Mohan ITR Pathak

Romance

3.4  

Mohan ITR Pathak

Romance

तुम कितनी सुन्दर हो।

तुम कितनी सुन्दर हो।

16 mins
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चांद सी महबूबा हो ऐसा हमने कब सोचा था। तुम बिल्कुल वैसी ही जैसा हमने सोचा था। इस गीत को गुनगुनाते हुए राजेश ने माला के गले में अपनी बांहों की माला डालते हुए कहा, तुम्हारी इस सुंदरता ने मुझे तुम्हारा गुलाम बना दिया है। माला ने राजेश के हाथों को अलग करते हुए कहा था, हम बखूबी समझते हैं आपका व्यंग्य। आपको हमारा रूप पसंद नहीं था तो किसी और को पसंद कर लेते। हमें भगवान ने जो रूप दिया हम उसके लिए उसका शुक्रिया अदा करते हैं। हम जानते हैं गोरा रंग आपकी कमजोरी है। हमारा सांवलापन आपको अच्छा नहीं लगता है। हमारी प्रशंसा में दो शब्द नहीं कह सकते तो कम से कम व्यंग्य तो न किया करो। ऐसा कहते हुए माला की आंखों में आंसू की बूंदें ढलक आयी थी।                        राजेश ने माला के आंसुओं को अपने हाथों के कोमल स्पर्श से पोंछते हुए कहा, सुंदरता का मतलब सिर्फ रूपवान होना ही नहीं है। किसी के आकर्षक चेहरे को देखकर ही सौंदर्य बोध करना सबसे बड़ी चूक है। असली सुंदरता गुणवान होने में है। वह दिखाई तो नहीं देती लेकिन बाह्य सुंदरता से कहीं अधिक यही आंतरिक सुंदरता होती है। प्रसिद्ध दार्शनिक सुकरात कहा करते थे, मनुष्य को हमेशा अपने आंतरिक सुंदरता की चिंता होनी चाहिए। यदि वह सुन्दर है तो उसे अपने चरित्र और व्यवहार से उसे कायम रखने की कोशिश करनी चाहिए। तभी उस सुंदरता का मूल्य है। और यदि वह सुन्दर नहीं है तो भी उसे अपने व्यवहार और कार्यों से अपना मन बनाए रखने की कोशिश करनी चाहिए। माला मैं सत्य कह रहा हूं। शुरू शुरू में अवश्य ही सुंदरता जो बाहरी होती है उसे महत्व देता रहा किन्तु बाह्य सुंदरता चार दिन की चांदनी की तरह होती है जबकि आंतरिक सुंदरता सदाबहार होती है। उस पर बढ़ती उम्र का प्रभाव नहीं पड़ता है। तुम्हारी सुंदरता को लेकर शुरू शुरू में मैंने तुम्हें बहुत बुरा भला कहा जो मेरी कमजोरी थी। मेरी मां ने मुझे बहुत समझाया था।                    

राजेश के पिताजी का कपड़े का व्यवसाय था। सेठ गोबिंद दास शहर के नामी व्यापारियों में जाने जाते थे। कपड़े के थोक व्यापारी होने के कारण उनका व्यापार छोटे बड़े कई शहरों तक फैला था। राजेश सेठ जी का इकलौता बेटा था। किसी चीज की कोई कमी नहीं थी। बड़ा होकर राजेश भी अपने पिताजी के धंधे में हाथ बंटाने में लग गया। सेठ गोबिंद दास बहुत खुश हुए कि उनका बेटा उनके कम को समझने लगा है। वे अपने बेटे को बिज़नेस के सारे तौर तरीके और दांव पेंच सीखने लगे। राजेश थोड़े ही समय में अपने पिताजी की तरह ही एक कुशल हुआ व्यापारी बन गया। धीरे धीरे राजेश ने सर बिज़नेस संभाल लिया। सेठ गोबिंद दास अपने बेटे की इस कब्लियत से बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने अब सर बिज़नेस अपने बेटे के हाथों में सौंप दिया। खुद कभी कभी ही दुकान पर बैठ जाते। राजेश की मां धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी। दिन भर घर का काम संभालती। जो समय बच जाता उसे भागवत भक्ति में लगा देती। राजेश के जिम्मेदार होते ही राजेश की मां को उसके विवाह की चिन्ता होने लगी। जैसा कि स्वाभाविक ही है हर मां की अपने जवान बेटे को शादी के जोड़े में देखने की होती है। एक दिन राजेश की मां ने सेठ जी से कहा, सेठ मुरारी लाल जी की बेटी बड़ी हो गई है। उनसे बात कीजिए।

