अपने हिस्से का दर्द
अपने हिस्से का दर्द
पूरी दुनिया आर्थिक मंदी से गुजर रही थी।प्रत्येक देश में कर्मचारियों की छँटनी हो रही थी।कईकंपनियां बंद हो गई या अपने कर्मचारियों को सीधे मेल भेज कर नौकरी से निकाल दे रही थी।
रोहित ,भी आर्थिक मंदी का शिकार हुआ ,एक दिन मेल आया अगले महीने से काम पर आने कीज़रूरत नहीं।”यूँ आर फायर्ड।”रोहित को अंदेशा तो था क्योंकि कुछ महीनों से बॉस के आँखों काकिरकिरी बना हुआ था।
नौकरी चले जाने से रोहित मन ही मन टूट गया था। काफी हाथ पैर मार रहा था ,लेकिन कुछ
नहीं पा रहा था।बैंक में रखे पैसों से घर का खर्चा कब तक चलता रोहित परिवार से कटा कटा रहने लगा।तन्हा रहना ।कमरे में बंद रहना उसे अच्छा लगता।नीतू ,पति को सांत्वना देती।खर्चों में भी काफ़ी कटौती कर दी थी।कामवाली को हटा दिया था,अपने पार्लर के और अन्य फ़ालतू के खर्चें भी बंद कर दिए थे।पूजा -पाठ की तरफ़ झुकाव बढ़ गया था ।माहौल हल्का करने के लिए रोहित से हँसी ठिठोली करती ताकि रोहित चिंतामुक्त रहे।
बाहर बरामदे में अंधेरे में रोहित को अकेले बैठे देखा ,तो अकेलापन दूर करने के लिये नीतू पासआकर कुछ रोमांटिक अंदाज में गुनगुनाते हुए चुहल बाज़ी करने लगी तभी रोहित चिल्लाते हुएबोला “तुम्हें मज़ा आ रहा है ना ,’मेरी नौकरी चले जाने से”सब समझ रहा हूँ ,मैं।"नीतू अवाक् सी जड़वतरोहित का मुख देखती रही और अपने ग़ुस्से को पी गई।
किचन में जाकर रोहित के पसंद के पकौड़े तलते वक्त गर्म तेल के छींटों के लहर रोहित के तानों सेकम थेहाथों पर पड़े छालों पर मरहम लगा कर ...नीतू,अपने हिस्से के दर्द को ठंडे पानी से धो करकुछ देर से बाथरूम से निकली...और फिर रोहित का तन्हाई दूर करने उसके साथ हो ली।