बचन (दशवी भाग )....
बचन (दशवी भाग )....
बचन (दशवी भाग )............
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आशीष समय पे हवाई अड्डा पर पहुँच गया।कुछ देर बाद अशोक यहाँ पहुँचनेवाला है।उसका मन बहुत बेचैन हो रहा था ;एक तो अपनी भाई अशोक का कामयाबी और उसका घर वापसी, दूसरा सरोज का सुधार केंद्र मे मारपीट करके वहाँ से भाग जाना।इस बीच अशोक का हवाई जहाज पहुँचने का ऐलान हुआ।थोड़ी डेर बाद अशोक बाहर आया और आशीष को देख, गले लगा लिआ ।दोनों भाई धोड़ी डेर के लिए भावुक होगए ।फिर दोनों गाड़ी मे बैठे और घर के तरफ बढे।रास्ते मे अशोक कुछ घर के बारे मे पूछते पूछते आशीष को पूछा, " सरोज वहाँ से भाग गया बोलके मुझे रमनलालजी ने फोन पे बताए।अभी उसके नाम पुलिस ने इतला दर्ज करदिए।कैसे उस लड़के को अब सुधारेंगे? वो खुद नेहीँ चाहता है की एक अच्छी जिन्दगी जीन के लिए।देखेंगे अब और एकबार कोशिश करेंगे ।" अशोक से ये सुनकर आशीष थोड़ा चौक गया ।जो बात वो खुद अशोक को अभी बताना नहीँ चाहाता था, खुद अशोक ने उसका जिक्र करदिए।वो अशोक के यही आदत के लिए खुदको उसका भाई होनेका गर्ब अनुभब करता है।तब फिर आशीष ने अशोक को बोला, "हाँ मुझे आरती के पापा ने फोन करके बताए थे और मे सोचा था रात को तुमसे बताऊंगा।तुम जो बोल रहे हों बिलकुल सही है ।अगर सरोज खुद नहीँ चाहेगा एक अच्छा जिन्दगी जीने के लिए तो कौन उसका मदद कर सकता है।छोड़ो इस बात को, पहेले घर चलते है, फिर बाद मे उसके बारे मे सोचेंगे ।" ऐसे बात करते करते उनकी घर आगया।दोनों भाई गाड़ी से उतरे और घर के अन्दर जाने लगे।दरवाजा के पास पहुंचते ही सुचित्रा देबी और आरती दोनों अशोक को तिलक लगाए और अन्दर ले लिए ।अशोक झुककर दोनों को प्रणाम करने लगा, तब सुचित्रा देबी उसे उठाकर रोते हुए अपनी गले मे लगा लिए।थोड़ी डेर बाद सब घर के अन्दर गए ।अशोक अपने स्वर्गवासी पिता अरुण के तस्वीर के पास जाकर उन्हें प्रणाम किया ।तब सुचित्रा उसके पास आकर बोली, "आज तेरे पिताजी जिन्दा होते तो कितने ख़ुश होते तेरी कामियाबी पर।लेकिन वो हमेशा तुम्हे देख रहे हैं और आशीर्वाद दे रहे हैं ।" तब अशोक अपनी माँ को देखा, उनकी आंखे नमी होगयी थी ।
घर के सब एक साथ बैठ के बहुत दिन बाद बात करने लगे ।अशोक उसका सारे काम के बारे मे बताने लगा ।उसका सिनेमा मे जो गाने का मौका मिला, उसके वारे मे अशोक बताया, " यहाँ से जानेके बाद अशोक मुम्बई मे पहले कुछ दोस्तों के साथ रहेने लगा ।उस समय उसने कुछ छोटा छोटा होटल मे एक घंटे के लिए गाना गाकर कुछ पैसे कमाए।फिर कुछ वहाँ के छोटे छोटे पार्टी मे भी गाना गाया करने लगा ।कियूँ की उसको कुछ पैसे कमाना था खुद के देखभाल के लिए।ऐसे वहाँ उसके खुश संगीत से जुड़े हुए लोगों के साथ जान पहचान बढ़ा।जो कुछ वो कमाता था, उससे कुछ बचाकर रखा करता था।वो एकबार एक बड़े कारोबारी के बेटे का शादी के पार्टी मे गाने का मौका पाया ।असल मे जिनको उस दिन जाने का था उनकी तबियत खराब होने का कारण वो जा नहीं पाए।जो आयोजक थे उन्होंने मुझे गाने के लिए फोन करके बुलाए।मे उस पार्टी मे दो घंटे गाना गाया।आयोजक ने मुझे कुछ कम पैसे देकर जाने को बोले ।