Ragini Pathak

Abstract Drama

4.3  

Ragini Pathak

Abstract Drama

औरतों का घर !

औरतों का घर !

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"तुम बरसात से इतना डरती क्यों हो ?"

"मुझे तो बहुत पसंद है बारिश कड़कती बिजलियां, बारिश में भीगी मिट्टी की सोंधी सोंधी खुशुब" रमन ने अपनी पत्नी खुशी को गले लगाते हुए कहा, 

रमन के सीने से लगी खुशी ने कहा,"मै आपकी तरह हिम्मती नहींं हूं, मुझे तो बहुत डर लगता है बादल के गरजने और बिजली चमकने से.... मुझे तो डर के मारे रोना आ जाता है मै अपने मायके में तो मम्मी से चिपक कर सोती थी कभी अकेली नहीं रही।"

"अच्छा जी! लेकिन तुम रोती बहुत हो .ये तो है हर छोटी छोटी बात में अब वो बात खुशी की हो या गम की,अरे तो एक फौजी की पत्नी हो तुम्हें तो निडर और साहसी होना चाहिए, अब तुम्हें खुद को बदलना होगा क्योंकि अब तुम लड़की नहीं रही....अब तुम माँ बनने वाली हो, अब तुम्हारे कन्धों पर ही सारी जिम्मेदारी है घर माँ बाबूजी और बच्चो का सबका ख्याल तुम्हे ही रखना होगा जो यू डरकर या रो धोकर तो तुम कभी नहीं कर पाओगी, भगवान ना करे कल को कोई बात हो गयी तक" रमन ने खुशी से कहा

खुशी ने तुरंत अपना हाथ रमन के मुँह पर रख दिया और कहा,"भगवान के लिए चुप हो जाइये, ऐसी बातें अपने मुँह से आज के बाद कभी भी मत निकालिएगा।"

खुशी और रमन की शादी हुए अभी सिर्फ तीन साल ही हुआ था खुशी 3 महीने की गर्भवती थी रमन के पिताजी एक किसान और मां एक सामान्य गृहणी है रमन भारतीय फौज में कैप्टन था जिस पद प्रतिष्ठा को प्राप्त करने के लिए उसने बहुत मेहनत की थी क्योंकि रमन के बचपन का सपना था भारतीय फौज में शामिल होना...जिसे उसे अपने बलबूते पर अपनी मेहनत से पूरा किया.......रमन दो भाई थे लेकिन छोटा भाई कोई काम नहीं करता वो पूरी तरह से रमन के पैसों पर ही आश्रित था....... जिम्मेदारियों से वो बहुत ही दूर रहता.....जिम्मेदारी का एहसास समझाने के लिए ही उसकी शादी खुशी और रमन की शादी के एक साल बाद ही कर दी गयी..... लेकिन यहाँ तो सुधार की बजाय वो दोनो एक से भले दो हो गए थे देवरानी की भी निगाह हमेशा रमन के ही पैसों पर रहती। वो स्वभाव से लालची और आलसी दोनो ही थी ये बात रमन के मातापिता को बहुत अच्छे से पता हो गयी थी। इसलिए शादी के एक साल बाद ही उन्हें अलग कर दिया गया। अलग होते ही दोनों अपना खर्च खुद अच्छे से उठाने लगे....चालाकी की हद तो ये थी कि जब मन होता रमन से वो दोनो फोन करके मदद मांग लेते और रमन भी छोटे भाई के मोह में कर देता।

जिस वजह से रमन की माँ ने घर की सारी जिम्मेदारी खुशी के ही कन्धोंं पर थी।

खुशी के मायके में उसके पिताजी बचपन में ही गुजर गए थे दो भाई भाभी थे लेकिन उनको कोई विशेष लगाव खुशी से नहीं था खुशी की शादी भी उन्होंने सामाजिक लोकलाज के दबाव में की लेकिन शादी के बाद उसकी माँ के लाख कहने पर भी भाइयों ने अपनी बहन से कभी कोई रिश्ता नहीं रखा.....उन लोगों ने उसे कभी फोन करके उसकी विदाई नहींं करायी थी खुशी का जब अपनी मां से मिलने का मन होता वो खुद ही आती और मिलकर चली जाती.......रमन सारे सच और अपनी पारिवारिक परिस्थितियों से अच्छी तरह वाकिफ था इसीलिए उसे हमेशा अपने परिवार की चिंता लगी रहती।

एक महीने की छुट्टी बिताकर रमन वापसी ड्यूटी पर चला गया ....वापिस जल्दी आने का वादा करके.....

नौ महीने बाद खुशी ने दो जुड़वा प्यारी सी बेटियों को जन्म दिया। जिसकी खबर सुनकर रमन बहुत खुश हुआ....

