बालिका मेधा 1.22
बालिका मेधा 1.22
नायब सूबेदार अमृतपाल की तैनाती कारगिल की दुर्गम चौकी पर थी। उसके गृहनगर में उसके वृद्ध पिता, माँ एवं पत्नी पवित्रा रहती थी। अमृतपाल की तीन बहनें उससे बड़ी थीं। तीनों का विवाह हो चुका था। वे अपने ससुराल में अपने अपने पति बच्चों एवं गृहस्थी में आनंदपूर्वक रहतीं थीं। अमृतपाल एवं पवित्रा के विवाह को भी सात वर्ष हो गए थे मगर उन दोनों की कोई संतान नहीं थी। वह अवकाश लेकर वर्ष में 2-3 बार ही गृहनगर पहुँच पाता था। ऐसे में दो ही अवसर आए थे, जब पवित्रा के पैर भारी हो गए थे ।
अमृतपाल, अपने माँ-पिता की पोता/पोती नहीं देख पाने एवं पवित्रा के माँ नहीं हो पाने के दुःख से निराश होता था। उसने बड़ी चिरौरी विनती के बाद इस बार डेढ़ माह का लंबा अवकाश स्वीकृत कराया था।
घर बाहर के, अपनी क्षमता भर काम करते हुए माँ-पिता ने, बेटे-बहू को आपसी प्रणय के भरपूर अवसर दिए थे। अमृतपाल एवं पवित्रा ने बिलकुल नव विवाहित जोड़े जैसे प्रेम रस में डूब कर यह समय जिया था। अभी अमृतपाल के अवकाश खत्म होने को बारह दिन थे। तब उसे सूचना दी गई थी, कारगिल में युद्ध छिड़ जाने से उसका शेष अवकाश निरस्त किया गया है।
अमृतपाल को उसी रात मोर्चे पर उपस्थित होने के लिए निकलना था। पवित्रा के नयन अश्रुपूरित थे। सात साल में कभी कभी ही मिलते पति संसर्ग सुख का यह अध्याय भी बीत रहा था। पवित्रा चाहती थी कि अमृतपाल यह देखने तक तो अभी साथ रहे कि उनका अब का साथ, उनके प्रेम बीज को उसके गर्भ में स्थापित करने में सफल हुआ है या नहीं। उपाय कुछ नहीं था। सेना की नौकरी की यह बाध्यता सब समझते थे।
रवाना होने के समय माँ-पिता के चरण स्पर्श कर चुकने के बाद, अमृतपाल ने पुनः शयनकक्ष में जाकर पवित्रा को आलिंगन में लिया और कहा था - "पवि, अब तो तू बेटी का नाम सोच ले। इस बार तो हमारी बेटी होकर रहेगी।"
पवित्रा इस बात पर रोना भूल गई थी। उसने कहा - "मैं तो बेटे का नाम सोचूँगी। माँ-पिताजी को तो पोता चाहिए है।"
अमृतपाल ने कहा था - "यह तो ईश्वर इच्छा पर है।"
पवित्रा ने उदास होकर कहा था - "युद्ध में जा रहे हो, देश की रक्षा के साथ हमारे लिए अपने प्राणों की भी रक्षा करना।"
अमृतपाल ने कहा -" पवि, तू चिंता में न पड़ना। ना देश का और ना ही मेरा, बाल भी बाँका नहीं होगा। "
अमृतपाल फिर कारगिल पहुँच गया था। वह युद्ध में वीरता से हिस्सेदारी लेने में व्यस्त हुआ था। युद्ध लंबा चला था, उसके कुछ साथी भी घायल एवं कुछ वीरता को प्राप्त हो गए थे। इससे अमृतपाल दुखी भी था मगर शूरवीरता से लड़ा था। इसी बीच उसे घर से समाचार भी मिल गया था कि पवित्रा गर्भवती है। साथियों को खोने के दुःख के समय में, इस समाचार से उसे खुशी मिली थी। उसे इस बात ने और बड़ी खुशी प्रदान की थी कि उसकी बड़ी बहन ने, भाभी पवित्रा के गर्भवती होने पर अपनी घर गृहस्थी छोड़कर मायके में आकर पवित्रा की उचित देखभाल करने का फैसला किया था।
