Mohan ITR Pathak

Others

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Mohan ITR Pathak

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पिपैन(बात बात पर रोने वाला)

पिपैन(बात बात पर रोने वाला)

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पिपैन यह शब्द बचपन में उस बालक के लिए गांव के बड़े बुजुर्गो द्वारा प्रयोग किया जाता था। जब भी वह छोटा सा बच्चा छोटी छोटी बात पर आंसू बहाने लगता, लोग उसे इसी शब्द से सम्बोधित किया करते थे। यह रोने की एक विशेष कला है।इसमें बिना आवाज किए आंखों से आंसुओं की झड़ी लग जाती है। कभी कभी तो सामने वाले को पता भी नहीं चलता है कि वह रो रहा है। उसका रोना अन्य बच्चों की तरह दहाड़ मारकर रोना नहीं, बल्कि चुप चाप शर्माते हुए रोना होता था।

उसके इस तरह रोने का भी कारण था। उसे लोग छ्वर मुया (जिसके माता या पिता का उसके बाल्यकाल में ही देहांत हो गया हो) कहा करते थे। इस शब्द से उसे बड़ी चिढ़ थी। जब भी कोई उसके लिए इस शब्द का प्रयोग करता वह टुकुर टुकुर अपनी आंखों में आंसू भर लेता था।

                         

उसे याद नहीं उसकी मां कब इस संसार से विदा हो गई। उसके मुंह से इजा (मां) शब्द का उच्चारण कभी नहीं सुना गया। जब भी वह अपने सामान उम्र के बच्चों को अपनी मां से लिपटते इज कहते सुनता तो उसके चेहरे के हाव भाव से लगता था, वह यही सोच रहा है की काश। वह भी किसी को जिससे लिपटते हुए इज या मां कह सकता। इस शब्द के उच्चारण में ऐसा रस, भाव और आनन्द है,जो सारे जहां की खुशियों से बढ़कर है। इसमें इसी मिठास है जिसके सुनते ही मन प्रफुल्लित हो जाता है। इस शब्द के बोलने मात्र से ही जीवन की बड़ी से बड़ी मुसीबतें टल जाती हैं। कठिनाइयों से लड़ने की असीम ताकत आ जाती है। अपार सुखानुभूति होती है। बहुत बार मैंने उसे अकेले में आंसू बहाते देखा है। पूछने पर भी कुछ नहीं बताता था। अपनी कमीज़ की लम्बी आस्तीन से आंसू पोछ कर खेलने लग जाता था। मेरा उसके साथ सानिध्य रहा है। मैंने अनुभव किया कि उसकी यह आदत बचपन में ही नहीं बल्कि बड़े होने पर भी उसके व्यवहार में झलकती है।                               

उसके इस व्यवहार का कारण कुछ कुछ अब मेरी समझ में आने लगा था। वह अपनी भावनाओं को कभी भी दूसरों के सामने प्रकट नहीं होने देता था। उसका स्वभाव अपने कारण दूसरों को कष्ट देना नहीं बल्कि स्वयं कष्ट सहन करने का था। प्रायः वह देखता उसके सामान उम्र के बच्चे अपनी मां को देखते ही दूर से ईजा कह कर पुकारते, दौड़ कर पास जाते और मां के गले लग जाते तो उन बच्चों की मांए उन्हें अपने हाथों से पलास ती, पुचकारती, उनके माथे पर स्पर्श करती, उनके बाल संवारती और प्यार के शब्द जैसे पोथी,लाटा आदि कहकर अपने प्यार वात्सल्य से उन्हें इंद्रधनुषी रंग में रंग देती थी। तब वह शायद यही सोचता होगा कोई मां आकर उसके सिर पर इसी प्रकार हाथ फेरकर अपना वात्सल्य उस पर उड़ेल देती। कई बार मैंने बच्चों को आपस में लड़ते झगड़ते देखा है। उनमें से अधिकांश बच्चे रोते रोते अपनी अपनी मां ओंं से शिकायत करते तो उनकी मां ए उन्हें कुछ न कुछ खाने की वस्तुएं देकर चुप करा देती थी।तब भी वह टुकुर टुकुर कर देखे रह जाता था। उसके मन में चल रहे उस भूचाल को समझना संभव नहीं था।  

