Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Pratibha Joshi

Inspirational

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Pratibha Joshi

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ऐसे भी हम

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“बिट्टू, बिट्टू बेटा एक मिक्सी दिखा दे”, शांता अपने पड़ोस में रहनेवाले विशाल की इलेक्ट्रॉनिक सामानों की दुकान पर मिक्सी लेने सुबह सुबह ही पहुँच गई

“ओह! आंटी आप क्यों आईं ? अंकल या नरेन्द्र को भेज देतीं। आप अंदर घर में मम्मी से मिल आओ तब तक मैं आप के लायक अच्छी मिक्सी लाता हूँ नीचे गोदाम से। वैसे आंटी, आज कल तो मिक्सी से बेहतर और भी विकल्प आ गए हैं। आप कहें तो वो दिखा दूँ ?” विशाल ने घर के बेसमेंट में बने गोदाम में जाने से पहले शांता की तरफ देखा।

“तू बाकी सब रहने दे, मुझे तो मिक्सी ही दिखा दे। इस लॉक डाउन में इतने दिनों बाद दुकानें खुली हैं तो मुझे और भी सामान खरीदने हैं। विशाल के बिजनेस पर भी तो इसका इफ़ेक्ट हुआ है। और एक बात सुन, तूने मास्क नही लगाया ?” शांता घर के भीतर जाने से पहले विशाल को देखने लगी।

“वो आंटी, सुबह सुबह दुकान अभी खोली ही थी। मेरा मास्क वहाँ टेबल पर रखा है।” विशाल रुक गया और लौट कर टेबल से मास्क उठाकर पहन लिया।

शांता दुकान में लगे नयी नयी डिजाईन के इलेक्ट्रॉनिक सामानों की तस्वीरें देखने लगी और विशाल से बोली, “अरे! बिट्टू इतनी नई नई डिजाईन के सामान भी आने लगे हैं ?”

“आंटी, इनमें से बहुत से तो चाइनीज सामान हैं और वो तो मैं रखता ही नहीँ।” कहते हुए विशाल भी उन तस्वीरों में लगे इलेक्ट्रान सामान देखने लगा।

“तू भी न बिट्टू, कमाना जनता ही नहीँ, अभी तेरी मम्मी से कहती हूँ तेरे बारे में।” उलाहना देती हुई शांता दुकान के गेट से अंदर घर में चली गई।

गोदाम से मिक्सियाँ लाकर विशाल ने शांता को आवाज लगाई तो दोनों सहेलियां चहरे पर सूती कपड़ा ठीक करते हुए आईं।

विशाल ने सभी मिक्सियों को दाम सहित उन्हें दिखाया लेकिन शांता उन्हें देखकर बोली, “इससे थोड़ी सस्ती मिल जाएगी ?”

“सस्ती फिर ‘मेड इन चायना’ आती है लेकिन मैं वो नहीं रखता।”

शांता दिमाग पर जोर डाल कुछ सोच ही रही थी कि पड़ोस में ऑटो आकर रुका और गली में एक छोटा बच्चा ज़ोर से चिल्लाया, “मौसी आ गई।”

उसकी आवाज़ से शांत गली में चहल पहल शुरू हो गई और सभी अपने अपने घरों - दुकानों को खुला छोड़ मौसी के ऑटो के पास आ कर खड़े हो गए।

विशाल ने ऑटो में से मौसी की बड़ी लकिन हल्की पेटी निकली और शांता एवं मुहल्ले की दूसरी महिलाओं ने उनके हाथ पकड़ने के लिए अपने हाथ बढ़ा दिए।

सभी उनके साथ खड़े हो गए और युवक, बच्चे - बच्चियां बहुत सी चारपाई ले आए और उन्हें एक पर बिठाया। बाकी सब चारपाई की जगह नीचे सड़क पर ही बैठ गए उनकी चारपाई घेर कर।

एक बच्चा बोला, “दादीजी, मैंने आप के जाने के दूसरे दिन ही सुबह पांच बजे उठकर अखबारवाले अंकल को याद दिला दिया था कि आप के आने के बाद ही अख़बार डालना है। आज मैंने संभाल कर रख रखा है। अभी लाता हूँ।” वो दौड़कर घर गया अख़बार लेने।