राजेश का विवाह करवा देते तो मुझे भी घर के कामों से मुक्ति मिल जाती। बुढ़ापे में अब काम धंधा होता भी नहीं है। राजेश की उम्र भी हो गई है। पच्चीस साल पूरे हो गए हैं।  पिछले दिनों आपने और मुरारी लाल जी ने आपस में तय भी कर लिया था कि उनकी बेटी माला और राजेश का रिश्ता पक्का समझो। माला अच्छी संस्कारी लड़की है। सुशील है। अन्य लड़कियों की तरह किसी प्रकार का अवगुण उसमें नजर नहीं आता है ऐसी सुशील लड़की हमारी बहू हो तो सोने पे सुहागा होगा। थोड़ी सांवली है । दिखने में सुंदर नहीं तो कुरूप भी नहीं है। सामान्य है। एक दिन सेठ जी ने राजेश के विवाह को लेकर बात शुरू की तो राजेश ने कहा था इतनी जल्दी क्या है। अभी थोड़ा बिज़नेस ठीक से संभाल लूं तब देखा जाएगा। सेठ जी के मुरारी लाल जी की बेटी माला का नाम लेते ही राजेश भड़क गया था। उससे तो नहीं। शक्ल की न सूरत की। राजेश की मां ने बहुत समझाया था बेटा बाहरी रूप दो दिन का होता है। आंतरिक गुण हमेशा के होते हैं। उम्र ढलने पर भी उनकी कीमत होती है। माला इतनी बुरी भी नहीं है । राजेश ने उस वक्त इस रिश्ते को स्वीकार नहीं किया तो सेठ जी ने अपने दिए वचन का हवाला देते हुए अंतिम बार अपने बेटे राजेश को समझाते हुए कहा था, बेटा उसके गुणों को देख हमने उन्हें वचन दिया है। राजेश ने नाराज होते हुए कहा था आपने वचन दिया, आप जानो। मैंने तो नहीं दिया।       

उधर राजेश और पूजा एक दूसरे से प्यार करने लगे थे। पूजा दूसरे शहर की रहने वाली थी। रूप सौंदर्य में किसी अप्सरा सी लगती थी। गौर वर्ण संगमरमर की मूर्ति की तरह तराशी हुई जान पड़ती थी। राजेश उसके इस रूप का दीवाना हो गया था। लचीली कमर, बलखाती चाल, बड़ी बड़ी आंखों में नीलाभ प्रकाश का स्फुरण, उन्नत उरोज, गुलाब की पंखुड़ियों से होंठ और रक्ताभ कपोल सब कुछ सांचे में ढला सा था। जो भी एक बार देख लेता पूजा का हो जाता। ऐसे ही राजेश भी इस अप्रतिम सौंदर्य की प्रति मूर्ति को अपना दिल दे चुका था। बिज़नेस के सिलसिले में अक्सर पूजा के शहर जाने का अवसर राजेश को मिलता ही था तो उनका प्यार परवान चढ़ता गया। राजेश ने पूजा के बाह्य रूप से आकर्षित हो उसकी चरित्र की गहराइयों को नहीं पढ़ा था। उसने उसके साथ जीने मरने की कसमें खाई थी। वह उसे छोड़ माला से कैसे विवाह कर सकता है।                            