              

बच्चे कितने सहनशील होते हैं।यह उस बच्चे को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है । जहां हम एक छोटी सी इच्छा पूर्ण न होने पर विचलित हो जाते हैं,असामान्य व्यवहार करने लगते हैं। यहां तक कि कभी कभी जीवन ही समाप्त करने का निश्चय का लेते हैं। वहीं मैंने देखा उस बच्चे में कितना साहस और हिम्मत है।अपनी भावनाओं को दबाकर भी अन्य बच्चों संग घुला मिला रहता था। वह उस क्षण अपने आपको उपेक्षित समझता जब सबकी माताएं अपने अपने बच्चे की जिद में उठाकर उसपर प्यार की वर्षा करती। कभी कभी ती उन बच्चों की माताओं द्वारा उसे भगा दिया जाता। ऐसा शायद वे स्त्री सुलभ आशंका के कारण करती होंगी।उस वक्त उसका कलेजा मुंह को आता होगा।           

जिस जिह्वा से कभी मां का उच्चारण न हुआ हो, उसकी जिहवा को कटु समझा जाता है। उस जिह्वा से निकले बोल मीठे होने पर भी दुनिया को कड़वे ही लगते हैं। मानव की यह सोच उसे मनुष्यता से नीचे गिरा देती है। हे! विधाता तेरा यह कैसा विधान उसे मां कहने का भी अवसर प्रदान नहीं किया। जब तक उसने बोलना सीखा किसी ने उसे मां कहना ही नहीं सिखाया। क्योंकि उसकी मां का स्वर्गवास हो चुका था। अब उसे इस शब्द का उच्चारण करना कैसे सिखाया जाता।            

मां शब्द इस सृष्टि का ऐसा शब्द है जिसका उच्चारण करना सीखते ही शेष सारे शब्दों का उच्चारण सहज हो जाता है। इसमें वेदों, उपनिषदों, पुराणों, तथा सभी धार्मिक ग्रंथों का सार समाया हुआ है।इस अलौकिक शब्द के बोलने से ही मनुष्य के ज्ञान चक्षु खुल जाते हैं। ऐसे अनमोल रत्न से किसी को दूर रखना शायद किसी न्यायशास्त्र में अंकित नहीं होगा। यह देखने में जितना छोटा है, वह उतना ही वृहत् और विस्तृत है कि सारा ब्रह्माण्ड उसमें समा सकता है। जिसने इसके महत्त्व को जाना, समझा उसे कभी जीवन में कष्ट का सामना नहीं करना पड़ता है।                                           

छोटी छोटी बातों को लेकर गुम सुम रहना उसकी आदत थी। लोगों के लिए यह भले ही हास्य का विषय हो किन्तु मेरे लिए यह गम्भीर और चिंतनीय है। उसकी संवेदनाएं, भावनाएं,इच्छाएं क्या कोई मूल्य नहीं रखती हैं। उसके प्रति किसी प्रकार की सहानुभूति आखिर क्यों नहीं प्रकट होती है। पिपैन कह कर उसे उपेक्षित नजर से क्यों देखा जाता है, जबकि उसे गहन अपनत्व की जरूरत है। शायद जी समाज के इस वर्ताव के अनुकूल अपने आप को नहीं दहल पाते हैं भविष्य में गलत रास्ते पर चल पड़ते होंगे। हमारा दृष्टिकोण बदल जाए तो कितने ही लोग अपराध के दंगल में जाने से बच जाते।


