Pratibha Joshi

Drama

3.6  

Pratibha Joshi

Drama

आम का पेड़

आम का पेड़

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“अरे उर्मिला, देखो तुम भी बाहर आंगन में ही आ जाओ और ये गेट बंद कर लो। देखो अभी स्कूल में लंच होने वाला है तो वो शैतान बच्चे तुम्हारी इन छोटी छोटी कैरियों के चक्कर में पत्थर मार मार कर घर की खिड़कियों के कांच ज़रूर तोड़ देंगे।” यशवंतजी अपनी कार को गेट से बाहर निकालते हुए बोले।

“आप वहीं खड़े रहना मेरे आने तक वर्ना वो बाहर बैठी काली गाय अंदर आ के मेरे सारे गमले तोड़ देगी। इन बच्चों की तो मैं स्कूल जाकर शिकायत करती हूँ आज, पीछे ही पड़ गए हैं मेरे आम के पेड़ के। अरे, मैं तो नेट से तरह तरह की वैरायटी देख रही हूँ आम और कैरी से बननेवाले सामानों की और इन बच्चों ने तो मेरी नाक में दम कर रखा है।” बड़बड़ाते हुए उर्मिला बाहर आँगन में आई।

उर्मिला को आँगन में आया देख यशवंत जी ने कार स्टार्ट की और एक नजर मेरी ओर देख मुस्कुराते हुए चले गए। इधर उर्मिला आँगन के गेट को बंद कर कैरियों की चिंता में मग्न हो गयी।

ओह ! ये बात तो फ़रवरी महीने की है, मैं बौर से खिल उठा था। मुझे याद आ गया शैतान बच्चों का कैरियों के चक्कर में मुझ पर पत्थर फेंकना और उन्हें डांटने को उर्मिला का दौड़ कर बाहर आना।

ये पति पत्नी कभी यह नहीं समझ सके कि मैं भी देखता हूँ, सोचता हूँ। अरे मैं तो उनका लगाया छोटा सा आम का पेड़ ही तो हूँ और उनके बच्चों के साथ ही तो बड़ा हुआ हूँ लेकिन उन्हें मेरे आम चाहिए शायद, मैं नहीं।

उन्हें क्या पता मेरी भी दुनिया है। मेरे आम मैं तो नहीं खाता लेकिन उनको खाते देख कितनी ख़ुशी होती है मुझे। मेरी छाया में बैठते पथिक, गायें और इन पक्षियों के घौसलें तो मेरा दिल है। मुझे तो वो स्कूल के बच्चे भी अच्छे लगते हैं जो कैरियों को तौड़ने के लिए मुझे पत्थर मारते हैं। बेचारी उर्मिला आती तो थी मुझे बचाने लेकिन बचाना तो कैरी चाहती थी मुझे नहीं।

उस दिन काली गाय को आता देख मैं खुश हो गया और उसके नज़दीक आते ही बोल पड़ा, “काली, आज तू इतना लेट कैसे हो गई। मैं तो सुबह से तेरा इंतजार करने लगता हूँ, कितनी बातें करनी होती हैं तुझ से। तुझे मालूम ही है कि ये सामने वाले स्कूल के बच्चे मेरी छोटी छोटी कैरियों को छेड़ेंगे। इनकी नासमझी से कितनी ही बौर भी झड़ जाते है। बौर से ही कैरियां बनेंगी और मीठे मीठे आम भी, पर कौन समझाए। चल अब बैठ जा यहाँ। अभी स्कूल की घंटी बोलेगी तो ये सब यहीं आयेंगे।” मैंने काली गाय से कहकर मन हल्का कर लिया और मंद हवा में झोंके खाने लगा।

काली गाय मुस्कुराती हुई बोली, “देवल, तुझे तो खड़ा ही रहना होता है लेकिन मैं...,जाने दे नहीं बताऊंगी। तेरी वो मालकिन कहाँ गई। उर्मिला बुलाते हैं न सब उसे। अभी उन बच्चों के आते ही वो भी आ जाएगी यहाँ ये छोटी छोटी कैरियां बचाने। मुझे तो उन बच्चों को अपने सींग दिखाकर डराने की जरुरत ही नहीं पड़ेगी, वो तो अपनी डांट से ही सब को भगा देगी।”

“तू बैठ जा, तुझे बहुत सी बातें बतानी हैं। अरे वो गौरैया रानी है न जो सुबह से ही चीं चूं शुरू कर देती, उसने चार अंडे दिए हैं। मैं और मैना कितना सोच रहे थे कि अब होंगे...अब होंगे...और हो भी गए।”

“अच्छा, उसने मुझे तो नहीं बताया। तू चिंता मत कर अण्डों की, दोनों चिड़ा चिड़ी बहुत मेहनती हैं”, काली बोली।

इतने में ही दूर से रानी आती नजर आई, और फुर्र से आकर डाल पर बैठ गई |

“देवल, देख काली आ गई न तेरे पास। अभी तो ठंड गई नहीं है। ये इन्सान क्या कहते हैं हाँ मार्च का महिना। तू देवल, चिंता मत कर। इन बच्चों की भी गर्मी की छुट्टी होने वाली है।” रानी अपने अन्डों पर बैठ कर बोली।

