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Bhawna Kukreti Pandey

Abstract

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Bhawna Kukreti Pandey

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अंट शंट

अंट शंट

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जिंदगी मशीनी हो गयी है, एक पल की फुर्सत नहीं रहती कैसे कहीं जाऊँ, मिलू-जुलु।अभी ये भी बाकी है वह भी बाकी है ।काश 10 हाथ 10 सर होते। यार ! ये सर कंप्यूटर होता। कितना बज गया ? ये अभी तक नहीं हुआ। टेम्पो भरे हुए क्यों आ रहे ? काश टेलीपोर्टेशन की क्षमता होती,नहीं अब और ट्रेनिंग नहीं ...ऐसे ही जाने कितने वाक्य मेरी जुबान पर चढ़ चुके हैं। घर पर कोई मदद किसी रूटीन के लिए मिलती भी हो तो भी शाम तक दीमाग इतना थक जाता है कि किसी समय ,कोमल मन को भाने वाली चीजें-बातें जब सामने उतराती रहती है और आंखे बेबस, बोझिल हो कर बस बंद-खुल, बंद-खुल इसी में लगी रहती है।

इस फोन पर वॉइस कमांड का ऑप्शन न होता तो जाने क्या होता। फोन भी तो जाने अब कहाँ कहाँ पड़ा रहता है।ढूंढने को मेरा नंबर डायल होता है.. "प्लीज कॉल भावना"। तब कहीं दूर से मद्धिम जलतरंग की आवाज सुनाई (रिंगटोन) आती है ,फिर "है कहीं आस पास" इस भाव के साथ वापस लुढ़क जाता है मन मुंदती आंखों में।

सपने भी अजीब ही आने लगे हैं। सड़क पर खड़ी हूँ ...रजिस्टर ,सब्जियां, दवाइयों के पैकेट्स लिए । एक बस आ रही है, भाग रही हूँ। उसी ओर मगर छूट जाती है फुट जाती हैं शीशियां फटकर दवाइयो के पैकेट से।सड़क कहीं ऊंचे से नीचे धसती हुई गिरती है और में धक्क से ...और आंख खुल जाती है। शाम सीधे सुबह में खुलती है रात को मानो पलमें निगल गयी हो। अभी तो सोये थे यार और सुबह भी हो गयी!

फ़ोन ,फिर फोंन कहाँ है, कोई ढूंढ दो प्लीज। कोई कौन ? खुद मरो स्वर्ग देखो। आज समय से काम भेजना है स्कूल के बच्चों को, काम भी आया होगा ,जांचना भी है। डाक, डाक देखूँ फटाफट कोई नई सूचना तो नहीं मांगी। मांगी गई है.. रेजिस्टर तो स्कूल में है, वहां जा कर डेटा लेना फिर भेजना पर अभी नहाना, पूजा, नाश्ता, सहेजना, बाकी है फिर अब दोपहर का खाना,बेटे की क्लास ,ट्यूशन फिर अरे शाम भी हो गयी!!! अभी तो सुबह शुरू हुई थी !!!!! यार आज के जरूरी कितने काम बाकी रह गए हैं।देखो कपड़े भी नहीं धूल पाए। बिल पेंडिंग हो रहे हैं, गैस..उफ्फ गैस सिलिंडर भी तो खत्म होने वाला है।राशन में कम पड़ता समान..क्या क्या था? कुछ था न! गेस्ट भी कह रहे थे विजिट को ,किस दिन का प्लान था उनका? हे ईश्वर क्या है ये ? ये ..ये सब झमेले...मैं गृहणी ही अच्छी थी ।

सुबह दोपहर शाम अपने अपने घंटों के साथ होती थी।रात तक थक कर चूर होते थे पर नींद इतनी गहरी की भले जल्दी सुबह उठना होता लेकिन कितने तरोताज़ा से होते थे।घर मे सबकी फरमाइशें पूरा करने में कितना रस मिलता था।गली मोहल्ले से लेकर नाते रिश्ते शादी ब्याह जन्मदिन और वो सजना संवारना।नाहक उलझना इनसे।और अब ...बस खुद पर बंधी घड़ी बने हुए हैं। कोल्हू के बैल से घूमते जा रहे है ,तेल निकल रहा है पर ये चक्कर खत्म होने का नाम ही नहीं लेते,कितनी सरसों है यार काम की।

झल्ला जाती हूँ लेकिन फायदा फिर भी क्या ,करना तो खुद ही है।न समय बढ़ेगा न काम घटेगा।सब यूँ ही चलता रहेगा। ये लिखना भी ऊंघते ऊंघते वॉइस कमांड से हो ही जाता है ,आज भी हो ही गया । पोस्ट कब होगा ? अरे जब होगा तब होगा । क्या तनाव लेना, बाकी बेटा इतना तो कर ही देगा जब गेम से बोर होगा। वो मोनोलॉग पोस्ट कर देगा। अब बस हो गया लिखना।


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