और वो चले गए

और वो चले गए

3 mins
423



कुछ ऐसा स्वभाव की जीवन में बहुत जल्द किसी से प्रभवित नही होती!बात उन दिनों की है, जब मैं स्कूल में पढती थी। हमारे प्राचार्य अपने काम में व्यस्त काफी व्यस्त रहते थे ।उनके टेबल में उनका नाम और पद साथ में एमएससी केमेस्ट्री लिखा रहता था।जो मुझे अच्छा लगता था ,क्योकि उस समय ज्यादा विज्ञान विषय के शिक्षक नही थे।

सर का व्यवहार बच्चों से बहुत वात्सल्य भरा था।वो कोई विषय के शिक्षक नही थे,जो क्लास में पढ़ाने आते।वो तो प्रिंसिपल सर थे,पूरे स्कूल की जिम्मेदारी उनके ऊपर थी।फिर भी सर हमे विज्ञान विषय पढ़ाने आते।इतनी सरलता पूर्वक समझाते की विज्ञान विषय ही बच्चों का पसंदीदा विषय हो गया।हालांकि सब विषय के शिक्षक थे,बस!!विज्ञान के नही थे,इसलिए सर पढ़ाने आते।विषय शिक्षक से तो फिर भी बात कर लेते है,पर प्रिंसिपल सर वो तो बहुत व्यस्त रहते थे।

अक्सर सेल्युकर सर(प्रिंसिपल) कभी दिख जाते तो नमस्ते करते थे।मन करता था कि सर से बात करे क्योकि सर के एक -एक शब्द बहुत प्रेरक होते है।उनकी बातों से हमें बहुत प्रेरणा मिलती थी।जब वो किसी कर्यक्रम में भाषण देते।सामान्यतः भाषण सबको बोरिंग लगता है,पर सेल्युकर सर(प्रिंसिपल)का भाषण का तो सबको इंतजार रहता।उनका एक -एक शब्द नॉवेल की तरह लगता।

                इसके अतिरिक्त जब भी स्कूल में कोई कार्यक्रम रहता सबसे पहले स्कूल वे ही पहुँचते। समय के भी काफी पाबंद!! बाकी सब शिक्षक लेटलतीफी से आते।चाहे वो गणेश पूजा हो स्कूल में या 15 अगस्त, 26 जनवरी की तैयारी हो !सेल्युकर सर बच्चों को समय देते थे।

          सामान्य कद काठी के पर एक हल्की मुस्कान उनके आभा मंडल को हमेशा शुशोभित करता था।बच्चों के मन में एक आदर्श शिक्षक की जो छवि थी! उसमें सेल्युकर सर से अलग किसी की कल्पना नही थी।ऐसा ही सर का प्रेरक व्यक्तित्व ,व सरल स्वाभाव था। भीड़ में उनकी एक अलग पह्चान थी।

                     11वीं में विषय चयन बायोलॉजी लिया मैंने, सर को जब भी समय मिलता वो हमे समय निकाल कर पढ़ाने चले आते।इस बीच सर का प्रमोशन हुआ ।बस कुछ समय निकला था।गर्मी की छुट्टियों में हम नानाजी के घर गए थे वहाँ से जब आये तो पता चला की उनकी हृदयगति रुक गयी,और वो चले गए। हमे बेहद दुःख हुआ साथ ही सभी विद्यर्थियो को!! उनका नही रहने के दुःख के साथ जब ये बात पता चली की सर झूठे आरोपो में फंस गए।एक ईमानदार सरल व्यक्ति के साथ ऐसा होना।बहुत दुःखद था।वो सदमा बर्दाश्त नही कर सके।ऐसा लगता की हम पूरी दुनिया से कहे की सर बहुत अच्छे थे।

उनके प्रमोशन के बाद कुछ गड़बड़ हुआ जिसमे घोटाले में उनका नाम आया और जब ये बात उन्हें पता चली उसी वक्त उनकी हृदयगति रुक गयी, हमेशा के लिए !!ज्यादा जानकारी तो नही थी क्योकि हम स्कूल में पढ़ते थे! बच्चों के निच्छल मन में जो उनकी ईमानदारी की छवि थी! इस ईमानदारी की ये सजा बेहद दुखमय लगा।वो जंहा कंही भी है सेल्युकर सर आपको मेरा शत शत अश्रुपूरित श्रंद्धांजलि।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama