Mohan ITR Pathak

Abstract

4.1  

Mohan ITR Pathak

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अनुत्तरित प्रश्न

अनुत्तरित प्रश्न

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गली के अन्तिम छोर पर एक दीवाल के सहारे बैठी पागल सी महिला की गोद में नवजात शिशु को देखकर मन में कुछ जिज्ञासाएं उत्पन्न हुई। पहली यह कि यह नवजात शिशु किसका हो सकता है ? दूसरी यह कि यह पागल सी स्त्री इसे कहां से लेकर आयी है ? और तीसरी यह कि नवजात शिशु के साथ कुछ अनहोनी न हो जाय।  

जहां वह बैठी थी वहां कुछ अंधेरा छाने लगा था। अभी इतना भी अंधेरा नहीं छाया था कि पास जाने पर उसे पहचाना न जा सके। आगे बढ़ कर देखा, तो मैं हक्का बक्का रह गया। ये तो हीरा थी। इसे शहर के लगभग सभी लोग जानते थे। अक्सर यह पागल स्त्री शहर में घूम घूम कर अपना जीवन यापन करती थी। शाम को वह कहां जाकर सोती थी किसी ने नहीं देखा था। कुछ लोग कहते थे किले के खंडहर में जाकर सोती है । किला खंडहर था। वहां कोई भी आता जाता नहीं था। वहां अजीब सी आवाजें आती थी। लोग उस किले को भूत का किला कहते थे। इसलिए भी कोई वहां नहीं जाता था।

वह पागल थी। अक्सर बाजार में चिल्लाते हुए उसे कभी भी देखा जा सकता था। किसी दुकान से कुछ उठा लेती थी। तो कभी किसी दुकान में पत्थर मार देती थी। उसके डर से लोग दिन के समय सावधान रहते थे। कभी एकदम शांत रहती थी। उसका ऐसा व्यवहार समझ से परे था। अपनी किशोरावस्था पार कर युवा वस्था में कदम रख चुकी थी। उसके शरीर सौष्ठव से लगता था वह कोई पच्चीस की उम्र पार कर चुकी होगी । सांवले रंग की खूबसूरत नहीं तो उसे बदसूरत भी नहीं कहा जा सकता था। प्रायः मैली कुचैली ही रहती थी। इस कारण भी उसकी सुन्दरता सबसे छिपी रहती थी। अच्छा ही था ,वह अपनी स्वच्छता का ध्यान नहीं रखती थी नहीं तो इस समाज में कुछ भेड़िए उसे नोच नोच कर खा जाते। जो कुछ मिल जाता उसी से पेट भर लेती थी। कभी कोई सज्जन उसे कपड़े भी से देता तो वह उन्हें अच्छी तरह से पहन लेती थी। उसके पहनावे से लगता था कि वह एक सभ्य महिला है। आजकल की स्त्रियों की तरह आधे अधूरे कपडे नहीं पहना करती थी। अपने शरीर को एक चादर के टुकड़े से हमेशा ढके रहती थी। उसके बिखरे बाल और अपने चेहरे को कुरूप बनाए रखना उसका श्रृंगार था। उसका चेहरे पर कीचड़ या कालिख लगाए रखना इसे लगता जैसे किसी प्राकृतिक ब्यूटी पार्लर से सोलह श्रृंगार कर अभी अभी बाहर निकली हो।  

 लोगो ने ही उसे कब कैसे हीरा नाम दे दिया कहा नहीं जा सकता है। हमारे देश में नारी को सौन्दर्य की पराकाष्ठा की एक प्रतिमूर्ति के रूप में जाना जाता रहा है। वैदिक युग से लेकर आज तक नारी के सौंदर्य के सोपान गढ़ते आए हैं। कालिदास, भास और शूद्रक जायसी आदि महान विभूतियों ने नारी सौंदर्य पर पूरा का पूरा शास्त्र गढ़ा है। बहुत से चित्रकारों ने भी अपनी तूलिका से नारी सौंदर्य के चित्र कैनवास पर उकेरे हैं। खजुराहो जैसे अदभुत मंदिरों की कलाकारी कल्पना शिल्पियों के लिए नारी की सुंदरता की पराकाष्ठा को ही वर्णित करते हैं।

भारतीय साहित्य में आम्रपाली, वसंतसेना और चित्रलेखा सरीखी राज नर्तकियों के वर्णन से भारतीय साहित्य ओतप्रोत है।  

