Pratibha Joshi

Horror

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Pratibha Joshi

Horror

अनूठी पहेली

अनूठी पहेली

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“शेखर, अब तू जबलपुर जा रहा है।तेरी ये कैसी नौकरी है आज यहाँ तो कल वहाँ ? हम पति पत्नी अपना घर छोड़ तेरे साथ रहने का सोचें भी तो कैसे ? तुझे पता है जबलपुर में झरने हैं जिन्हें देखने लोग दूर दूर से आते हैं।शायद हम भी प्लान बना लें तेरे पास आने का लेकिन हम वहाँ भी तेरा सिर्फ इंतजार ही करते रह जायेंगे हर बार की तरह।चल, अपना ध्यान रखना बेटा।बाकी तू तो पुलिसवाला है।तुझसे तो तेरे सामान का ध्यान रखना कहना ही बेकार है।” लम्बी बातों को विराम दे शेखर की मम्मी ने अपना फ़ोन रख दिया।

शेखर अपना सामान पैक करते हुए सोचने लगा कि हूँ तो मैं सीबीआई में लेकिन मम्मी हमेशा पुलिसवाला कहती हैं।वो मुस्कुरा उठा और अपने मोबाइल पर जबलपुर के बारे में मिलनेवाली जानकारियां पढने लगा।उसे किसी क्रिमिनल इन्वेस्टीगेशन के लिए जबलपुर जाना था तो केस से सम्बंधित महत्वपूर्ण बातें तो उसने अपने ऑफिस से कलेक्ट कर ही ली थीं, बाकि तो मोबाइल से वो जबलपुर को जान रहा था।

जबलपुर में अपना सामान क्वार्टर में रख वो सुबह सुबह ही ऑफिस पहुँच गया जिससे वहाँ का स्टाफ आश्चर्यचकित हो गया।अपनी डिटेल्स दे वो स्टाफ से बातें करने लगा। 

दिन में वहाँ के ही किसी स्थानीय बन्दे के साथ वो जबलपुर घूमने निकला गया।रात को क्वार्टर पर पहुँच कर दरवाजा खोलते ही अपना सामान कोने में पड़ा देख वो सोचने लगा कि आज दिनभर घूमने फिरने के चक्कर में खाना पीना ढंग से हो नहीं पाया इसलिए अब पहले खाना खा आता हूँ फ़िर सामान जमाऊंगा।फिर से ताला लगा कर वो सड़क पर आ कर एक रेस्टोरेंट ढूंढने लगा। शेखर सड़क पर चल रहा था कि उसे आवाज़ सुनाई दी, “रूकिए”।

वो रूक गया और आगे पीछे देखने लगा कि आवाज़ कहाँ से आ रही है।एक सुंदर सी लड़की पीछे आ रही थी।वो थोड़ा तेज चल कर उसके नजदीक आ गई और मुस्कुराकर बोली, “नए आये हैं जबलपुर में ?”

“जी, इस बड़े शहर में रोज कितने ही नए लोग आते होंगे।” कहते हुए शेखर उसे देखने लगा।

“जबलपुर है ही बहुत सुंदर।इसलिए मैं भी अपने दोस्तों के साथ यहाँ आई थी इसे देखने।यहाँ का वॉटरफॉल ऑसम है।”

“तो तुम यहाँ की नहीं हो ? इतनी रात को यहाँ क्या कर रही हो ?”

“तुम पुलिसवाले, तुम्हारी खोजबीन कभी खत्म ही नहीं होती।” लड़की मुस्कुराई।

“तुम मुझे जानती हो ?” शेखर उसके चेहरे को पढ़ने लगा और खुद के लिए पुलिसवाला सुन उसे अपनी मम्मी याद आ गई।

वो मुस्कुरा दिया।थोड़ी बहुत बातें करके वो बोली “अब मैं चलती हूँ।कल फिर मिलेंगे।कल भी आना।” वो पीछे मुड़कर जाने लगी।

“तुम कहाँ से आई हो ? वापस अपने घर गई नहीं और कल फिर वापस आ जाओगी ?” शेखर बोलता ही रहा पर वो सुनने के लिए रुकी नहीं।