उसने कहा ,"अभी छुट्टी नहीं मिली लेकिन अगले महीने में पक्का आ जाऊंगा छुट्टी की अर्जी लगा दी है।"

लेकिन तब तक सीमा पर कारगिल का युद्ध छिड़ गया और सभी सैनिकों की छुट्टियां कैंसिल कर दी गयी। रोज टीवी पर सैनिकों की शहादत की खबरों को सुनकर खुशी का मन डर जाता....मन मे तरह तरह के ख्याल आने लगते उसका मन डर और किसी अनहोनी के आशंका से कांप उठता। और वो रोने लगती।

तो हर बार खुशी की सास कहती,"तू इतनी कमजोर हो जाएगी तो बेटियों को कौन संभालेगा"....

"और जरूरी तो नहीं की हर सैनिक शहीद ही हो बेटा"

...".खुद को मजबूत बना और अपनी बेटियों को भी मजबूत बना.....क्योंकि एक मजबूत इच्छा शक्ति की माँ ही अपने बच्चे को मजबूत और दृढ़ इच्छा शक्ति का व्यक्तित्व बना सकती है और सही राह दिखा सकती हैं।"

दोनो बच्चो को गोद मे लिए खुशी ने कहा,"आप सही कह रही है माँजी...मैं अपनी बेटियों को उनके पिता की तरह मजबूत व्यक्तित्व का बनाउंगी......मजबूर या डरपोक नहींं।"

अगली सुबह खुशी ने सास को चाय पकड़ाई और कहा,"माँ!मै रसोई में नाश्ता बनाने जा रही हूं।"

तब तक ससुर जी ने लड़खड़ाते हुए कदमो के साथ कमरे में प्रवेश किया तो उनको खुशी ने पकड़ते हुए कहा,"क्या हुआ बाबूजी आपकी तबियत नहींं ठीक है क्या?" उनके चेहरे की गम्भीरता और भाव देखकर खुशी को लगा कि कुछ तो हो गया है। लेकिन क्या ......

ससुर जी की हालत देख कर उसकी सास जोर जोर से रो रही थी वो उनको झकझोरते हुए बोले जा रही थी "क्या हुआ जी? भगवान के लिए कुछ तो बोलिए.....क्या हुआ ....किसी से झगड़ा हुआ क्या...... आप इतना बेचैन क्यों है?"

तब तक खुशी के मोबाइल पर फोन आया....... देखा तो रमन का नम्बर था.... खुशी ने तुरंत झटके से फोन उठाकर एक सांस में बोला,"हेलो!रमन तुम ठीक हो ना..... पता नहीं बाबूजी को क्या हो रहा है सिर झुकाए बैठे है कुछ भी नहीं बोल रहे.......मुझे तो डर लग रहा है पता नहीं क्या बात हो गयी....तुम्हें पता है ना इस तरह के परिस्थितियों से मै कितना डरती हुँ लो तुम ही समझाओ"....रोती हुई खुशी ने एक सांस में सारी बात बोली।

तभी उधर से आवाज गूंजी" मैडम !मैं रमन नहीं एक सिपाही बोल रहा हूं कैप्टन रमन युद्ध मे शहीद हो गए।"

इतना सुनते खुशी के हांथो से फोन छूट गया और वो सीधा ताड से जमीन पर गिर पड़ी और मूर्छित हो गयी....रमन के शहीद हो जाने की खबर पूरे मोहल्ले में फैल गयी......खबर सुनते आस पड़ोस से जानने पहचानने वाले भागकर आये खुशी के मुँह पर पानी का छीटा देकर होश में लाया गया।

रमन का पार्थिव शरीर पूरे राजकीय सम्मान के साथ तेज बारिश के बीच उसके घर लाया गया।आकाश में आज भी बिजलियां चमक रही थी बदल गरज रहे थे ऐसा लग रहा था जैसे बादल भी आज गर्जना करके के जैसे देश के इस वीर सपूत को अपनी श्रद्धांजलि दे रहे हो.....पेड पौधे हवा के तेज झोंको से झुक झुक कर जैसे उसे आज सलामी दे रहे थे


रमन को श्रद्धांजलि देने तेज बारिश में भी आसपास के गाँव से लोगो का हुजूम उमड़ पड़ा था


,"सब नारा लगाए जा रहे थे भारत माता की जय,जब तक सूरज चांद रहेगा रमन तुम्हारा नाम रहेगा....हमारा रमन अमर रहे।"

हर छोटी से छोटी बात पर डरने और रोने वाली खुशी के आंखों में आज डर और आंसू दोनो नहीं थे उसने बेटियों के साथ रमन को भावपूर्ण श्रद्धांजलि देते हुए कहा,"देखो रमन आज मै रो नहीं रही और अब कभी रोऊंगी भी नहींं, तुम यही चाहते थे ना..... लेकिन तुम जानते हों क्यों?"