मुरारी लाल जी को जब यह पता चला कि राजेश ने माला के सांवलेपन के कारण विवाह के लिए मना कर दिया है तो वे बहुत दुखी हुए। आज तक उन्होंने माला के विवाह की कहीं बात भी नहीं की थी। उन्हें अपने मित्र सेठ गोबिंद दास पर भरोसा था। वे बेटी की चिन्ता से टूट गए। बहुत जगह उन्होंने कोशिश की परंतु माला के सांवले रंग के कारण कहीं बात नहीं बन रही थी। माला को भी अब अपने कारण अपने माता पिता को शर्मिंदित होते देखना अच्छा नहीं लग रहा था। उसने विवाह न करने का निर्णय कर लिया था। उसने अपने जीवन को समाज कल्याण के कार्य के लिए समर्पित कर दिया था । उसने समाज के परित्यक्त महिलाओं के पुनर्वास के लिए एक संस्था का निर्माण किया । उसमें उसने समाज की ऐसी महिलाओं को आत्मनिर्भर होना सिखाया। उन महिलाओं की मदद से उसने अपने संस्थान में फलों से विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाने उन्हें बाजार में बेचने का काम शुरू किया। धीरे धीरे उसके काम में कतई, बुनाई, सिलाई और स्थानीय रोजगार से जुड़े काम शामिल कर लिए। उसकी मेहनत और सूझ बूझ से उसकी संस्था शहर की ही नहीं बल्कि पूरे जिले की प्रसिद्ध संस्था बन गई। इस प्रकार उसने अपने जीवन को परोपकार के काम में लगा लिया था। सरकार भी अब उसके इस कार्य के लिए प्रोत्साहित कर रही थी । संस्था द्वारा निर्मित मल के विपणन की जिम्मेदारी अब सरकार ने के ली थी। इस प्रकार अब माला को अपनी संस्था के लिए अधिक समय मिलने लगा । भारत सरकार ने उसके निस्वार्थ काम से प्रेरित हो कर पुरस्कृत किया। माला का नाम अब शहर में ही नहीं पूरे देश में प्रसिद्ध हो गया था। बड़े बड़े अधिकारी , व्यापारी तथा राजनीतिक लोग अपने स्वार्थ के लिए माला को अपनी जीवन संगिनी बनाना चाह रहे थे। किन्तु माला ने स्पष्ट शब्दों में सभी का प्रस्ताव ठुकरा दिया था।  

         

उधर राजेश के पिता जी की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। राजेश ने पूजा से विवाह कर लिया था। पूजा अपनी विलासी आदत के कारण प्रायः घर से बाहर ही रहती। क्लब, डांस, पार्टी और मौज मस्ती के अलावा उसे कुछ नहीं सूझता था। अब उसके पास अपने पति की अपार दौलत थी। वह आए दिन नई नई फरमाइश रखती। राजेश उसकी अनुचित मांग को भी पूरा करता जा रहा था। यहां तक कि उसने अपने व्यापार की पूंजी भी धीरे धीरे खर्च कर दी। पूजा नशे की आदी हो गई थी। डर रात रात तक घर से बाहर रहना उसकी हालत आदतों में शुमार होता जा रहा था। राजेश की मां ने राजेश से बहू के इस प्रकार की हरकतों के संबंध में बात की तो राजेश ने एक दिन पूजा से यह सब नहीं करने के लिए दबाव बनाया। उसने पूजा को समझाते हुए एक शिष्ट बहू की तरह व्यवहार करने के लिए समझाया। राजेश की इन आदर्शवादी बातों का पूजा पर कोई असर नहीं हुआ। उल्टा वह राजेश के साथ मारपीट करने लगी। शादी के दो साल में ही राजेश का बिज़नेस घाटे में चलने लगा। उसे अपने व्यापार की संभालने और पूजा की अनुचित डिमांड पूरी करने के कारण बहुत कर्ज हो गया। यहां तक कि उसे अपना घर भी गिरवी रखना पड़ गया था। राजेश की मां यह सदमा सहन नहीं कर पाई और एक दिन हृदय घट के करें उसकी मृत्यु हो गई। व्यापार में लगातार घाटे के कारण बाजार में उसकी साख काम होने लगी थी। अब तो उसके सामने खाने की भी कमी महसूस होने लगी। पूजा की बढ़ती फरमाइश के करें दोनों में रोज विवाद होता था। पूजा की सलाह पर ही उसने अपना घर और दुकान दोनों बेच दिए कुछ दिन आराम से रहने पर फिर घर में तंगी आने लगी। राजेश ने बहुत जगह कम खोजने की कोशिश की मगर उसे कहीं कम नहीं मिलता था। उसकी पत्नी पूजा के कारण सभी उसे है दृष्टि से देखते थे। सत्य कहा है घर बंटा है नारी से और घर उजाड़ना भी नारी से ही है। नारी का एक सुलझा हुआ कदम घर को स्वर्ग में परिवर्तित कर सकता है तो एक अनुचित कदम बने बनाए घर को नरक बनने में डर नहीं लगती है।         