शेखर सोचने लगा कि वो उसे कैसे जानती है और चलते हुए आगे आये रेस्टोरेंट में जा कर खाने बैठ गया।

अगले दिन वह फिर सुबह जल्दी ऑफिस पहुंचा।दिनभर ऑफिस में बैठा अपने केस की पुरानी फाइलें देखने लगा और शाम को जल्दी ही कमरे पर पहुंच तैयार हो कर निकल पड़ा उस अनजान लड़की से मिलने के लिए।

शेखर चल तो सड़क पर रहा था लेकिन उसकी निगाहें उसी लड़की को ढूंढ रही थीं।तभी उसकी नजर दूर खड़ी एक लड़की पर पड़ी तो वो समझ गया कि आज वो पहले से ही आ गई थी।वो तेज़ी से चलते हुए उसके करीब पहुँचा और बोला, “आज तो तुम पहले ही आ गई।”

“जी”, वो मुस्कुराकर कर बोली।

“तुम तो अपने दोस्तों से साथ आई थी न जबलपुर घूमने।तुम्हारे वो दोस्त कहाँ हैं ?” शेखर ने जिज्ञासा प्रकट की।

“वे, वे सब तो चले गए।”

“और तुम, तुम क्यों नहीं गईं ? क्या तुम्हें जबलपुर इतना अच्छा लगा कि यहीं रुक गई।”

“किसी का इंतजार कर रही थी।” उसने एक लम्बी साँस ली।

“तुम कहीं मेरा ही तो इंतजार नहीं कर रहीं थीं ?” शेखर हंसा।

“शायद।”

“तुमने अपना नाम नहीं बताया ? मेरा नाम शेखर है और तुम्हारा ?”

“ख़ुशी”।

सड़क पर दोनों बातें करते रहे।दोनों के शौक क्या क्या हैं, दोनों की फवरेट मूवीज़ कौनसी हैं, वगैरह ...। बातें करते करते शेखर का रेस्टोरेंट आ गया।उसने ख़ुशी को डिनर के लिए इनवाइट किया तो उसने शालीनता से मना कर दिया।शेखर रेस्टोरेंट के अंदर बैठे लोगों की भीड़ ही देख रहा और पीछे मुड़ा तो देखा ख़ुशी गायब थी।उसने इधर उधर नजर दौड़ाई पर वो कहीं नहीं थी।

शेखर आश्चर्यमिश्रित दुःख के साथ रेस्टोरेंट के अन्दर चला गया।अगले चार दिन फ़िर रात को ख़ुशी मिली तो वे ढेरों बातें करते और शेखर जान गया कि ख़ुशी को भीड़भाड़ की जगह पसंद नहीँ है। यही ध्यान रखते हुए वो सड़क पर ख़ाली जगह पर बैठने की जगह देख वहीं बैठ कर बातें करता।

एक रात शेखर बात करते करते ख़ुशी से बोल उठा, “ख़ुशी, लडकियां तो बड़ी फैशनेबल होती हैं। किसी लड़के से मिलने तो वे बड़ी सज धज के आती हैं।तुम तो रोज रोज एक ही ड्रेस में मुझसे मिलने चली आती हो? क्या जबलपुर देखने आई थी तब सूटकेस भर कर नहीं लाई थी दूसरी लड़कियों की तरह ?”, 

शेखर से यह प्रश्न सुन ख़ुशी थोड़ी सकपका गई और बोल पड़ी, “तुम भी तो रोज रोज ट्रेक सूट पहने चले आते हो मैं तो तुमसे कभी नहीं बोली तुम्हारें कपड़ो के लिए।”, ख़ुशी थोड़ा नाराज होते हुए बोली।

उसकी नाराजगी समझ शेखर इस बात तो पलटते हुए बोला , “चलो, छोड़ो कपडें वपड़े, ख़ुशी, तुम्हें तो यहाँ का वॉटरफॉल ऑसम लगा था तो क्या तुम मेरे साथ चलोगी उस ऑसम वॉटरफॉल को देखने?”, शेखर थोड़ी हिम्मत बटोर कर बोला।

