बारिश और....
बारिश और....
आज काफी दिनों बाद मौसम कुछ सुहाना सा हो रहा था.. मीरा ने चाय लाकर रखी तो मैंने कहा तुम भी बैठो न..
ना जी ना.. बहुत काम है मुझे और चलती बनी..
मैंने अखबार खोला ही था तो उसने आवाज दी..
सुनो न, जरा कपड़े निकाल दो मौसम बिगड़ रहा है.. मैं मुस्कराते हुए उठा और जाकर उसका पल्लू खींचने का प्रयत्न करने लगा..
मेरी इस अप्रत्याशित हरकत से वो झुंझला उठी, उफ्फ आप क्यों दुशासन बन गए...
अरे तुमने ही तो कहा न मौसम बिगड़ रहा है कपड़े निकालो..
आपके मारे न हद है.. मुझे तो लगता है आप न जानबूझकर अनजान बनते हो बातों को समझने के लिए..
ये बात तो मैं भी कह सकता हूं न..
आप क्या कह सकते हो..
यही की तुम भी जानबूझकर ऐसे वाक्य बोलती हो जिसका तुम्हारा रसिया पति कुछ और मतलब निकाले और तुम्हारी ओर खिंचा चला आए..
मीरा ने हाथ जोड़ दिए.. आप और आपकी बातेँ.. प्लीज़ जाइए न कपड़े ले आइए.. कभी भी बारिश हो सकती है..
दिल तो नहीं किया उसे छोड़ने का पर जाना पड़ा..
ये बारिश सच में महिलाओं के कितने काम बढ़ा देती है.. उपर से ये लॉकडाउन में हमारा घर पर रहना और चटर पटर कुछ न कुछ खाते रहना पत्नियों के लिए कुछ ज्यादा ही मुश्किल खड़ी कर देता है..
और मैं तो वैसे भी खाने का शौकीन.. मीठा और नमकीन दोनों बराबर.. अरे भई,, मेरा मतलब मीठा तो मीरा बना ही देती है और नमकीन के लिए???????
वैसे एक बात तो है, कितनी भी व्यस्तता क्यों न रहे मीरा खाना बनाने में कोई कोताही नहीं करती.. खाना बनाने और खिलाने का उसे कुछ ज्यादा ही शौक है... उसके बारे में सोचकर मैं मुस्करा दिया..
पूरे कपड़े निकाल भी नहीं पाया था कि झमाझम बारिश शुरू हो गई..
अरे, आप भीग जाएंगे न.. जल्दी अंदर आइए.. मीरा ने आवाज दी..
लो तुम्हारे कपड़े...
आप भीगे तो नहीं..
कमाल है न तुम्हारा भी, पहले तो कपड़ों की चिंता और अब मेरी फिक्र.. यार थोड़ा भीग भी गया तो घुल नहीं जाऊँगा.. तुम न कभी कभी बच्चों की तरह चिंता करती हो मेरी..
आप किसी बच्चे से कम हैं क्या...
अच्छा जी..
हाँ जी..
आपको ठण्ड कहाँ बर्दाश्त होती है.. आपकी ठण्ड के कारण मैं बारिश का मजा नहीं ले पाती.. मुझे कितना शौक है बारिश में भीगने का.. पर,,,,
चलो साथ भीगते हैं..
ना जी ना.. आप तो चुप ही करो.. आए बड़े भीगने..
अरे चलो न..
नहीं मतलब नहीं.. चलिए आपके लिए पकोड़े बना देती हूं फिर साथ बैठकर बारिश का मजा लेंगे...
पर मेरा मूड तो आज भीगने का है.. उसे गोद में उठाया और छत पर ले आया..
आप न बहुत बुरे हो..
जी सही पहचाना आपने...
मूसलाधार बारिश में उसे भीगते देख बड़ा मजा आ रहा था..
मीरा, बाल खोलो न..
अरे नहीं नहीं.. पूरे बाल भीग जाएंगे फिर सूखने में वक्त लगेगा..
प्लीज़ न यार..
अच्छा ठीक है..
भीगी साड़ी में लिपटी बालों की लटों को चेहरे से हटाते हुए मीरा बेहद प्यारी लग रही थी.. उसके घने घुंघराले बाल पर पानी की बूंद ओस की तरह रुकी हुई थी..
मैं धीरे धीरे उसके करीब पहुंचा और......
मोबाइल बज उठा... देखा तो खड़ूस का कॉल था..
खड़ूस मेरी दोस्त.. उसे कह रखा है कि रोज़ 5.55 पर कॉल कर दिया करे.. वैसे तो रोज उसका ये ड्यूटी बजाना अच्छा लगता है.. पर आज तो दिल किया कि पास होती तो एक थप्पड़ लगाता.. इतने खूबसूरत ख्वाब से जगा दी..
अजी क्या करें.. इस लॉक डाउन ने किसी को पास तो किसी को दूर जो कर रखा है.. और फिलहाल मैं तो दूर हूं.. इसलिए ख्वाबों में ही मीरा को पास बुला रहा था..
पर कमबख्त ये खड़ूस.......

