अपमान

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"सौरभ, तेरी मम्मी का विदेश घूमने का बहुत मन है। अब तू जब बहू के साथ अमेरिका में ही रहने लगा है, तो कुछ दिन के लिए अपनी मम्मी को भी ले जा अपने साथ" प्रदीप जी ने अपने बेटे सौरभ से विनयपूर्ण अंदाज में कहा। तभी सौरभ की मम्मी शिखा जी बोली "ये आप कैसी बातें करते हो ? सौरभ अब हम दोनों को ही अपने साथ ले जायेगा। यहाँ अब हम दोनों का अकेले मन ही कहाँ लगता है" 

सौरभ उन दोनों की बातें सुन कर थोड़ा खिजते हुए बोला "अमेरिका में रहने का मतलब पता है, आप लोगों को ? हम तीन लोगों का तो खर्चा उठाना मुश्किल हो जाता है और आप मुझसे उम्मीद लगा रहे हो कि मैं आप दोनों को भी अपने साथ ले जाऊं" शिखा जी ने थोड़े मिन्नत भरे स्वर में कहा "बेटा हम दोनों तुझ पर बोझ नहीं बनेंगे। हम अपना खर्चा खुद उठा लेंगे। यहाँ का घर किराये पर चढ़ा देंगे और तेरे पापा की पेंशन भी तो आती है। मैं घर ले कामों में भी मदद कर दूंगी और तुम्हारे पापा भी ध्रुव (उनका पोता) उसकी पढ़ाई-लिखाई में मदद कर देंगे" इस बार सौरभ ने चिल्लाते हुए कहा "बस करो मम्मी, आप हमारी क्या मदद करोगी ? आपके जाने से तो हमारा काम और बड़ जायेगा। आप के लिए अलग से वैज खाना बनेगा, ना आप किसी से ढंग से इंग्लिश बोल पाओगी। इससे तो अच्छा है, मैं कोई पढ़ी लिखी मैड रख लूंगा" 

अब प्रदीप जी से अपने गुस्से पर काबू नहीं हुआ, उन्होंने तेज़ आवाज़ में कहा "एक बच्चे की पहली गुरु उसकी माँ ही होती है। शिखा ने अपने सारे शौक मार कर तेरी परवरिश की और आज तू उसकी इतनी बेइज़्ज़ती कर रहा है। हम लोगों से बहुत बड़ी गलती हो गई, जो हमने तेरे साथ रहने की सोची। तेरे मन में तेरी मम्मी की इज़्ज़त हो या ना हो पर मैं अपनी पत्नी के खिलाफ कुछ नहीं सुन सकता। तू यहाँ से जा सकता है" सौरभ अमेरिका लौट गया, इधर शिखा जी बहुत उदास रहने लगी। 

प्रदीप जी उन्हें समझाते कि "जब औलाद का दिल पत्थर का बन जाए, तो उससे कुछ भी उम्मीद रखनी बेकार है" एक दिन प्रदीप जी के पड़ोस में रहने वाले शिखर और उनकी पत्नी स्मिता अपने दस वर्षिय पुत्र के साथ उनके पास आये और बोले "अंकल मेरे पापा को हार्ट-अटैक पड़ गया है। मैं और स्मिता हॉस्पिटल जा रहे हैं। आप केशव को शाम तक अपने घर में रख लीजिये" प्रदीप जी ने उन्हें आश्वासन दिया कि "आप केशव की तरफ से बेफिक्र रहिये और अपने पिता का ध्यान रखिये" प्रदीप जी ने केशव का होमवर्क करवाने में उसकी मदद की और शिखा जी ने उसे उसकी पसंद का खाना खिलाया।

रात को शिखर केशव को लेने आया तो शिखा जी ने उन दोनों के लिए भी खाना दे दिया। 

अगले दिन शिखर और स्मिता फिर से प्रदीप जी के घर आये और उनकी तारीफ करते हुए बोले "आपने केशव का होमवर्क इतना अच्छा करवाया की उसे सभी कामों में ऐ+ मिला है और आंटी ने तो कमाल का खाना बनाया था।

आंटी आपको तो घर पर ही कुकिंग क्लासेज़ लेनी शुरू कर देनी चाहिए और अंकल को एक कोचिंग सेंटर शुरू कर लेना चाहिये" प्रदीप जी और शिखा जी एक साथ ही बोले "अपने बच्चों के लिए कुछ कर के जो ख़ुशी मिलती है, वही हमारे लिए हमारा मेहनताना है। अब इस उम्र में कोचिंग क्लास की या कुकिंग क्लास की ज़िम्मेदारी नहीं उठाई जायेगी" प्रदीप जी और शिखा जी के अच्छे स्वाभाव की वजह से धीरे-धीरे आस-पास के बच्चे प्रदीप जी से पढ़ने आने लगे और लेडीज़ शिखा जी से तरह-तरह की रेसपीज़ सीख कर जाने लगी।सब के अपनेपन और प्यार की वजह से धीरे-धीरे प्रदीप जी और शिखा जी को सौरभ की कमी खलनी भी बंद हो गई।

एक दिन अचानक से सौरभ का फोन प्रदीप जी के पास आया की "दिव्या (उसकी पत्नी) प्रेग्नेंट है इसलिए मम्मी कुछ समय के लिए उनके पास आ जायें" जब प्रदीप जी ने शिखा जी से पूछा तो उन्होंने उनके हाथ से फोन लेकर सौरभ से कहा "बेटा बहुत ख़ुशी की बात है, पर मैं वहां नहीं आ पाऊँगी। मैं दिव्या की क्या देखभाल कर पाऊँगी मेरे आने से तो तुम्हारा काम बड़ जायेगा। मुझे तो सही से इंग्लिश बोलनी भी नहीं आती।

दिव्या के लिए एक मैड लगा ले, अगर रूपय-पैसे की कोई दिक्कत लगे तो अपने पापा को बता देना। अपने एक बेटे के परिवार के लिये, मैं अपने उन बच्चों का दिल नहीं दुखाना चाहती, जिन्होंने हमसे हमारी पहचान करवाई है। जो हमारा हर समय ख्याल रखते हैं। वो हमारी छोटी-छोटी खुशियों में शामिल हो कर, हमारी ख़ुशी दुगनी कर देते हैं। हम सब अब एक परिवार की तरह साथ हैं  तुम सब हमेशा खुश रहो। मेरा और तेरे पापा का आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है" कह कर शिखा जी ने फोन रख दिया। 


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