श्रृंगार रस से भरपूर संगीत और नृत्य भी सदियों से विकसित नारी के इस रूप को कृष्ण ने तो एक कदम आगे जाकर खुद मयूरपंखी मुकुट और करधनी धारण करके घोषणा कर दी कि आभूषणों की जरुरत तो पुरुष को है और सौन्दर्य के मामले में स्त्री तो परिपूर्ण है।

आज उसे इस रूप में एक बच्चे के साथ देखना आश्चर्यजनक था। हम पास गए तो देखा वह उस बच्चे को अपना स्तनपान करा रही थी। अब तो आश्चर्य की सीमा पार हो गयी। यह बच्चा उसका है तो कैसे ? क्या उसके साथ कोई अनहोनी घटना घट गयी और बच्चे की मां बन गयी। कुछ भी समझ नहीं आ रहा था सारी पहेली उलझी सी मालूम पड़ रही थी। हम सोच में पड़ गए क्या हमारा समाज चारित्रिक पतन की इस सीमा पर पहुंच गया है। यदि वह बच्चा उसका नहीं है तो फिर किसका है। कहां से लेकर आ यी है। हमने देखा बच्चा बड़े आराम से दूध पी रहा था। उसके ममत्व की देखकर नहीं लगता कि ये बच्चा उसका नहीं हो सकता है। अवश्य ही यह बच्चा उसी का था।

हमने गौर किया पिछले सात आठ माह से हीरा के व्यवहार में अन्तर दिखाई दे रहा था। उसने चिल्लाना बंद कर दिया था। वह शांत रहने लगी थी। जो मिल जाता उसी से अपना भरण पोषण करती थी। बाजार के दुकानदारों को भी कहते सुना था कि हीरा में ऐसा अकल्पनीय परिवर्तन कैसे आया। कुछ तो कह रहे थे कि उसकी मानसिक स्थिति अब ठीक होने लगी है।

वह हमें देखकर थोड़ा सकुचाई जैसे सामान्य स्त्रियां सकुचाती हैं । हमने पूछा, यह बच्चा किसका है। तो उसने बड़ी सहजता से उत्तर दिया मेरा। हम हतप्रभ रह गए । मां की ममता में इतनी अदृश्य शक्ति होती है । सच में ममत्व व्यक्ति में परिवर्तन का अनमोल साधन है। उसका जो नामकरण लोगो ने किया वह सार्थक प्रतीत होने लगा था। कहां वह चिल्लाकर आवाज लगाने वाली आज बड़ी विनम्रता से हौले से उत्तर दिया था। साथ में हमें सचेत भी किया कि चुप, बच्चा सो रहा है। यह सब ऐसे हुआ जैसे एक सामान्य व्यक्ति व्यवहार करता है। इस समय ऐसा लग रहा था कि उसकी मानसिक स्थिति सामान्य है। न तो उसमें पागलपन का कोई व्यवहार नजर आया और न ही वह हमें देख भागी थी। हम तुरंत घर की ओर गए। सोचा बच्चे के लिए कुछ कपडे तथा दूध ला कर दे दें। जब तक हम लौटकर आते हीरा वहां से जा चुकी थी। हमने अपनी नासमझी पर खुद को बहुत कोसा। कदाचित लोकलाज के कारण हम ऐसा नहीं कर पाए थे। हमें अपनी गलती पर बहुत पछतावा जो रहा था। हमें जानना था कि वह बच्चा हीरा के पास कैसे आया। हमारा समाज पतन की इतनी नीचता को कैसे सहन कर सकता है। आज हम स्त्रियों को उनके आधुनिक पहनावे को लेकर आरोप प्रत्यारोप लगाते आ रहे हैं। जो लड़कियां काम कपड़े पहनकर बाहर निकलती हैं उन्हें न जाने कितने ही नाम रखते हैं। महिलाओं के पहनावे पर टीका टिप्पणी करते हैं। दिन प्रतिदिन अखबारों में बलात्कार कि खबरें पढ़ते हैं। हो न हो पुरुष प्रधान समाज इस कुकृत्य के लिए अंततः महिलाओं को ही दोषी मानता है। क्या पुरुष की कोई नैतिक जिम्मेदारी नहीं होती है। यदि ऐसा है तो फिर हीरा के साथ को हुआ उसका दोषी कौन था। क्या उसका दोषी भी उसका पहनावा था। ऐसा विरोधाभास हमारे समाज की कौन सी मजबूरी के कारण होता है। हमें मिलकर इसका उत्तर खोजना ही होगा।


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