थोड़ी अलग पर मेरी कहानी
थोड़ी अलग पर मेरी कहानी
मेरे पिताजी आर्मी में है और माताजी हाउस वाइफ है। दोनो की शादी सन 1995 में हुआ। वैसे पिताजी रहिमतपुर सातारा के है और माताजी शेनदरे सातारा की रहने वाला। माँ के पिताजी का देहांत हो गया जब वे पाचवी में पड रही थी इस वजह से वे अपने चाचा -चाची के साथ रहती थी उस के बाद से पढ़ाई के लिए चाची खडूस थी पहले से ही उनहे खुद तीन बेटियाँ थी और एक लडका काफी देर से हुआ पर चाचा जी अच्छे थे पर माँ बहुत गरीब थी ज्यादा कुछ बोलती नहींं थी उपर से उनका स्वभाव काफी शांत है पर बाकी के परिवार वाले बहुत कपटी मन के है। माँ ने अपनी पढ़ाई सांगली में की पिता न होने की वजह से घर में पैसे आने का कोई और तरीका नहींं था जैसे तैसे दिन कट रहे थे।
माँ एक एक दिन रो रो कर बिता रही थी चाची कॉलेज जो जाते वक्त दरवाजा अड़ा देती, वापस आने के बाद खाने के लिए कुछ नहींं होता था।बडा भाई अध्यापक की पढाई कर रहा था बीच बीच मिलने के लिए चला जाता पर बहेन कुछ ना कह पाती दोनो की ऑखो में पाणी आ जाता। माँ अठरा बरस की होने पर ही शादी का चलने लगा भाई का कुछ चल नहीं रहा था। माँ साडी वगैरा पहन कर देखती थी सहेलियो के। माँ दिखने में अच्छी थी और घर के काम भी आते थे उस वजह से लोग विवाह को लेकर पूछते थे।उनकी माताजी ने कह दिया था लडका सरकारी नौकरी वाला ही चाहिए।उन्नीस की उम्र में एक रिशता आ गया। पिता जी के गाँव के एक पडोसी ने माँ के बारे में बताया। पिताजी अपने कुछ दोस्तों के साथ माँ को देखने के लिए उसके घर चले गए। माँ ने परंपरा की तरह पोहे लेकर आई है और परोसा। बात चित होने के बाद पिताजी ने माँ के भाई से कहा कि मुझे उससे बात करनी है वे भी तैयार हो गए। एक दूसरे से बात करने के बाद सब कुछ सही सही बता दिया पूरे परिवार के बारे में माँ के हात में कुछ नहींं था वह शादी के लिए तैयार हो जाती है 19 फरवरी 1995 को विवाह हो जाता है। घर में सास, ससुर आर्मी रिटायरड, तीन भाई और के ननंद। बडा भाई खेती करता है और भाभी उस वक्त पेट से थी दूसरा बच्चा पहेला एक लडका है। दूसरा भाई भी आर्मी में भरती हो जाता है और एक अध्यापक। पर घर की हालत कुछ ठिक नहींं थी।टूटा फूटा जरा घर था कुछ बैल भी थे 11 एेकर ज़मीन थी। वक्त बीत रहता था।शादी के बाद तीन साल तो माँ गाँव में ही थी। पिताजी एक बार छुटी काटकर गए वो करीब 7 महिने के बाद आए। पिताजी हमारे पहले से ही होशियार थी पूरे परिवार को हमेशा जोडकर रहते थे। यहा पर ननंद की शादी तय हो गई।
लड़का अच्छा है सरकारी नौकरी है। लड़के का घर भी भरा पूरा है माँ के देहांत कम उम्र में ही हो गया था। यहां पर पैसों की जरा तकलिफ हो रही थी। शादी के लिए माँ ने अपना मंगलसूत्र पिताजी को दे दिया उनके कहने पर ना ही तू का जमाना ऐसा था कि हम कुछ गिरवी रख थे पर वह वक्त बीत गया। कुछ वक्त के बाद देवर की भी शादी तय हो गई। लडकी पास के गाँव के ही थी ज्यादा दूर नहीं थी पर इतना कि वह मतलबी थी। माँ पिताजी ने देखा की बहू की वजह से घर में शांति नहींं रह रही थी यह सब देखने के बाद पिताजी ने 90000 जमा किए अध्यापिका बनने के लिए। वह पैसे जैसे तैसे जमा किए थे। पिताजी साल भर की पूरी कमाई इखठा करते और गाँव ले जाकर काम मे इस्तेमाल करते।पर बाकियो को लगता था की जैसे इनके पास बहुत संख्या में पैसा है पर सचमुच अगर एेसा होता तो अभी 2019 में तिन चार फ्लेट और गाड़ी खड़ी होती अभी फिलाल तो ऐसा कुछ भी नहींं जो कुछ पाया वो सिर्फ कड़ी मेहनत और लगन से।
फिर माँ को पता चला कि वो पेट से है यह सुनकर सब खुश थे पर गाँव में रहने की वजह से घर का काम करना पड़ता था। सुबह जलदी उठो और दिन भर पूरा काम करो। पिताजी छुटी पर आने के बाद माँ को हसपताल लेकर जाते थे सब कुछ ठिक चल रहा था पिताजी तब बैगलोर में थे।
