vijay laxmi Bhatt Sharma

Tragedy

5.0  

vijay laxmi Bhatt Sharma

Tragedy

बालमन

बालमन

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आज गुड्डी बहुत खुश थी आज गांव में मेला को था उसे भी घूमने का मौका मिलेगा, यूं तो मां कहीं जाने नहीं देती आज तो गांव में ही रहना है आज तो भाइयों के साथ साथ उसे भी घूमने का मौका मिल ही जाएगा वरना मां के साथ हाथ बंटाओ वाली सीख की रट सारा दिन पिताजी लगाए रहते हैं। कभी कभी झल्ला भी जाती हूं की आखिर मै ही क्यूं भाई क्यूं नहीं प्र पिताजी के डर की वजह से आवाज ही नहीं निकलती।

आज जल्दी उठ कर मां के साथ हाथ बंटाने लगी ताकि जल्दी से काम खत्म हो तो मां से कह सकूं मां मुझे भी भाइयों की तरह मेले में जाना है। मां ने मेरी मन की स्थिति भांप ली हो जैसे वो बोली क्यूं री गुड्डी आज कहीं जाना है क्या बड़ी जल्दी जल्दी काम कर रही है।वर्ना दस बार कहो तब जाकर एक काम करती हो।

नहीं मां बस सोच रहीं थीं आज तो गांव में ही मेला है तो आज मै भी मेले घूमने जाऊंगी। पागल हो गई है क्या मां लगभग चीख कर बोलीं। तेरे पिताजी को पता चलेगा तो टांगे तोड़ देंगे। पर क्यूं मां भैया लोग भी तो जाते हैं उनकी टांगे तो नहीं तोड़ते पिताजी। चुप कर मां ने गुस्से में कहा चुपचाप अपना काम कर फालतू की चीजों में दिमाग मत लड़ा। मां की मनोदशा इस वक़्त ठीक नहीं थी जैसे बोल मुझे रहीं हो और सोच कुछ और रही हों।

तभी पिताजी आ गए। मां को आवाज दी ऐ क्या शोर हो रहा है तुम्हारी आवाज ज्यादा ही खुलती जा रही है , पूरे गांव को सुनना चाहती हो क्या। लगता है पुरानी बात भूल गईं हो। लड़की को क्या शिक्षा दोगी जब खुद ही कुछ समझ नहीं आता तुम्हें। पिताजी लगभग गरजते हुए बोले।

मां में ना जाने कहां से हिम्मत आ गई वो पिताजी से बोलीं गुड्डी मेला जाना चाहती है। क्या पिताजी लगभग दहाड़े और मां को जोर से चांटा जड़ दिया।अपनी इच्छा बेटी पर थोप दी के बेटी नहीं संभालती तुमसे.. समझा दो उसे हमारे यहां लड़कियां मेले खेलों में नहीं आतीं। ना समझें तो अपना हाल बता देना जबरदस्ती जाने पर फिर क्या हाल होगा घर आ कर उसकी जिम्मेदार तुम होगी। मैं सहमी सुन रही थी बालमन पर एक छाप सी छूट गई की आखिर मै क्यूं नहीं जा सकती, मां क्यूं नहीं जा सकती फिर पिताजी और भाई ही क्यूं जा सकते हैं।

आज उम्र के इस पड़ाव पर भी बालपन की वो एक बात मुझे चाहकर भी नहीं भूलती और ना ही मेरी जिज्ञासा का जवाब आज भी मुझे मिला नहीं।


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