फिर युद्ध समाप्त हुआ था। भारतीय सेनाओं ने दुश्मन के दाँत खट्टे किए थे )। युद्ध समाप्ति के बाद अमृतपाल अवकाश लेकर घर आना चाहता था। टेलीफोन पर बहन ने तब कहा था - "अमृत, तू अभी चिंता न कर, पवित्रा का जिम्मा अभी मेरा है। तू तो प्रसव के समय थोड़ी लंबी छुट्टी लेकर आना।"
अमृतपाल को बहन की बात समझ आई थी। उसको पवित्रा से मिलने की, तब हो रही अपनी इच्छा को बलपूर्वक दबाना पड़ा था। अमृतपाल को भी उचित लगा था कि बार बार छोटी छुट्टी पर जाने की अपेक्षा, उसे पवित्रा के प्रसव के समय 1 माह की छुट्टी पर जाना चाहिए।
अमृतपाल डरता भी रहता था। पवित्रा को दो बार गर्भपात हुआ था, वह भगवान से प्रार्थना करता कि इस बार ऐसा कुछ न होने पाए। अपने भय एवं ऐसे अवसर पर पवि से विरह के दुःख में तब एक प्रसन्नता की बात हुई थी। अमृतपाल की वीरता को ध्यान में रख उसे सूबेदार के पद पर प्रोन्नति दी गई थी।
हृदय में चलते इन सब मिश्रित भावों में, समय व्यतीत होने लगा था। पवित्रा का पूरा समय सुरक्षित बीता और प्रसव का समय समीप आया तब अमृतपाल ने इस बात की सूचना सहित अवकाश माँगा था। मेजर साहब ने खुशी खुशी गले लगाकर और शुभकामनाओं सहित अमृतपाल का अवकाश स्वीकृत किया था।
जम्मू से ट्रेन में सवार हुए अमृतपाल की आँखों में पवित्रा की गोद में अपने नवजात शिशु होने का दृश्य रहा था। उसे पिछली छुट्टी से लौटते हुए पवित्रा और अपनी बातों का ध्यान आया था। उसने यात्रा में ही अपने बच्चे का नाम तय किया था। वह अपने मेजर साहब को पसंद करता था। उनका नाम पीयूष था।
उसने यह नाम तय कर लिया था। पीयूष बेटा या बेटी दोनों के लिए उपयुक्त नाम था। अमृतपाल ने एक और बात सोचते हुए इसे पक्का किया था कि पीयूष, उसके नाम अमृत का पर्यायवाची होने के साथ ‘प’ से शुरू होता था जिससे पवित्रा का नाम भी था। घर पहुँच कर जब उसने पवित्रा को अपने हृदय से लगाया था तब पवित्रा यूँ प्रसन्न हुई मानो उस पर अमृत वर्षा हुई हो। फिर 1 जनवरी 2000 को पवित्रा ने बेटी को जन्म दिया था।
मेरी मम्मी को जब पवित्रा आंटी ने यह पूरी कहानी बताई तब मम्मी ने कहा - "पवित्रा जी कितना सुखद संयोग है। मेरी मेधा भी 1 जनवरी 2000 को ही जन्मी है। "
मम्मी एवं पवित्रा आंटी जब घुल मिलकर हँस रहीं थीं। तब हम, पीयूष और मैं, साथ ग्राउंड से उनके पास पहुँचे थे। मम्मा ने हम दोनों को प्यार से देखते हुए पूछा -" पीयूष और मेधा क्या तुम जानती हो कि दोनों 1 जनवरी 2000 को जन्मी हो?"
पवित्रा और मेरे मुँह से एक साथ स्वर प्रस्फुटित हुआ था - "ओह्ह रियली! वाओ! क्या सच में! बहुत खूब!"
(क्रमशः)