये मेरा ड्रीम ही होगा। अ वेरी बेड ड्रिम। मॉर्निंग में ऑंखें खुली कि ड्रिम गायब! उड़नछू...!"
प्रज्ञान ने बिना आँखों को खोले सोना चाहा। और कंकड़ पत्थर चुभने के बावजूद भी वो गहरी नींद में सोने लगा। क्लोरोफॉर्म सूंघ लिया हो जैसे।
"मेरा बदन जल रहा है। मुझे नहीं मरना, मुझे बचा लो।" की आवाज़ें प्रज्ञान के कानों में गुँजने लगी।
प्रज्ञान की तो पलकों को किसीने सुई धागे से सिल दिया हो वैसे आँखों की पुतलियाँ चारों ओर फूल स्पीड में घूमने लगी। पर आँखों की दोनों डिबिया खुलने से रही।अपनी आँखों पर कोमल हथेलियाँ मादक स्पर्श महसूस करवा रही थी। पर्, ऑंखें अनकहे एहसास को बयां भी तो करना चाहती थी। पर कुछ भी तो नहीं हो पा रहा था।
प्रज्ञान ने हिम्मत हार दी। और दूसरे ही पल प्रज्ञान के गालों पर रक्त की बूंदें गिरने लगी। चिकनाई महसूस होते ही बंद आँखों से भी उसे रक्तधार का पता चलते देर न लगी। "जोर लगाकर हईशा" कहते हुए प्रज्ञान ने कोठी से बंधे हुए अपने दोनों हाथों की मोटी वाली रस्सी को तार तार कर दिया।कलाइयों पे पड़े मोटे वाले लाल निशान को देख प्रज्ञान को अपनी गुमशुदगी से जुड़े राज़ का पर्दाफाश होता नजर आने लगा। और तभी उसके सामने उसके अपने ही क्लोस्ड फ्रेंड्स की करतूतें, जो की कल रात से हो रही घटनाओं को उजागर करने लगी।दर्शन का उसे जोर जबरदस्ती के देशी ठर्रा पिलाना। चखने के नाम पर चना जोरगरम के बदले में लॉलीपॉप खिलाने के आग्रह करना। हिचकियाँ आने पर ठंडे पानी के बदले में व्हिस्की गटका देना।
दोनों हाथों से अपने सिर को पकड़े प्रज्ञान लड़खड़ाते हुए अपने पैरों को संभालने में लगा रहा।पास ही पड़े अटैची में से पीले रंग की पानी की बोतल खोल कर प्रज्ञान ने उसमें रहे प्रवाही से अपने चहेरे पर छालक मारी। और दूसरे ही पल वो कराहने लगा। हर तरह से धुँआ सा कुछ उड़ने लगा। चिलम के धुंए जैसा ही कुछ।
एसिड से उसका तनबदन जल रहा था। पानी की बोतल में क्रूड ऑयल रखने वाले दर्शन ने प्रज्ञान की अध्ध्ध दौलत से जलते हुए बचपन का बदला पूरा किया।
प्रज्ञान के हमशक़्ल होने का फायदा बखूबी उठाया। और प्रज्ञान को मरता छोड़ वो सारे वहाँ से भाग आये। एक नई दुनिया बसाने। प्रज्ञान सिंह की बनी बनाई करोडों की दुनिया में उसके नाम, रुतबे को जीने।
दूसरों पे अंधविश्वास रखने वाले प्रज्ञान को कायमी अलविदा कर दर्शन और उसके चमचे चंद रुपियो की लालच में अपना ईमान बेचकर शहर की ओर चल दिए।