जब पूजा को लगा कि अब राजेश के पास कुछ नहीं बचा तो उसने उसे दूध में पड़ी मक्खी की तरह अपनी जिंदगी से अलग कर दिया । राजेश को अब अपनी भूल पर पश्चाताप हो रहा था । वह सोच रहा था मां ठीक कहती थी बाह्य आकर्षण थोड़े दिनों का होता है। असली सुंदरता अन्दर की सुंदरता होती है। बाह्य आकर्षण प्राकृतिक होता है। एक समय पर अपने आप मुरझाने लगता है। उसकी प्रशंसा के कसीदे चार दिन तक ही गधे जा सकते हैं। किन्तु आंतरिक सुंदरता ही वास्तविक सुंदरता होती है। उम्र ढलने पर भी लोग उसकी प्रशंशा करते नहीं थकते हैं। पूजा के मोह जाल में फंसने के कारण राजेश ने अपनी हंसती खेलती जिंदगी खत्म कर दी थी। अब उसके जीवन में निराशा के सिवाय कुछ नहीं बचा था। उसे अपने आप से घृणा हो रही थी। माला के सांवलेपन की तौहीन का दण्ड उसे मिल रहा है। किसी के बाह्य रूप का मजाक नहीं बनना चाहिए। रंग रूप भगवान प्रदत्त होते हैं। व्यक्ति को उसी को अपने रंगो से सजाना होता है। यह सजाना व्यक्ति के गुण त्याग , तपस्या, परोपकार, करुणा, मानवता, सम्मान और सहानुभूति के रंगों से संभव है। मेहनत इन सबसे अधिक महत्वपूर्ण साबित होती है। राजेश को पता था माला ऐसे ही असहाय लोगों को रोशनी दिखाने का को कम कर रही थी वह संसार के सभी कामों में श्रेष्ठ है। उसे विश्वास था उसे भी उसकी इस संस्था के माध्यम से रोशनी मिल सकती है । किन्तु उसके सामने जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। जाए भी किस मुंह से। जिंदगी के जिस मोड़ पर राजेश ने माला का साथ देने से इनकार कर दिया था आज स्वयं उसी मोड़ पर खड़ा होकर कैसे उससे मदद की आशा कर सकता है। यह उसके जमीर की मंजूर नहीं हो रहा था। आज मां होती तो अवश्य ही कोई न कोई रास्ता खोज लेती। मां की मृत्यु का कारण वह स्वयं था। बहू के व्यवहार से मां बहुत दुखी रहने लगी थी। वर्षों की तपस्या से कमाई इज्जत को बहू ने तार तार कर दिया था। वह इस असहय दुख को सहन नहीं कर पाई थी।  इन्हीं खयालों में डूबा राजेश सड़क के बीच से गुजर रहा था। उसे अपनी सुध नहीं थी। गए कपड़ों में ठिठुरती ठंड में न तो उसके तन पर स्वेटर था न पांवों में जूते। अपनी ही धुन में बढ़ रहा था। मुरारीलाल जी बार बार हॉर्न बजाए जा रहे थे मगर राजेश को कुछ भी आभास नहीं हो रहा था। उन्हें लगा कोई पागल है। गाड़ी रोककर बाहर आए देखा तो हक्के बक्के रह गए। शहर के नामी सेठ गोबिंद दास जी का बेटा राजेश इस हालत में। विश्वास नहीं हो रहा था। कुछ बाते सुनी जरूर थी कि व्यापार में घाटे के कारण राजेश ने अपनी दुकान बेच दी थी। उसकी यह दशा देख उनका मन दया से भर गया था। उसे पकड़कर गाड़ी में बैठकर अपने घर ले आए। राजेश को घर में बैठाते हुए उन्होंने अपनी पत्नी रेणु को चाय के लिए कहा। थोड़ी देर में रेणु चाय लेकर आ गई। रेणु ने देखा तो वह घृणा भाव से भर गई। उसने अपने पति को कहा, क्या बला ले आए हो। यह वही राजेश है जिसके कारण हमारी बेटी माला कुंवारी ही रह गई। हम कैसे भूल सकते हैं। जिस दिन राजेश के पिताजी ने अपने बेटे से माला के विवाह करने से मना कर दिया था। लाख कोशिश के बाद भी हम अपनी लाडली के लिए योग्य वर नहीं खोज पाए थे। मुरारीलाल जी ने रेणु को समझते हुए कहा, आज परेशानी में है । ऐसे समय में हमें उसकी मदद करनी चाहिए। आखिर राजेश मेरे परम मित्र सेठ गोबिंद दस जी का बेटा है। भूल गई अपने दिन जब इस शहर में हम अजनबी थे। तब सेठ जी ने ही हमें अपना आश्रय दिया। उनकी बदौलत ही इस अप्रचित शहर में कुछ करने लायक बने। आज जो भी में सम्मान है वह सेठ गोबिंद दास जी की बदौलत है। इसमें उनका योगदान हमें नहीं भूलना चाहिए। आज राजेश परेशानी में है जिस प्रकार सेठ गोबिंद दास हमारे संकट मोचन बने वैसे ही हमें भी राजेश का संकट मोचन बनना होगा। यह संसार है यहां को कुछ है यहीं चुकाना होगा है। कल सेठ जी ने किसी का किया चुकाया होगा। आज हमारी बड़ी है।   

