बागवान
बागवान
हमारे रामगढ़ वाले दादा जी बाल किशन जी का घर बहुत बड़ा था। घर के बाहर एक बगीचा था। ऐसे तो माली ही देखभाल करता था बगीचे की, लेकिन दादा जी भी अपने हाथ से पेड़ पोधे लगाया करते थे उनको ये सब करना अच्छा लगता था। जिस तरह उन्होने पेड़ लगाए थे बगीचे में , वैसे ही 4 पेड़ उन्होने अपने घर मे भीं लगाए थे। हरीश, गिरिश, मनीश और तनीश।
जैसे जैसेे पेड़ बड़े होने लगे, वैसे वैसे बेटे भी बड़े होने लगे। बड़े होनहार निकले थे चारो बेटे, बिलकुल उन पेड़ों की तरह फलदार छायादार।
सभी जगह उनकी तारिफें होती जहाँ भी वो जाते।
सब यही कहते बड़े अच्छे संस्कार दिये है बाल किशन जी ने अपने बच्चों को। इतनी उम्र हो गई पर उनका रुतबा अभी भी बरकरार है घर-परिवार में।
दादा जी के बेटे पोते-पोती वाले हो चुके थे, फिर भी उनके बेटों की अपने पिता के सामने मुँह खोलने की भी हिम्मत नहीं होती थी। दादा जी के दोस्तों में एक दादा जी ही थे जिनकी घर में इतनी इज्जत थी। उन्होने एक अनुपात में सब को सब कुछ दिया था। ना ही किसी को शिकायत का मौका देते वो। उनकी इस समझदारी के चर्चे थे दूर दूर तक दोस्तों और रिश्तेदारों में।
और एक हमारे पड़ोसी है जिनके अभी सिर्फ पोते ही है, अभी से उनकी इज्जत में भारी कमी आ गई है अगर यही हाल रहा तो वो दिन दूर नहीं कि बच्चे उनको वृद्धाआश्रम का रास्ता दिखा देगे। सारी गलती बच्चो की ही नहीं होती, कुछ हद तक ये कमी बड़ों की ही होती है जो शुरुआत से ही न तो खुद अनुशासन में रहते हैं और न बच्चों को रखते हैं। हर चीज में भेदभाव वाला रवैय्या रखते हैं, सही समय पर सही फैसले नहीं करते है। बड़ों को चाहिए कि जैसे वो चाहते हैं कि बच्चे हमारी इज्जत करे वैसे ही वो भी बच्चों की इज्जत करे।
ये बहुत जरुरी है, माली जब भी पेड़ लगाए, उसको चाहिए कि समय और जरुरत के हिसाब से उस पेड़ की परवरिश करे। ना कि जब जी चाहे बेहिसाब खाद डाल दी, जरुरत से ज्यादा सींच दिया या खाद पानी ही नहीं डाला।
ऐसा करने से वो पेड़ खुद तो क्या पनपेगा। वो दूसरों के भी काम नहीं आता है। हर चीज सही समय पर सही अनुपात में देनी चाहिए पेड़ रुपी परिवार को, तभी बगीचा भी हरा भरा रहेगा और बागवान को हरियाली रुपी इज्जत भी मिलेगी।
मैंने तो सीख ले ली है अपने रामगढ़ वाले दादा जी से और आप ?
