Pawanesh Thakurathi

Others Romance

5.0  

Pawanesh Thakurathi

Others Romance

अतीत की मुहब्बत

अतीत की मुहब्बत

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पिछली बार जब हम होली में गाँव गये थे तब वहाँ एक भाभी को देखकर चंदू और मैं दोनों अतीत में पहुँच गये। पहले तो चंदू को यकीन ही नहीं हुआ कि यह वही लड़की है या कोई और- "यार ये तो ग़जब हो गया। देख तो ठीक से एक बार और।"

मैंने भाभी को गौर से देखते हुए कहा- "वही है यार हंड्रेड परसेंट, लेकिन लगता है उसने नहीं पहचाना।"

"न ही पहचाने तो अच्छा है। नहीं तो मेरी अतीत की मुहब्बत जाग जायेगी।"

"मेरी तो शर्म से हालत खराब हो रही है। चल चलते हैं यहाँ से!"

   

बात उन दिनों की है जब चंदू और मैं नौवीं कक्षा में पढ़ते थे। उसी दौरान चंदू और मैं अल्मोड़ा का नंदादेवी मेला देखने आये। मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रमों की धूम मची थी। उस समय लोक कलाकार साली-भीना आधारित लोकगीत में लोकनृत्य का प्रदर्शन कर रहे थे-

      भीना- मेरि साली त्वै हणी ल्यायूं कलमी आम। 

             मेरि साली चुस दे फटाफट। 

      साली- म्यर भीना त्वै हणी ल्यायूं लाल फौन्टेना। 

             म्यर भीना लिखदे घसाघस...... 

( भीना- मेरी साली तेरे लिए मैं कलमी आम लाया हूँ। 

      मेरी साली तू इसे फटाफट चूस दे। 

 साली- मेरे भीना तेरे लिए मैं लाल फाउंटेन लाई हूँ। 

      मेरे भीना तू इससे घसाघस लिख दे......) 

  सभी दर्शक लोक कलाकारों के लोकनृत्य को मुग्ध होकर देख रहे थे। उसी समय चंदू ने मुझसे कहा- "तू यही पर रूक मैं अभी आ रहा हूँ।"

थोड़ी देर में उसने एक कागज़ का टुकड़ा मुझे थमा दिया और बोला कि "जाकर सामने खड़ी लड़की को दे आ।" मैं मूरख नादान बिना कुछ सोचे-समझे सीधे लड़की के पास गया और कागज़ उसके हाथ में थमा आया। लड़की के साथ उसकी एक सहेली भी थी। लड़की पहले तो ना-नुकुर करने लगी किंतु सहेली के कहने पर उसने कागज़ पकड़ लिया और दोनों वहाँ से चली गईं। मैं भी चंदू के पास आकर बैठ गया। चंदू ने पूछा, तो मैंने कहा "दे दिया।" चंदू खुश होकर बोला- "भैरी गुड।"

थोड़ी देर में उस लड़की की सहेली हमारे पास आई और बिना कुछ बोले कागज़ मेरे हाथ में थमा कर चली गई। चंदू और मैं साइड में आ गये। चंदू अत्यधिक उतावला हो रहा था, मुझसे बोला- "जल्दी खोल-जल्दी खोल।" मैं कागज़ खोलकर पढ़ने लगा-

"आप कौन हो मुझे नहीं पता, लेकिन आपको देखकर मुझे आपसे प्यार हो गया है। अगर आप इस कागज़ में अपना नाम और पता लिख कर भेजेंगे तो मैं समझूँगा कि आपको मेरा प्यार कबूल है-

फूल है गुलाब का चमेली का मत समझना, 

आशिक हूँ आपका, सहेली का मत समझना।

                    - आपका आशिक चंदू।"

 इसी के ठीक नीचे लड़की ने अपना जवाब भी लिखा था-

"आप कौन हो मुझे भी नहीं पता, लेकिन आपको देखकर मुझे अपने भैया की याद आ गई, क्योंकि आप सेम-टू-सेम मेरे भैया जैसे दीखते हो। इसलिए आज से मैं आपको अपना भाई मानती हूँ-

लड़की हूँ पुरानी, नये दौर की मत समझना, 

बहन हूँ आपकी किसी और की मत समझना।

                    -आपकी बहन रबीना।"

पत्र पढ़कर मैं हँस -हँसकर लोट-पोट हो गया। चंदू के मुंह से इतना ही निकला- "धत्त तेरे की ! इसने तो नहले पे दहला मार दिया।"

हम अतीत की स्मृतियों में खोये हुए ही थे कि उसी समय एक लड़का आया और बोला- "भैया आप दोनों को रमुली भौजी बुला रही है, गुजिया खाने।"

हमने जाने का साहस जुटाया, क्योंकि एक-न-एक दिन तो भौजी से मुलाकात होनी ही थी। ज्योंही हम भौजी के घर के आंगन में पहुंचे त्योंही एक बाल्टी रंग घुला पानी हमारे ऊपर पड़ा। हमने ऊपर देखा तो छत पर रमुली भौजी, सुनीता और किरन दीदी के साथ ही-ही करके हँस रही थी। 

मैंने चंदू से मजाक की- "भैया, उस लेटर का असर कहीं अब तो नहीं हो रहा है !"

"हाँ यार, मुझे भी ऐसा ही लग रहा है। साला तब का मारा तीर अब जाके लगा निशाने पर।" ऐसा कहकर चंदू ने एक आँख झपकाई। 

 इससे पहले कि दूसरी बाल्टी का रंग हमारे ऊपर गिरता हम वहाँ से रफूचक्कर हो गये।


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