सातवे महीने में माँ मायके चली गई। एक महीने के बाद माँ अस्पताल जाकर घर पर आई। सब ठीक था परंतु रात को अचानक पेट में दर्द होने लगा तुरंत अस्पताल लेकर जाने के अलावा और कोई उपाय नहींं था। रिक्शा जैसे तैसे लेकर आए। रिक्शा में बिठाकर अस्पताल लेकर चले जा रहे थे परंतु बीच रास्ते में ही मैं पैदा हो गई। परंतु मेरा जन्म भले ही हो गया पर वो पूरे नौ महिने नहींं हुए उस वजह से बाकी हर चीज़ पर उसका असर पड गया।
डॉक्टर ने तुरंत इलाज किया और मुझे आ. सी. यू पी में रखा पर कुछ वक्त के बाद डॉक्टर ने कहा कि - "बच्ची पुरी तरह से विकसित नहींं हुई है बच पाना मुशक़िल है चार दात निचे के नहींं है बेस ही नहींं है फिट भी आ रही है।
ऑपरेशन करना पडेगा पर कुछ कह नहींं सकते " यह सुनकर माँ रो पड़ी पिताजी भी यहा पर नहीं थे घर वाले परेशान अब क्या होगा। जैसे तैसे ओपरेशन करने का तय हो गया पर वो भी एक प्रकार से टांगती तलवार ही था कुछ भी हो सकता था पर कहते हैं ना माँ की दुआ कभी खाली नहीं जाती और बाकी सब तो थे ही की मैं बच गई उस दिन मेरा पूनर जन्म हुआ यह कहना गलत नहींं होगा कुछ दिनो के बाद मैं घर तो आ गई पर तकलिफे तब भी थी। ना मैंं सोती थी ना दूसरो को सोने देती थी बहुत तकलिफ होती थी माँ को उपर से घर के काम करो पर दादा - दादी मुझे हमेशा बाहर लेकर जाते थे दादी की मैं लाडली थी। दादी का गाँव में बहुत नाम था भजन किरतण करती थी ना कोई गर्व ना किसी से कोई अपेशा नहींं थी पर लोगो को तो बूरी आदत होती है कामयाबी पर जलने की।
बाद में हम सब पंजाब चले गए हमारे साथ बडे देवर का छोटा लडका भी आया वो कहते हैं ना माँ ने उसे ततक ले लिया था वो मेरो माँ और पिताजी को अपने माँ और पिता ही मानता है।पढ़ाई में काफी होशियार है और अगर वो गाँव में रहता तो कभी ठिक से नहींं पड पाता इसलिए हमारे साथ ही आया तब मैं तो कुछ इतना जानती नहीं थी मुझे लगता था की वो मेरा सगा भाई ही है।
वक्त तेजी से बीत रहा था देखते देखते मैं कब बडी हुई पता ही नहींं चला करिब चार साल पंजाब में रहे ज्यादा कुछ वहा का याद नहींं पर पंजाब में रहने के बाद पिताजी की बदली आसाम में हुई और वो इतना विकसित नहींं था तब इसलिए पुणे में आ गए सन 2005 में। पंजाब से लोटते हुए जमू ,अमरितसर जाकर आए उसके कुछ तसविर भी है जब कभी देखती हु तब यादे ताजा हो जाती है। पुणा में करिब 15 साल से रह रहे हैं 8 साल येरवडा में रहे़ लोग बहुत अच्छे हैं एक अपना पन लगता है। भाई की दसवी हुई 2011 मे शायद फिर वो गाँव चला गया अपने माँ और पिता के पास नाही मेरे माँ और पिताजी ने उसे रोका उसके परिवार वालो ने कहा कि उसकी आगे की पढाई हम करवा देगे चला गया फिर वो उसके दसवी में 74% मिले सब बहुत खुश थे सी. बी. एस.ई. में मिले उसे सब बहुत खुश थे इधर मेरी भी दसवी हो गई देखते देखते मैं भी बडी हो गई। वो अपने दुनिया में खुश और मैं अपने दुनिया में। साल में बीच बीच में जाते हैं गाँव और साल में गर्मी की छुट्टी तो हमेशा ही गाँव में बिताते हैं पूरा परिवार एक साथ होता है
भाई मे ही नौकरी करने लगा उसने कभी मुडकर नहींं देखा पर कही ना कही एक रिशता है उसका हमसे। यहा पर मैं टी. वाए में आ गई वाणिज्य विभाग में पढ़ाई करते हुए कुथ भी करना मेरे लिए बिलकुल भी आसान नहींं था पर माँ और पिताजी का साथ हरचिज में इस तरह से मिला की अब किसी बात की चिंता नहींं जानती हू अंत में अच्छा ही होगा। उन दोनो ने जिस तरह से हर मुसीबत के वक्त मेरा हाथ थामे रखा हर बडी से बडी मुसीबत का सामना करने की ताकत मुझे मिल गई जिसके बदौलत आज मैं यहा पर आ पहुंची, बस भगवान से इतनी दुआ कि उनका साथ हमेशा से ऐसे ही रहे।