असली पूजन
असली पूजन


तड़के दुकान खोलते ही सेठ जी पुनीत को जल्दी जल्दी दूध की थैलियां ग्राहक के घर दे आने को बोलते हैं।
"बाबू! हमे भी दे देते दूध थोड़ा..."
"अरे आगे बढ़ो भाई, अभी अपने शिव जी को मैंने चढ़ाया नहीं तुम चले आते हो!" उस मांगने वाले को दुत्कार कर भगा देते हैं।
"शौक बड़े है, दूध पियेंगे...
सेठ जी के पूजा करने जाते ही पुनीत उसकी बोतल में भर देता है थोड़ा दूध," हाँ जल्दी जाओ भईया.. और हाँ ये चोरी नहीं है मेरे चाय के लिए सेठ जी देते हैं उस हिस्से में से दे रहा हूं।"
ग्राहक को दूध देने जाते वक़्त रास्ते में देखता है कि वही आदमी वो दूध भूखी कुत्ते के बच्चे को पिला रहा था।
"बाबू ये ही मेरे बच्चे है, हम ही परिवार है एक दूसरे के "
पुनीत बोला "तुम मत आओ दुकान पर, मैं आते हुए दूध लेते आऊंगा.."
सच ही तो है परिवार के भरण-पोषण के लिए कुछ भी करना पड़ता है, बस इसी राह में।