“मौसी, मैं कमला बाई जी से बंद घर के आंगन में झाड़ू पोछा करवाती थी रोज लेकिन ये पिंटू पौधों में पानी डाल कर सारा आँगन ख़राब कर देता था मौसी।” छुटकी के बोलते ही पिंटू ने झट से बात काटी, “मौसी, आपकी बाईजी पोछा ही इतना खराब लगाती थी कि निशान दिखते थे उसमें।”

उनकी झिकझिक सुन शांता डांटते हुए बोली, “चुप करो तुम दोनों। जाओ पानी लाओ और चाय बना लो।” शांता उन्हें काम पर लगा शहीद की मौसी की तरफ़ देख बोलना ही चाह रही थी कि उससे बोला ही नहीं गया और उसका गला रुंध गया।

सड़क पर मौसी के कदमों के पास बैठा विशाल मौसी के पैर दबाते हुए बोला, “मौसी ....” और वो भी बोल नहीं पाया और मौसी के घुटनों पर अपना सर रख सुबक पड़ा।

उसके रोते ही सभी की आँखें भर आईं और मौसी बोली, “मैं रोना नहीं चाहती हूँ लेकिन वहाँ शहीद का घर था तो आँखों ने आसूं ही नहीं दिए। आज शहीद के लिए नहीं अपने बेटे को खोने के दुःख में जी भर कर रो लेने दो।” मौसी जोर से रो उठी तो सभी महिलाएं उनके पास आकर सांत्वना देने लगीं। पुरुषों ने मौसाजी का हाथ थामा।

इधर उधर की बातों ने दुःख को थोडा भुलाया तब तक छोटे बच्चे अपने हाथों में पानी का जग, चाय का थर्मस और कुछ कप ले आये।

“दादीजी, चाय मैंने बनाई है”, छुटकी ने कहा तो दूसरी बोली, “मैंने चाय पत्ती और चीनी डाली थी।” तभी एक बच्चा बोला, “अरे ! दूध तो मैंने ही डाला था। तुम से तो चाय बनती ही नहीं।

उनकी बातें सुन सब के चहरों पर हल्की मुस्कान तैर गई।

“बेटा, अभी मन नहीं है लेकिन तुम सब इतनी मेहनत से, प्यार से चाय बनाकर लाये हो तो दे दो।” मौसी ने कहा तो बच्चों ने कप में चाय डाल मौसी मौसाजी के हाथों में पकड़ा दी।

कुछ युवा महिलाएं मौसी से घर की चाभी लेकर कई दिनों से बंद घर को व्यवस्थित कर आईं और विशाल उनकी पेटी घर में रख आया। मौसी और मौसाजी अब धीमे धीमे चारपाई से उठे और घर में चले गए और बाकी सब भी चहरों पर उदासी लिए बोझिल कदमों से अपने घरों और दुकानों में लौटने लगे।

अब विशाल की दुकान पर आ कर शांता बोली, “बिट्टू बेटा, अभी तो मैं घर जा रही हूँ लेकिन तू तो मुझे ‘मेड इन इंडिया’ वाली ही मिक्सी देना। अब मैं हमेशा अपने देश का बना सामान ही खरीदूंगी सस्ता हो या मंहगा। देख, कितनी ही माँओं ने अपने बेटे दे दिए देश के लिए, हमारे लिए और मैं चार पैसे कम या ज्यादा गिन रही हूँ। तू मिक्सी घर पर ही दे जाना। अभी मेरा दिल बहुत भारी हो गया है। बिट्टू, तू इसके रूपये अब तेरे अंकल से ही ले लेना। मैं जो रुपये लाई थी वो तो मेरी बचत के हैं तो इन्हें फिर से जमा कर लूंगी। देख, तेरे अंकल यहीं आ रहे हैं तो उनसे रुपये लेना तेरा काम। अरे! जिनके दम पर हम अपने देश में महफूज हैं और आजादी मना रहे उन भारत के सैनकों को, उनके परिवारों को मेरा सलाम। माफ़ करना बेटा मेरे जैसे नासमझ लोगों से देश का कितना नुकसान हो जाता हैं। आज़ादी पढ़ेगा तभी तो बढेगा इंडिया” बोलते बोलते शांताजी की आँखें नम हो गई। 



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