मैं वहाँ से निकल रहा था, तब इस सिनेमा के जो निर्देशक है वो मुझे बुलाए और उनका दप्तार मे अगले दिन मुलाक़ात करने को बोले ।उन्होंने मुझे इतना बोले है की मेरे लिए कुछ काम है।फिर अगले दिन मे वहाँ गाया।तब उनके साथ उस सिनेमा का संगीत निर्देशक भी बैठे हुए थे ।मेरे साथ वो बहुत बात किए और मेरे बारे मे जानकारी लिए।फिर उनके सामने मुझे दो गाना गाने को बोला गाया।उसके बाद फिर मुझे दो दिन के बाद उनकी रिकॉर्डिंग स्टूडियो मे आकर अभ्यास करने को बोले ।जैसे जैसे वो लोग बोले मे करता गया।जब मे रिकॉर्डिंग स्टूडियो मे गया, देखा और तीन लोग भी अभ्यास करने आये है।तब पता चला की अभ्यास के बाद हम लोग वही गाना को गाएंगे और उसके बाद जाकर वो चुनेंगे कौन इस सिनेमा के लिए गाना गाएगा ।मे अपने सारे ताकत जुटा दिआ अभ्यास के दौरान ।कियूँ की मे खुदको बचन दिआ था की कुछ बनके अपनी पिता माता और परिबार का नाम रोशन करूँगा।फिर अंतिम मे जब हम लोग गाना अलग अलग अभ्यास के बाद ग़ालिए तो हमें बोला गया की कुछ दिनों के बाद हमें बता दिआ जायेगा।मे पहेले थोड़ा निराश हुआ पर उम्मीद नहीं हारा था ।मे अपनी वही रोज के काम मे लग गया।फिर इस बिच मुझे दो तीन बड़े बड़े कार्यक्रम मे गाने का मौका मिला और थोड़ा खुद के ऊपर और बिस्वाश बढ़ने लगा।मेरा रोजगार भी बढ़ने लगा तो मे अलग से एक कमरा किराए पे लेकर रहेने लगा।मे इस बिच ये सिनेमा को भूल गया था।लगभग दो महीने बाद मुझे इस सिनेमा के संगीतकार से फोन आया और ये सिनेमा मे गाने का कॉन्ट्रैक्ट मिला।मुझे बहुत तक़लिब उठाना पड़ा यहाँ तक पहुँचने के लिए।और ये सब माँ, पिताजी, भैया और भाभी के आशीर्वाद से हासिल हुआ ।" अशोक का ये बाते सुनने के बाद आरती बोली, " वो तो है, पर अशोक तुम्हारी मेहनत, कर्म और अभ्यास का ये परिणाम है।मे बहुत ख़ुश हूँ ।" सुचित्रा देबी अपने बेटा अशोक के शर पे हात घुमाते हुए बोली, " जब कोई इनसान सच्चे दिल और पुरे लगन के साथ कुछ करता है, उसे ऊपरवाला हमेशा साथ देता है।ये वात तुम सब हमेशा याद रखना।तुम्हारे पिताजी भी वैसे बहुत मेहनत करके इतने बड़े दुकान कर पाए ।उनके पास पैसे नेहीँ थे पर जिन्देगी मे ईमानदारी के साथ कुछ करने का एक जोश था।उन्होंने बहुत संघर्ष किए और कभी तकलीबों के सामने हार नेहीँ माने।चलो समय होगया, अब सब खाना खा लो ।आरती तुम आज शाम को दूध नहीं पी है अपनी देबर का आने की खुशी मे, रात को पिलेना ।" फिर सब एक साथ बैठके खाने लगे ।अशोक का मन पसन्द सब्जी और खीर बनाया गया था।अशोक कुछ बोलता, सुचित्रा देबी ने बोली, "तेरा भाभी ये सब तेरा मन पसन्द के खाना बनाने मे लग गयी थी, इसीलिए खुद शाम को दूध पीना भूल गई ।" अशोक बहुत दिनों के बाद अपनी परिबार मे सबके प्यार पाकर बहुत ख़ुश हों रहा था और अपने आप को ख़ुश नशीबवाला समझ रहा था।खाना ख़तम करके सब अपने अपने कमरे मे जाने लगे, तब अशोक ने आशीष को बोला, "भाई काल हम सुधार केंद्र और पुलिस थाने जाएँगे।सरोज के बारे मे कुछ जानकारी लेने और फिर सोचेंगे क्या करेंगे।अब जाकर शान्ति से शोजाओ ।" फिर थोड़ी डेर दोनों भाई कुछ बात किए और शोने चले गए ।
