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SNEHA NALAWADE

Abstract

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SNEHA NALAWADE

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बौंड

बौंड

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मुझे नहींं पता था वो लिया गया फैसला सही था या गलत पर दिल में एक अजीब सी बेचैनी थी पर क्या करती, मैं भी आखिर घर वालो के लिए तैयार हो गई थी। यहां पर मेरी बात घर वालो से आगे 12 वीं के बाद कहां पर दाख़िला करवाना उसको लेकर चल रही थी। मैं उनके बताए कॉलेज में नहींं जाना चाहती थी क्यूंकि वहाँ पर गणित यह विषय अनिवार्य था जो मुझे मंजूर नहीं था।

पिता जी बोले - " वहीँ पर दाखिला होगा वह नजदीक है घर से आने जाने के लिए भी। "

मॉ भी बोली - " वहीँ ठीक रहेगा मुझे चिता नहीं होगी इसकी फिर। "

पर यहाँ पर मेरी नजरें धरी की धरी रह गई ,,चल क्या रहा है कुछ समझ मे नहीं आ रहा था पर कुछ बोल भी नहींं पा रही थी वो अलग लफ्ज जैसे निकल ही नहींं रहे थे बाहर ।

घर वालों की खुशी के लिए उनके बताए गए हुए कॉलेज में दाखिला ले लिया पर मेरी हालत जैसे शेर के मुंह मे हाथ डालने बराबर थी।यह किसे बताऊँ मैं

पर क्या पता था आगे चलकर भगवान ने क्या सोच कर रखा था मेरे लिए। मेरी तो जैसे पूरी जिंदगी ही बन जाएगी जब मेरी जिंदगी में उन दो शख्स का हुआ। उनके बारे में कुछ बोलने जाऊँ तो अलफाज कम पड़ जाते हैं पर बातें कभी खत्म ही नहींं होती ऐसे ही है दोनो भी, जिनके बगैर मैं मेरी जिंदगी की कल्पना भी नहींं कर सकती मेरी जिंदगी की रूह है दोनों।

बस दुख इसी बात का है कि अब वो वक्त आ गया है जब सही मायने में उलटी गिनती शुरू हो चुकी है कहने के लिए बस कुछ ही दिन बाकी है कॉलेज के।

पर मेरा इन दोनों के साथ का बौंड पूरी जिंदगी भर का है।


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