“जरूर, वो ही तो दिखाना चाहती हूँ मैं तुम्हें।जितनी सबको मुग्ध करने वाली वो जगह है मेरे लिए तो वो हॉरर जगह.....। अरे ! तुम जरूर चलना मेरे साथ देखने जो मैं भी दिखाना चाहती हूँ।" , ख़ुशी उत्साह से बोली।

“कल चले।”

“डन, लेकिन दिन के अच्छे से ढलने के बाद ही।”, ख़ुशी बोली।

“तुम कैसी लड़की हो ? तुम्हें अँधेरे से डर नही लगता ?”, शेखर अपनी आँखो को केस सुलझानेवाली निगाहें कर ख़ुशी तो देखने लगा।

“तुम पुलिसवाला बन गए न? चलो, कल मिलते हैं वैसे भी मैं जहाँ ले जाना चाहती हूँ वहाँ भी एक पुलिसवाला ही चाहिए।”

“तुम्हारीं बातें तो पहेलियाँ लगती हैं।”, शेखर बोला।

“वो ही तो तुम्हें सुलझानी है।”, कहकर ख़ुशी उसे बाय कहकर फ़िर से चली गई।

शेखर सोचने लगा कि वो कौनसी पहेली सुलझाना चाहती है उससे।फ़िर बातों से दिमाग हटा वो उसी रेस्टोरेंट में खाना खाने चला गया।

दुसरे दिन तो उसने अपना सबसे अच्छा सूट निकाल कर पहन लिया क्योंकि कल ख़ुशी भी तो नोटिस करती है कि वो क्या पहन कर उससे मिलने आता है।जब अपने केस की फाइल शेखर देख रहा था तभी उसके हाथ से मोबाइल उठाने के चक्कर में वहां रखी दूसरी फाइलें गिर गई और वो झुककर उन्हें उठाने लगा।फाइलें उठाते हुए एक फाइल में उसे ख़ुशी की फ़ोटो नजर आई तो वो थोड़ा आश्चर्यचकित हो उठा और अपनी फ़ाइल बंद कर वो उस फ़ाइल को लेकर कुर्सी पर बैठ गया।

फ़ाइल में स्वर्गीय ख़ुशी सक्सेना पढ़ते ही चौक उठा और डिटेल में सब पढने लगा।आज से करीब दो साल पहले सात जने जबलपुर घूमने आये थे।एक ही कॉलेज के स्टूडेंट्स में दो लड़कियां और पांच लड़के थे।उनके यहाँ आने के बाद अचानक तीसरे दिन एक लड़की की वॉटरफॉल में गिर कर मौत हो गई थी।

अमीर परिवार की उस लड़की की मौत की खूब खोजबीन हुई और बाकि उसके छओं दोस्तों से डरा धमकाकर पूछा गया लेकिन कोई खास परिणाम नहीँ मिलें।फ़िर अमीर परिवार की उस लड़की के दोस्त भी सब अमीर परिवारों से थे तो साल भर में कड़ी जाँचपड़ताल के बाद परिणाम यह दे दिया गया कि सातों मस्ती में वॉटरफॉल को एन्जॉय कर रहे थे और अचानक ख़ुशी का बैलेंस बिगड़ गया और वो पहाड़ी से निचे गिर गई।

शेखर सोचने लगा कि ख़ुशी याने कि .... और यहाँ आते ही उससे ही क्यूँ मिली? वो कौन सी पहेली है जो वो सुलझवाना चाहती है उससे।अपनी फाइल और वो फाइल दोनों को रख वो केबिन से बाहर आ गया और शाम का इंतजार करने लगा जब उसे ख़ुशी से मिलना था।

सूरज आज तो ढल ही नहीँ रहा था शेखर के लिए और वो अपनी बैचेनी बर्दाश्त नहीं कर पाया और सड़क पर उसी जगह आकर बैठ गया जहाँ बैठ वे बातें करते थे।

शाम हो गई और अब तो रात के दस बज गए शेखर ने जब घड़ी देखी तो।वो उठकर घर लौटने के लिए खड़ा हो गया और चलने लगा कि उसे फिर आवाज़ सुनाई दी, “रुकिए।”

