Mohan ITR Pathak

Tragedy

4.6  

Mohan ITR Pathak

Tragedy

पृथ्वीलोक की सैर

पृथ्वीलोक की सैर

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" आजकल मृत्युलोक में ये सन्नाटा क्यों है?न गाड़ियों की गड़गड़ाहट, न रेलगाड़ी की आवाज,न बच्चों का शोर और न किसी मंडी में होने वाला शोर शराबा।सब कुछ शान्त।लोगो की भीड़ भी कहीं दिखाई नहीं दे रही। कहां गए सब लोग।खैर जो भी हो। इन लोगो के अचानक चले जाने से पेड़ पौधों को नया जीवन मिल गया है। पक्षियों का स्वछंद विचरण होने लगा है।हवा में फैली जहरीली गैसों के कारण छाई मर्मांतक पीड़ा कम हो गई है।वातावरण में निर्मलता आ गई है। सबसे बड़ी बात हम अप्सराओं को मृत्युलोक में विचरण करने का अच्छा अवसर है।" मृत्युलोक में ऐसा सन्नाटा देख देवलोक से आ यी एक अप्सरा ने दूसरी अप्सरा से कहा।


दूसरी अप्सरा ने भी महसूस किया वास्तव में यह परिवर्तन इस धरती लोक में कैसे संभव हो गया।मेरी तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा है।भीड़ में चलने वाला मानव अकेले अकेले चल रहा है।न बातचीत न कोई उत्सव।अचानक कहां चले गए सब के सब मनुष्य। सबसे पहले जाने की अफरा तफरी नहीं नहीं दिखाई दे रही है। सड़क दुर्घटनाएं भी नहीं हो रही हैं।मुझे लगता है हमें मृत्युलोक की इस हालत के बारे में तुरन्त स्वर्गलोक में बताना चाहिए।      


" अरे ये काम तो स्वर्गलोक के मीडिया प्रभारी मुनिश्रेष्ठ नारद जी का है।उन्हें ही सूचना देने का अधिकार है।हमारी बात को कोई मानेगा भी नहीं। अब तक तो नारदजी को यह सूचना स्वर्गलोक में दे देनी चाहिए थी। मुझे तो लगता है नारदजी को आजकल स्वर्गलोक को कवर करने में ही मुसीबतें आरही हैं।शायद कई दिनों से उन्हें मृत्यु लोक आने का अवसर ही नहीं मिला हो।चलो जल्दी यह सूचना स्वर्गलोक पहुंचा दें।"        

"अभी थोड़ी देर रुको ।आजकल यहां की नैसर्गिक सुंदरता देखने लायक है।फिर ऐसा सौंदर्य देखने को नहीं मिलेगा।देखो पेड़ पौधों की हरियाली कितनी साफ स्वच्छ है ।धूल का एक कण कहीं दिखाई नहीं देता।"                      

"नारायण नारायण" की आवाज सुनकर दोनों अप्सराएं चौंक गई ।

"मुनि जी की जय हो। हम आपको ही याद कर रहे थे। देखिए पृथ्वीलोक में आजकल बड़ी शांति छाई है।ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। आपको पता होगा ये पृथ्वी के निवासी कहां चले गए।ऐसा लगता है सब के सब किसी अन्य ग्रह पर चले गए हैं।नारद जी ने कहा, नारायण नारायण।ऐसा कुछ नहीं है। आजकल पृथ्वीलोक के लोगों पर बड़ा संकट आया है।किसी अन्य ग्रह के एक छोटे से जीव के कारण सब संकट में हैं। ऐसा छोटा सा जीव है जो दिखाई भी नहीं देता है। उसी के डर से सब अपने अपने घरों में बंद हैं।यह क्षुद्र जीव ऐसा आक्रमण करता है एक साथ कई लोगो की जान ले लेता है। प्राचीन काल के असुरों से भी भयानक है।परन्तु अभी तक किसी ने देखा नहीं है।परन्तु आक्रमण लगातार जारी रखे हुए है। यह एक विशेष प्रकार के कवच धारी को अपना शिकार नहीं बना पाता है। जो लोग बाहर दिखाई भी से रहे है तो वे उसी विशेष प्रकार के कवच को धारण किए हैं। आप लोग भी जल्दी से स्वर्गलोक पहुंचो।कहीं वह हम पर भी हमला न कर दे।स्वर्गलोक के होके भी पृथ्वीलोक के जीव से डर कैसा। "          


" ये पृथ्वी के लोग भी कैसे तुच्छ जीव से डरे हैं।जरूर कोई मायावी दानव होगा। हमने तो सुना था यहां के मानव ने बहुत तरक्की कर ली है। अपने रहने के लिए दूसरे ग्रह की भी खोज कर ली है तो क्या सभी उस नए ग्रह में ही तो नही चले गए हैं। सागर की तह से लेकर जमीन के पाताल लोक तक खोज कर ली है। एक से बढ़कर एक दिव्य अस्त्र की खोज कर चुके हैं।तब भी उस तुच्छ जीव से डरे हैं।बड़ी हंसी आती है इनकी प्रगति पर।"    

नारद जी ने कहा, "मुझे पता चला है इस दानव को खुद मानव ने ही पैदा किया है। अब यह मानव की ही हत्या करने में लगा है। ये मानव भी अजीब प्राणी है अपनी मौत का सामान खुद ही तैयार करने में लगा है।"                    

" नारायण नारायण।पृथ्वी लोक के सभी सिद्ध पुरुष इस सूक्ष्म जीव से बचने का उपाय खोजने में लगे हैं।बाकी लोग बंद कमरों में बैठे इन सिद्ध पुरुषों के द्वारा बताए अपयो का अनुसरण कर रहे हैं।दूसरा कोई उपाय भी उनके सामने नहीं है। सुना है जिनपिंग नाम का कोई सिद्ध पुरुष है जिसने अपने तपोबल से इस दानव को पैदा किया है।किन्तु नियंत्रण से बाहर हो जाने के कारण इस दानव ने सबसे अधिक हानि उसी सिद्ध पुरुष के लोगों को पहुंचाई है। अब वह पूरे पृथ्वी लोक में उत्पात मचाने में लगा है। दूसरे सिद्ध पुरुष हैं तरंप जो इस दानव को मारने के लिए विष तैयार करने में लगे हैं। तीसरे सिद्ध पुरुष हैं मद्दी।जो वैज्ञानिक विधियों से अधिक विश्वास प्राचीन तरीकों पर करते हैं। अब देखना है इस दानव को मारने के लिए कौन अवतार लेता है ऐसा लगता है इन तीनों सिद्ध महापुरुषों में से तीसरे महापुरुष का तरीका इस सूक्ष्म किन्तु भयानक दानव से मुक्ति का मार्ग ही उचित जान पड़ता है क्योंकि पहले के हाथ से दानव अनियंत्रित हो चुका है अनियंत्रित होने से पूर्व उस महापुरुष ने उससे वचन ले लिया कि वह अब उनके  लोगों को नुकसान नहीं पहुचायेगा। और दूसरे महापुरुष जो अपनी वैज्ञानिक प्रगति का डंका पूरे पृथ्वीलोक में पीटते हैं,परन्तु उनकी पोल खुलती नजर आ रही है। ऐसे में लगता है तीसरे महापुरुष के पास प्राचीन पोथियों में कोई छिपा रहस्य मिल जाए।नालंदा ,तक्षशिला की शिलाओं में कहीं छिपा रहस्य इस विपदा में काम आ जाय।"


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