Pratibha Joshi

Children Stories

4  

Pratibha Joshi

Children Stories

अनोखी दुविधा

अनोखी दुविधा

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"शांता, मैं जा रहा हूँ थोडा सा टहलने, देखो, घर के सामान लाने की पर्ची ले ली है मैंने । घर का दरवाजा बंद कर लेना”, कहते हुए जगदीशजी पर्ची को अपने पर्स में रख घर से निकले ही थे कि पीछे पीछे शांता अपने हाथ में मास्क और थैला लिए तेजी से चलते हुए बाहर आई।

“सुनो जी, ये भी ले जाओ और ध्यान रखना अपना । आप तो मास्क लगाना भूल ही जाते हो ?” शिकायती अंदाज में शांता ने मास्क और थैला उन्हें पकड़ाया। 

सुबह सुबह जगदीशजी अपने घर के बाहर सड़क पर मास्क पहन कर हाथ में थैला लिए सामान लेने निकले कि इस तरह समान भी खरीद लाएंगे और टहलना भी हो जायेगा । वे टहलते हुए सूनी सूनी सड़क देख सोच रहे थे कि पहले तो सुबह सुबह सड़क लोगों से भरी रहती थी लेकिन आज ? इस कोरोना ने तो सामाजिक दूरियां दिलों में भी कर दीं नहीँ तो लोग हल्की सी जान पहचान में भी खुल के बात करने लगते थे लेकिन अब तो शायद जान पहचान वाला दूर से देखकर दूर से ही निकल जायेगा । बेटों की नौकरियां दूसरे शहरों में हैं इसलिए यहीं इन्हीं लोगों में वे अपने ढूँढ कर समय बिता लेते थे, लेकिन अब ?

हालांकि उनकी पत्नी आजकल उन्हें बाहर कम ही जाने देती हैं और कहती हैं कि घर में ही टहल लो लेकिन एक तो शुगर के कारण उनका टहलना जरूरी था, ऊपर से घर के लिए दूध और दूसरे सामान भी तो उन्हें ही लाने होते हैं । जगदीशजी दुकानदार को पर्ची और थैला पकड़ा कर बोले कि बगीचे से टहलने के बाद वे लौटते समय थैला ले लेंगे ।

वो बगीचे में टहलने लगे और जैसे सड़क देखकर उनका मन उदास हो गया था वैसे ही सूना सूना बगीचा देख वे आह भरने लगे । बगीचे में टहलने के बाद जैसे ही वे सीढियों से उतर के सड़क पर आये कि अंतिम सीढ़ी पर उनका पैर फ़िसल गया और वे धड़ाम से सड़क पर गिर पड़े । उनके गिरते ही वहां से जा रहे एक दो राहगीरों ने कोरोना के डर से मुँह फेरा और इस तरह निकल गए जैसे कुछ हुआ ही न हो ।

रोहन साइकिलिंग करते हुए बगीचे के सामने गिरे हुए बुजुर्ग को देखकर साइकिल से उनके पास जाकर खड़ा हो गया और उन्हें देखने लगा । उसे याद आया घर पर मम्मी ने उसे घर से बाहर जाने की इजाजत सिर्फ़ इसलिये दी थी कि वो घर से निकल कर साइकिलिंग करते हुए बिना किसी से बात करे, किसी भी चीज को छुए बिना सीधा वापस घर लौट आएगा । लेकिन उन्हें दर्द में कहराते देख उसने उन्हें झट से लपककर खड़ा कर दिया । जगदीशजी रोहन को धन्यवाद बोले पर रोहन ने तो सुना ही नहीं । वो तो उनके कपड़ों पर लगी धूल को अपने हाथों से झाड़ने में लगा हुआ था ।

जगदीशजी ने उसके साथ चलते हुए बताया कि वे कहाँ रहते हैं और अभी तो दुकान से सामान भी लेना है । रोहन पायजामे में घुटनों की जगह आये खून को देख समझ गया कि उनके चोट ज्यादा लगी है । उसने ही कहा कि दादाजी मैं आपको दुकान से सामान लेते हुए आपके घर पहुंचा कर ही जाऊंगा । दोनों बातें करते हुए दुकान पर पहुंचे जहाँ जगदीशजी से पैसे लेकर दुकानदार को देकर रोहन सामान से भरा थैला ले आया । जगदीशजी उसके साथ चलते चलते उसे समझाने लगे कि बेटा घर में घुसने से पहले आंगन में लगे नल पर अपने हाथ पैर धो लेना तभी घर के अंदर जाना । दोनों इधर उधर की बातें करते हुए उनके घर पहुँच गए । जगदीशजी ने थैले को आँगन में रखवाया और आशीर्वाद में अपने हाथ को ऊँचा कर रोहन को प्यार भरी निगाहों से देखने लगे ।

“दादाजी, आप जल्दी किसी बड़े के साथ हॉस्पिटल जा कर दिखा आना”, कहते हुए रोहन साइकिल मोड़कर अपने घर की और चल दिया ।


घर पहुँचते ही रोहन आंगन में साइकिल खड़ी कर वहाँ लगे नल से अपने हाथ पैर धोने लगा । हाथ धोते हुए वो सोच रहा था कि आज तो मम्मी उसे बिना कहे अपने हाथ पैर धोता देख खुश हो जाएँगी ।

“अरे रोहन ! तू तो कह रहा था कि नौ बजे से तेरी ऑनलाइन परीक्षा है और देख साढ़े आठ बज गए । कहाँ रह गया था ?” रोहन की मम्मी गेट के बजने से रोहन का आना जान दौड़ कर बाहर आई।

रोहन को आंगन में अपने हाथ पैर धोता देख आज सचमुच उसकी मम्मी खुश हो गई । रोहन ने मम्मी को अपने लेट होने के बारे में बता ही दिया । जगदीशजी को कैसे संभाला और उन्हें घर तक छोड़ आया । पूरा वाकया सुन उसकी मम्मी सोचने लगी कि इस महामारी के समय में रोहन ने जो किया वो सही था या गलत । पांच मिनट तक रोहन को साइकिल को साफ़ करते हुए देखती रही फिर मुस्कुरा दी । रोहन के पास आने पर दूर खड़ा रहने का कहते हुए खुश होकर बोली, “बेटा, सदी में आनेवाली महामारी हमारी परीक्षाएं लेने आती हैं । आज तू इस परीक्षा में पास हो गया । चल, अब जल्दी कर और नहा कर आ जा वरना स्कूल की परीक्षा में लेट हो जायेगा ।” 

“मैं उसमें भी अच्छे नंबरों से पास हो जाऊंगा”, कहते हुए रोहन अपनी मम्मी के साथ घर के अंदर चला गया ।



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