शेखर पीछे मुड़कर देखा तो थोड़ी दूरी पर खून से लथपथ ख़ुशी खड़ी थी । आज भी उसी ड्रेस में थी जिसे पहने हुए वो रोज मिलती थी लेकिन खून से सनी आज डरावनी लग थी।

“तुम जान गए शेखर ?”, वो उदास होकर शेखर से बोली।

“ख़ुशी, ओह! तुमसे मिलकर पहली बार मेरा दिल धड़का था।”, कहते हुए शेखर की जिन्दगी में पहली बार आँखें भर आई।

“सॉरी शेखर, मैं तुम्हारा दिल नहीं दुखाना चाहती थी लेकिन देखों मुझे ..... । तुम मेरा यह डरावना फेस देख कर डर रहे होंगे ? ”, कहते हुए ख़ुशी भी रो उठी।

“ख़ुशी, चिंता मत करो मेरे डर की। मैंने तो ........। खैर, मेरे लिए तो तुम आज भी असाधारण लग रही हो। अब जो पहेली तुम सुलझवाना चाहती थी वो पहेली बतलाओ”, शेखर अपनी भावनाओं को कन्ट्रोल करते हुए बोला।

“शेखर, हम सातों जने भोपाल से आये थे ग्रुप में यहाँ।मेरे ग्रुप में मेरे दोस्तों विनय, रोहित, जय, विनीत और राहुल थे।”, ख़ुशी बोली।

“एक लड़की भी थी ”, शेखर उसे देखने लगा।

“मत देखों मुझे ऐसे शेखर।अभी दर्द नहीं है इस शरीर में लेकिन तब था और बहुत था और उससे ज्यादा तब हुआ जब मेरी बचपन की सहेली शिखा ने ही मुझे राहुल के प्यार में मुझे बेड़ाघाट के उस सुनी जगह ले जाकर उन पाँचों बीच उसका ध्यान भटका कर मुझे धक्का दे दिया। राहुल मुझे चाहता था और वो राहुल को और मैं ...।”

“क्या तुम भी राहुल को चाहती थी ?”, कहते हुए शेखर उसे देखने लगा।

“पता नहीं लेकिन शायद तुम्हें ......”, कहते हुए ख़ुशी खामोश हो गई।

“शेखर, शिखा एक बार भी मुझसे कह देती तो मैं उन दोनों की ही जिन्दगी से दूर चली जाती लेकिन उसने तो मेरी ही जिन्दगी छीन ली।मैं उसे माफ़ नहीं कर पा रही हूँ।उसे तो सजा मिलनी ही चाहिए।तुम क्या कहते हो शेखर ?”, कहती हुई ख़ुशी शेखर को देखने लगी।

“अब मैं चलता हूँ ख़ुशी और तुम्हारीं उस सहेली को उसके किये की सजा दिलवाकर तुमसे मिलने आऊंगा।”, कहकर शेखर चलने लगा तो उसे फिर आवाज़ आई पीछे से, “शेखर, ओह! शेखर तब मैं तुम्हें नहीं मिलूंगी।अपना ध्यान रखना।एक बात और कहना चाहती हूँ। कहूँ क्या ?”

“नहीँ, मैं जानता हूँ कि तुम मुझें केस के लिए क्लू देना चाहती हो लेकिन मैं अभी तुम्हारें हाथ में वो फटा चुन्नी का टुकड़ा देख सब समझ गया।अब मैं चाहता हूँ।”, कहकर शेखर चलने के लिए तैयार हुआ 

तभी ख़ुशी बोली, “तुम असली सीबीआई ऑफिसर हो इसलियें ही सिर्फ़ तुम्हें मिली वर्ना ....” कहते हुए ख़ुशी शेखर को देख मुड़कर चली गई।

उसे जाता देख शेखर लम्बी सांस खीच अपने मोबाइल से अपने ऑफिसर को फ़ोन किया और बोला, “सर, मैं दो साल पहले यहाँ हुई एक लड़की की मौत के केस को फ़िर से खोलना चाहता हूँ।प्लीज़ ...”, कह कर शेखर ख़ुशी की बीती यादों को याद करते हुए सड़क पर तेजी से चलने लगा।


 




 




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