                      उम्र बढ़ने के साथ साथ उसका रोना कम हो गया था। शायद अब वह समझदार ही गया हो। या अपनी भावनाओं को आंसुओं में बहाना उसे अब उचित नहीं लगता हो। अब वह अपनी भावनाओं को अन्दर ही अन्दर दफन करना चाहता हो। लोगों को उसके साथ झूठी सहानुभूति प्रकट करते देखा है। आवश्यकता पड़ने पर शायद ही कोई हो जिसने उसकी मदद की हो। ऐसा लगता है भगवान ने भी उसे आंसू देने में कोई कंजूसी नहीं दिखाई। हां, एक वरदान असीम मानसिक शक्ति का उसे अवश्य दिया। चाहे कैसा भी तूफान उसकी जिन्दगी में आया वाह उसमें से बचकर ही निकला । जितनी हिम्मत, जितना साहस उसे दिया है भगवान से प्रार्थना करता हूं उसकी यह हिम्मत हमेशा हमेशा बनी रहे। चाहे सुख सुविधा न दे। सुख सुविधा क्षणिक होती हैं।उनके होने पर मनुष्य विपत्तियों का सामना नहीं कर पाता है। परन्तु हिम्मत के रहते सुख सुविधा जुटा लेता है।           

मैंने उसे कभी किसी मन्दिर में गिड़गिड़ाते नहीं देखा।उसकी दृष्टि में किसी के सामने क्या भगवान के सामने किसी वस्तु के लिए गिड़गिड़ाना पुरुषार्थ की कमी को दर्शाता है। वह ईश्वर की शक्ति और महिमा को मानता है। उसे एकान्त में ईश्वर का उसके द्वारा दी गई हिम्मत का शुक्रिया अदा करने के लिए स्मरण करते देखा है। कार्य की ही पूजा समझता है, तभी तो प्रत्येक कार्य लगन से करता है। चाहे उसे उसमें सफलता मिले या नहीं उसकी चिन्ता नहीं करता है। उसका मत है कि ईश्वर सर्वज्ञ है। उसे पता है कब किस क्या चाहिए। वह अपनी संतान की निराश नहीं करता है। उसकी परीक्षा अवश्य लेता है। वह स्वतः ही उसकी झोली में वह वस्तु दल देता है जिसकी उसे परम आवश्यकता है।                         

जिन्दगी में विपत्तियों का सामना करने की उसे आदत पड़ गई है। बड़ी से बड़ी मुसीबत से भी नहीं घबराता है। जिन्दगी में जी कुछ प्राप्त होता है, वह सब हमारे कर्मों का ही फल होता है। हर चीज का अपना समय निर्धारित होता है। वह इतना भावुक है की उसे आज भी आंसू बहाते देखा जा सकता है। वह जितना अपने अतीत के पन्नों को खोलता है उतना ही उदास हो जाता है। उसका बचपन न जाने किसने चुरा लिया।एक घटना ने उसके जीवन की राह ही बदल कर रख दी। वह मां शब्द की महत्ता को अब समझने लगता है।कभी कभी उस उं लोगों पर क्रोध प्रकट करते देखा है जी अपनी मां के साथ उचित व्यवहार नहीं करते हैं।व्यस्तता उसके लिए सबसे बड़ा सुख है।       

 स्वाभिमान उसमें कूट कूट कर भरा है । बड़ी से बड़ी मुसीबत में भी अपना मन विचलित नहीं होने देता। बचपन से लेकर पचास वर्ष की उम्र तक न जाने कितनी ही मुसीबतों को पर करता हुआ समय के साथ टक्कर लेता हुआ दिखाई देता है। स्वयं ही कठिनाइयों से लड़ता है। किसी से सहायता की अपेक्षा नहीं करता है ।ऐसा संयम जी उस बच्चे में देखा था वह आज भी बुढ़ापे की देहरी पर कायम है। समय समय की बात है परिस्थितियां मनुष्य की सबकुछ सिखा देती हैं। शायद इसी कारण वह फौलाद बनकर जीवन के संग्राम में उतर पड़ा है। कभी कभी उसकी जिजीविषा देख ईर्ष्या भी होती है।                       


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