           यह सुनकर रेणु ने कहा, वह सब तो ठीक है। अभी माला आती होगी। राजेश को देखना उसके जख्म की हरा करने के समान होगा। उसने अपनी मेहनत और लगन से खुद को व्यस्त रखा है। अपने दुख भूलकर वह औरों के दुख के साथ जीना सीख गई है। वह राजेश को भूल भी गई है। मैं तो कहती हूं राजेश को वहीं छोड़ आइए। आपको अपनी बेटी की जिंदगी की खुशियां नागवार लगती है तो ठीक है। राजेश ने मुरारीलाल और उनकी पत्नी के बीच वार्तालाप सुन लिया था। इसलिए चुपके से वहां से निकल लिया था। मुरारीलाल के कमरे में आते ही देखा राजेश जा चुका था। मुरारीलाल जी अपनी पत्नी से इस बारे में जोर जोर से विवाद करने लगे थे। वे कह रहे थे मुसीबत में इंसान ही काम आता है। अपने किए को भुलाकर जो दुश्मन की मदद करता है वहीं सच्ची इंसानियत है। इस बुढ़ापे में किसी की सेवा करने का मौका मिला था। ऐसे अवसर बार बार नहीं आते हैं। अपने पिताजी को जोर जोर से चिल्लाते सुनकर माला ने कमरे में प्रवेश करते ही कहा, पिताजी क्या बात आज आप माताजी से बड़ी जोर जोर से बोल रहे हैं। आपकी तबियत तो ठीक है ना। असल में माला ने कभी भी अपने पिताजी को इतनी जोर से चिल्लाते नहीं सुना था। विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में भी वे सामान्य व्यवहार करते थे। राजेश के द्वारा मुझे ठुकरा दिए जाने पर भी वे सामान्य ही रहे थे जबकि मां कई दिनों तक बड़बड़ाती रही। क्यों न बड़बड़ाती मां तो मां होती है वह अपनी लाडली का जीवन उजड़ते कैसे देख सकती थी। देख तो पिताजी भी नहीं सकते थे किन्तु अपने पुरुष होने का दंभ उन्हें अपनी भावनाओं को प्रकट करने की इजाजत नहीं दे रहा था। मां ने राजेश के बारे में सारी बात माला को बताई तो वह भी दुखी हुई। उसने मां से कहा मां मेरी संस्था ऐसे ही असहाय लोगों की ही तो मदद करती है। उन्हें वहां अपने पांवों पर खड़ा होना सिखाया जाता है। राजेश तो खानदानी व्यापारी है । व्यापार उसकी रग रग में समाया है। आज परिस्थितियों का शिकार है तो उसकी सहायता अवश्य करनी चाहिए। मैं जानती हूं उसके व्यवहार के कारण आप दुखी हैं। इसमें राजेश का कोई दोष नहीं। सब कुछ परिस्थितियों के बस में है। उसे क्षमा कर दो। माला की यह बात सुनकर मुरारीलाल को अपनी बेटी पर गर्व हो रहा था। जिसने उसके सांवलेपन का मजाक बनाया था वह उसी की मदद करने को कह रही थी। आज माला का नाम पूरे शहर में सम्मान से लिया जाता था। उसने पिताजी से कहा, चलिए पिताजी राजेश को ढूंढ लेते हैं अभी दूर नहीं गया होगा। मुरारीलाल और उनकी बेटी राजेश को ढूंढते हुए बाजार के एक व्यस्त चौराहे पर पहुंचे। वहां उन्हें राजेश खड़ा दिखाई दिया। गाड़ी रोककर वे राजेश के पास पहुंचे और उसे अपने साथ चलने के लिए कहने लगे। मैं रेणु की ओर से माफी चाहता हूं। उसने जो भी कहा उन शब्दों को हृदय से मत लगाओ। राजेश ने कहा, नहीं अंकल जी आंटी ने जो कहा सत्य ही कहा। मुझे अपने किए का फल मिलता ही चाहिए था , जो परमात्मा ने