" क्योंकि अब कोई चुप कराने वाला और आंसू पोछने वाला नहीं बचा मेरे पास" ...जिसने भी ये मंजर देखा उसकी आँखों मे आंसू आ गए......पूरे राजकीय सम्मान के साथ रमन के पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार किया गया। लेकिन घर लौटे वक्त रमन के पिताजी अपने जवान बेटे की मृत्यु का गम बर्दाश्त ना कर पाए और उनका भी देहांत हो गया।

अंतिम क्रिया कर्म के समापन के बाद घर मे मौजूद आस पड़ोस के लोग और नात रिश्तेदार खुशी की सास को समझाने लगे कि वो अपने छोटे बेटे को अब साथ रख ले क्योंकि बिना मर्द के घर सुरक्षित नहीं होता...... 

खुशी बेचारी अकेली औरत आखिर कोई बात ऊंच नीच हुई तो क्या कर लेगी?कल को दोनो बेटियां बड़ी होगी तो उनकी सुरक्षा के लिए भी तो कोई मर्द होना चाहिए ना घर मे ......आजकल वैसे ही जमाना बड़ा खराब है। हर रोज ही समाचार में सुनने को मिल जाती है रेप किडनैपिंग जैसी घटनायें......देवरानी ने इतना सुनते ही दुःख में भी कुटिल मुस्कान ली जिसे खुशी ने देख लिया।

तब खुशी ने सबके सामने हाथ जोड़ते हुए नम्रतापूर्वक कहा,"आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया मेरे दुःख में शामिल होने के लिए,लेकिन आपकी राय मुझे नहींं मंजूर मैं कभी भी इन लोगो को अपने साथ नहीं रखूंगी।

रही बात हमारी तो ये सही है.कि" मैं और माँजी एक औरत है लेकिन बेचारी,अबला या कमजोर नहीं".....

हम दोनो एक मजबूत औरत है मै एक शहीद की पत्नी हुँ और माँजी एक शहीद की माँ और शहीद की पत्नियां और मां कभी कमजोर नहींं होती। हम सब काफी है एक दूसरे को संभालने के लिए।

और रही बात मेरी बेटियों के सुरक्षा और सुरक्षित भविष्य की तो मै उन्हें इतना काबिल और बहादुर बनाउंगी की वो अपनी सुरक्षा स्वय कर सके।

इतना सुनते खुशी की देवरानी का मुँह बन गया.... क्योंकि उसकी निगाह तो रमन को मिलने वाले पैसों पर और पेंशन पर थी उसने सोचा कि वो एहसान और अधिकार दोनो जमा लेगी लेकिन ख़ुशी ने ऐसा कहकर उसके सारे मंसूबो पर पानी फेर दिया।

समय तेजी से पंख लगाकर उड़ गया बेटियां बड़ी हो गयी थी आज भी तेज बरसात हो रही थी बादल गरज रहे थे बिजली कडक रही थी लेकिन आज खुशी हाँथ में कॉफ़ी का मग लिए खिड़की पर बैठी पुरानी यादो में खोई हुई बरसात की बूंदों को देख रही थीं।

तभी फोन के घँटी बजी तो देखा,"बेटियों का फोन था उसने फोन पर हालचाल पूछा......दोनो बेटियों ने बताया की उन्हें छुट्टी मिल गयी है और वो अपनी माँ और दादी से मिलने घर आ रही है।

खुशी खुश थी क्योंकि उसकी दोनों बेटियां भी भारतीय फौज में देश की सेवा करके देश परिवार और खुशी का मान बढ़ा रही थी।"

बरसात की रात खिड़की के बाहर गरजते बादल कड़कती बिजली खुशी ने रमन की तस्वीर को सीने से लगाते हुए कहा,"देखो रमन मैंने तुमसे किया अपना वादा पूरा किया... तुम्हारी तरह तुम्हारी दोनो बेटियां भी फौज में ही भर्ती हुई,तुम्हारी बेटियां तुम्हारी तरह निडर और बहादुर है वो छोटी छोटी बातों में रोती नहीं मेरी तरह.... अब तो तुम खुश हो ना।"

वैसे एक बात तो तुमको बताना ही भूल गयी अब मैं भी छोटी छोटी बातों में नहीं रोती।

प्रियपाठकगण उम्मीद करती हूँ कि मेरी ये रचना आप सबको पसन्द आएगी। कहानी पूर्णतया काल्पनिक है। कहानी का उद्देश्य सिर्फ इतना है कि शहीद सैनिकों के बारे में बात करना और लिखना जितना आसान है उतना ही मुश्किल है किसी भी शहीद के परिवार का जीवन क्योंकि शहीद सैनिक तो देश के लिए शहादत देकर चला जाता है। लेकिन उतना ही कठिन संघर्ष मय जीवन हो जाता है उस शहीद के परिवार का जीवन। इसलिए हमें खुले दिल से अपने शहीद सैनिकों के परिवार की मदद करनी चाहिए..... बिना किसी भी लालच के।


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