मेरा पूरा दिन इन साथियों के संग बीत जाता है और शाम को मुझ पर बने घोसलों में जब मेरे पक्षी लौट आते हैं तब मैं चैन की नींद ले सकता हूँ।

उस दिन तेईस मार्च का दिन था और मैं सुबह से सड़क का सूनापन देख थोड़ा चिंतित हो उठा। 

मैं रानी से बोला “अरे ! आज कोई बच्चे नहीं नजर आ रहे।” रानी के अण्डों से बच्चे निकल आये थे और उड़ना सीख रहे थे।

“देवल, तुम नहीं जानते इन इंसानों को। इन्होंने हमारी इस दुनिया को खराब कर दिया है। ‘कोरोना’ नाम की बीमारी फैलाई है और लोग मर रहे हैं जगह जगह। लॉक डाउन और क्वारंटाइन, कुछ ऐसे शब्द बोले जा रहे हैं चारो ओर। स्कूल के बच्चे अभी तो नहीं आयेंगे तुझे परेशान करने। अब तो तेरी ये कैरियां आम बन जाएँगी पेड़ पर ही।” रानी के स्वर में उदासी थी और वो स्कूल के बंद दरवाज़े को देखने लगी।

कुछ दिन ही तो बीते लेकिन मुझे ये दिन एक एक सदियों जैसे लग रहे हैं। मैं यहाँ खड़ा दूर दूर देखता हूँ तो सिर्फ ये सूनी सड़क नजर आती है मुझे। मैंने बिना इंसानों के भी दिन बिताना सीख लिया है। कई दिन बाद आज एक अनजान राहगीर थोड़ी देर मेरे नीचे सुस्ताया और चला गया।

आज रात तेज हवाएँ चल रही थीं कि मुझे लगा कोई आ रहा है सड़क पर।

“कौन हो ?”, मैं बोला।

“मैं कोरोना हूँ और मैं तेरे इस घर में आऊंगा।” उसकी आवाज़ में अकड़ थी।

“तू? तेरे बलवान होने के बहुत से किस्से सुने हैं।” मैं झिड़क कर बोला तो कुछ पत्ते भी हिल उठे और दो चार कैरियां भी नीचे गिर पड़ीं |

“हाँ, मैं ही हूँ जिसने इस दुनिया को हिला दिया है।” उसका घमंड साफ़ झलक रहा था।

“क्या तू पशु पक्षियों को भी अपनी बीमारी से लपेट लेता है ?” मैंने उसकी नब्ज टटोली।

“क्या तुम भी डर गए मुझसे ? लेकिन मैं तो घर के लोगों के लिए आया हूँ।”, कोरोना बोला।

“कोरोना ! हिम्मत है तो मुझे बीमार करके बताओ”, मैं कुछ सोच घर को देखकर बोला उठा।

कोरोना गुस्से से आम के पेड़ को छू के हँसने लगा।

तभी मैं हवाओं से बोला उठा “ ऐ, हवाओं मेरी तुम आज सहायता करो। मैं तो तुम्हारा ऋणी हूँ। तुमने मुझे, मेरे आमों और मुझ पर बने इन पक्षियों के घोसलों को बचाने में हमेशा मेरी सहायता की है। आज भी...”, कहते हुए मेरा गला भर आया।

तभी तेज तेज हवाएँ चलने लगी और मैं ने अपने पर बने घोंसलों से सोये पक्षियों को जगाया और भगाया। अब मैंने आज हिम्मत कर खुद का ही साथ छोड़ जमीन से अपनी जड़ें हिला दी।

“आह ! बड़ा दर्द हुआ। लेकिन मैं आखिर गिर ही गया अपनी उन कैरियों, पत्तों और कोरोना को लिए।”

आज सुबह यशवन्तजी जैसे ही घर से बाहर निकले सड़क पर आम के पेड़ को गिरा देख सिसक पड़े और उन्होंने पेड़ उठाने के लिए सरकारी वन विभाग को फ़ोन कर दिया। अब अपनी पत्नी से बोले, “उर्मिला, अभी अचानक इतना हरा भरा फलों से लदा पेड़ गिर पड़ा। खबरदार, कुछ भी इस पेड़ का सामान सड़क के उठाकर घर में लाई। कोरोना फैला हुआ है चारों ओर।” 

वन विभाग से मास्क लगाये कर्मचारी आये और आम के पेड़ को काट कर ट्रक में डाला। 

यशवंतजी के अड़ोसी पड़ोसी अपने घर की खिड़कियों से ट्रक में पड़े कटे आम के पेड़ की डालियों को देखने लगी। उनके घरों में अचानक हरे भरे आम के पेड़ का इस तहर जमीन से उखड़ जाना चर्चा का विषय बन गया। और यहाँ ट्रक में कटे आम के पेड़ को देख दूर खड़ी काली गाय रो पड़ी और छतों पर बैठ यह सब देख रहे पक्षिओं का झुंड भी।



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