दे दिया है। मैं अपना सबकुछ खो चुका हूं। मुरारीलाल जी राजेश की गाड़ी तक ले आए। परन्तु राजेश ने स्पष्ट शब्दों में आने से इनकार कर दिया तो माला ने गाड़ी के अंदर से कहा, अपने लिए न सही हमारे लिए गाड़ी में बैठ जाइए। मेरा मतलब हमारी संस्था को आप जैसे कर्मठ व्यापार में निपुण युवक की आवश्यकता है। आप हमारी संस्था द्वारा उत्पादित उत्पादों को बाजार प्रदान कर सकते हो। इससे हमारी संस्था की मदद हो जाएगी । जिससे कितने ही असहाय लोगों का भला हो जाएगा। माला की बातों से राजेश को लगा अपने पापों का प्रायश्चित करने का यही सही मौका है। अपना शेष जीवन सेवा में अर्पित करना ठीक रहेगा। मुरारीलाल जी ने जोर देते हुए कहा, क्या सोच रहे हो बैठो। घर जाकर ही बातें करेंगे। तुम्हारी आंटी तुम्हारा इंतजार कर रही होंगी।  राजेश तब तक खुद को संभाल चुका था । पहुंचते ही उसने आंटी से क्षमा प्रार्थना की। तत्पश्चात भोजन कर आराम करने चला गया। वह अपनी सोच पर लज्जित था। जिस माला को उसने पूजा के लिए छोड़ा था आज वही उसका सहारा बन खड़ी थी। उसे लगने लगा था जोड़े भगवान के घर से तय होते हैं। हम कितनी ही कोशिश करें अपनी इच्छा के जोड़े नहीं बना सकते हैं। अपने अतीत में खोए खोए कब उसकी आंखें लग गई उसे पता ही नहीं चला था। रात डर से सोने के कारण सुबह देर से ही उठा था। आंटी तब तक नाश्ता तैयार कर चुकी थी। मुरारीलाल जी ने कहा राजेश जल्दी से तैयार हो जाओ। तुम्हें माला के साथ जाना है। माला उसे अपनी गाड़ी में बैठाकर अपने संस्थान तक ले गई। उसे वहां के लोगों से मिलकर बड़ी खुशी हुई। माला ने उसे काम समझ दिया था। राजेश ने मन लगाकर काम किया। उसकी मेहनत से संस्था का काम आसान हो गया। जिस तैयार सामान को बेचने में महीनों लग जाते थे अब दिनों में बिकने लगा। उससे संस्थान के लोगों को सीधा लाभ पहुंच रहा था। अब तो लोग स्वयं माल लेने पहुंच रहे थे। राजेश की इस सफलता ने माला को उसके नजदीक ला दिया था। न जाने कब दोनों एक दूसरे को चाहने लगे थे। एक दिन मौका देख राजेश ने माला से अपने अनजाने पूर्व व्यवहार के लिए क्षमा चाहते हुए अपना प्रणय निवेदन रखा। उसने कहा था मैं आपके योग्य तो नहीं हूं किन्तु बनने की कोशिश कर सकता हूं। मुझे एक मौका दो । माला इनकार मत करना। उखड़े हुए इस पौधे को आपने सहारा देकर पुनः स्थापित किया है। अब इसे सूखने नहीं देना। मुझे अपनी गलतियों की सजा मिल चुकी है। माला ने यह बात अपनी मां को बताई तो वह बहुत खुश हुई। एक मां के लिए इससे बड़ी खुशी और हो ही नहीं सकती कि उसकी बेटी का घर बस जाय। उसने अपने पति से कहकर शुभ मुहूर्त में माला और राजेश का विवाह करा दिया। आज राजेश और माला की सालगिरह थी। घर में खुशी का माहौल था। तैयारियां चल रही थी। राजेश ने माला की नीली आंखों की सुंदरता में गुनगुनाते हुए उसके कान में कहा था , चांद सी महबूबा हो ऐसा हमने कब.............  


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