बातों की बातें
बातों की बातें
उसकी बातें…
जैसे मुझे किसी और दुनिया में ले जाती थी…
मुझे एक अलग अहसासात दिलाती थी…
न जाने क्यों मुझे वो सारा वक़्त हसीन ख़्वाबों सा लगता था…
मुझे लगता था की बस मैं उससे बातें करती रहूँ…
उसकी वह बातें बेहद लंबी हुआ करती थी…
ऐसा तो नहीं की उसकी बातें मेरे मन को भाती थी?
यह आसान सवाल नहीं हैं…
या फिर इसका ज़वाब आसान नहीं हैं…
मुझे पता नहीं क्यों वह कोई करामाती लगता था..
जादू करता हुआ लगता था… उसकी वह बातें…
किसी भी टॉपिक पर…
किसी भी सब्जेक्ट पर…
बातें भी कैसी कैसी…
घूमने फिरने की बातें…
किताबें कहानियों की बातें…
मुझे उससे बात करना अच्छा लगता था…
क्यों?
इस क्यों का कोई जवाब मेरे पास नहीं होता था…
लेकिन मेरा मन बस उससे बातें करने को होता था…
लेकिन बातें करना आसान तो नहीं था…
क्यों?
इस क्यों के ढेर से जवाब हो सकते थे…
मेरी इमेज…
उसकी इमेज…
हम दोनों की मसरूफ़ियत…
मेरा बैकग्राउंड…
उसका बैकग्राउंड…
हम दोनों के सब्जेक्ट्स…
मेरी पर्सनैलिटी…
उसकी पर्सनैलिटी…
हम दोनों के इंटरेस्ट्स…
उसका लिटरेचर में इंटरेस्ट था…और मेरा हिस्ट्री में…
वह प्यार मोहब्बत वाले लफ़्ज़ों में रमता था…
मैं पत्थरों के मोन्युमेंट्स में खोया करती थी…
कितनी बातें…
कैसी बातें…
बातें ही बातें…
कुछ उसके मन की बातें…
कुछ मेरे मन की बातें…
क्या वे सिर्फ़ बातें ही थी?
या बातों में अहसासात थे?
अहसासात भरी बातें क्या कभी रुक सकती है भला?
अहसासात वाली बातें ख़त्म हो सकती हैं भला?

