ईमानदारी का फल
ईमानदारी का फल
राजू और दीनू दोनों एक ही गांव में रहते थे। दोनों स्कूल में एक ही कक्षा में पढ़ते थे। दोनों विपरीत प्रवृत्ति के थे। एक पूरब तो दूसरा पश्चिम। दीनू आस्तिक और दयालु प्रवृत्ति का था। जबकि राजू नास्तिक था। दीनू के माता पिता का देहान्त हो चुका था। इसलिए वह अनाथ अपने मामा के घर में ही रहता था। उसके मामा का घर राजू के गांव में ही था। राजू अमीर था । वह अपने माता पिता का इकलौता लड़का था। उनके लिए वह अंधे की लाठी के समान था। अमीर घर में जन्म लेने के कारण वह अपने आप को भाग्यवान समझता था। दीनू बुद्धिमान तथा सत्यवादी था। स्कूल में गुरुजी उसकी खूब प्रशंसा किया करते थे। राजू अंधों में काना राजा कहकर उसकी बुराई करता था। दीनू राजू की बातों का बुरा नहीं मानता था।
राजू का स्वभाव प्रायः दूसरों की बुराई ही करना था। अपनी अमीरी के बल पर स्कूल में सबको अपनी उंगली पर नचाता फिरता था। प्रायः कुछ न कुछ गोलमाल करता ही रहता था। राजू के पिताजी उसके इस व्यवहार से खिन्न थे। उसे बार बार समझाते किन्तु उसके कानों में जूं तक नहीं रेंगती थी। दीनू को मामा के घर के छोटे मोटे काम भी करने पड़ते थे। वह किसी भी कम को करने के लिए कमर कस कर तैयार रहता था। इस कारण वह कभी स्कूल भी नहीं जा पाता था। फिर भी वह अपना काम घर में पूरा कर लेता था। एक दिन उनके घर कोई अतिथि आए थे। उनकी आवभगत करने के कारण उसकी आंख जल्दी लग गई और वह उस दिन अपना काम पूरा नहीं कर पाया। दूसरे दिन गुरुजी उस पर खूब आग बबूला हुए।
एक दिन दीनू अपने मामा को खाना देने खेत में जा रहा था तो उसे रास्ते में एक दो हजार का नोट मिला। उसने वह नोट अपने मामा जी को दे दिया। उसके मामा जी गरीब जरूर थे लेकिन ईमानदारी कूट कूट कर भरी थी। बोले, उसे अपने पास रखो जिसका होगा पता कर उसे लौटा देना। इस पर हमारा कोई अधिकार नहीं। उसने वह नोट संभालकर रख दिया।
अगले दिन वह स्कूल गया तो उसने देखा राजू आज बहुत उदास बैठा है। पूछने पर पता चला कि उसके दो हजार रु खो गए हैं। जिस कारण घर पर उसे खूब मार पड़ी। रुपए खो जाने से घर में सब दुखी हैं। दीनू ने राजू से पूछा तेरा नोट कितने रू का था। राजू ने बताया दो हजार का जिसके एक कोने में हलका सा नीला रंग लगा है। दीनू उसे अपने घर ले गया। उसे दो हजार का नोट देते हुए बोला, मित्र ये लो यह मुझे कल रास्ते में मिला था। नोट देखकर राजू बहुत खुश हो गया।
राजू नोट लेकर अपने घर गया। अपने माता पिता को नोट देते बोला ,मां पिताजी। देखो रुपए मिल गए हैं। नोट दिखाते हुए उसने सारी बात बताई तो राजू के पिताजी ने दीनू को घर बुलाने को कहा। राजू दीनू को लेकर घर आया।
राजू के पिताजी ने कहा, दीनू तुम बहुत ईमानदार बच्चे हो । गरीब होकर भी तुमने रू का लालच नहीं किया। उसे पांच सौ रू इनाम के तौर पर दिए। दीनू ने कहा, नहीं अंकल मैं रू नहीं लूंगा। राजू मेरा मित्र है। फिर यह मेरा कर्तव्य था। मैं यह इनाम कैसे ले सकता हूं।
राजू के पिताजी ने कहा, शाबाश बेटा। तुम बहुत समझदार हो। तुमने आज फर्ज की कहानी को अमर कर दिया। आज से मेरे दो बेटे हैं। तुम जितना पढ़ना कहो पढ़ो। तुम्हारी पढ़ाई का सारा खर्च अब से मैं दूंगा। इस प्रकार राजू और दीनू दोनों भाई भाई की तरह रहने लगे।
