Rashmi Sinha

Tragedy

2  

Rashmi Sinha

Tragedy

अंतिम पड़ाव पर ऐसा ‌क्योंॽ

अंतिम पड़ाव पर ऐसा ‌क्योंॽ

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उत्सव एक जिम्मेदार पुलिस अधीक्षक है। करोना काल में लाक डाउन की स्थिति में शहर की व्यवस्था देखने के लिए किसी भी समय शहर के सड़कों पर निकलना पड़ता है। आज सुबह उत्सव शहर में गाड़ी से निकला तभी उसने देखा कि सड़क किनारे एक बुजुर्ग व्यक्ति बैठें हैं। उत्सव ने ‌नजदीक जाकर देखा अधिक उम्र के बुजुर्ग व्यक्ति जिनकी बाल, दाढ़ी बढ़ी हुई है , पास में एक ‌थैला रखा है। मन में शंका हुई और दर्द से "आह निकला कि एक और बुजुर्ग पर अत्याचार।" क्योंकि इस शहर इस तरह के 8 _ 10 घटना घटी है। अभी कोरोना वायरस खतरनाक रूप से फैला है, इस समय बुजुर्ग व्यक्ति के जीवन को सबसे अधिक खतरा है और उनके बच्चे उन्हें सड़क पर छोड़ दें रहे हैं। आखिर किस खतरनाक मंसूबों के तहत, आखिर क्या सोचकर बाहर छोड़ दिया गया है। कुछ दिन पहले ही एक बुजुर्ग महिला व्हीलचेयर पर सड़क में मिली थी। उससे पहले ही एक बुजुर्ग बदहवास हालत में सड़क पर घूमते मिले खोजबीन करने पता चला कि शहर के प्रसिद्ध जौहरी दुकान के बुजुर्ग है। 

उत्सव ने तुरंत एम्बुलेंस को फोन कर बुलाया। बहुत ही विनम्रता से उत्सव ने कहा कि "दादाजी चलिए घर छोड़ देता हूं। अभी घर से निकलना सही नहीं है।"

बुजुर्ग व्यक्ति ने शंकित और भयभीत नजर से देखा, धीरे से आसमान की ओर सिर उठाकर देखा, मानो‌ ईश्वर से कुछ कह रहे हों। उत्सव ने उनकी आंखों को ध्यान से देखा तो उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। उत्सव दो कदम पीछे खिसक गया और उसके मुंह से अनायास ही निकल गया "दीपक सर" वो इन नजरों को पहचाने में भूल नहीं कर सकता क्योंकि ये नजर ही है जो उसे यहां तक पहुंचाया है। उत्सव ने नौकरी लगने के बाद सर को प्रणाम करने गया था तब वे बहुत खुश हुए थे। उनके बेटे भी अच्छी नौकरी में है मेरा उनसे पहले से परिचय था। उससे एक दो कक्षा नीचे ही पढ़ रहे थे। वे लोग पढ़ने में होशियार और शांत बच्चे थे। इस शहर में स्थानांतरण होने पर मन में मिलने की इच्छा थी पर इस स्थिति में मुलाकात होगी ये नहीं सोचा था। हमारे स्कूल में दीपक सर गणित के अध्यापक थे। शांत, गंभीर, प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी थे। बहुत कम बोलते थे, इसलिए जो भी बोलते असरकारक होता था। हम बच्चों में दीपक सर रोल मॉडल रहे हैं। एक बार हमारे ‌उस्तादों के उस्ताद श्याम भाई की जबरदस्त धुनाई किए थे तब से हुड़दंगी लड़के शांत हो गए। उनमें से एक मैं भी था। दीपक सर हम सब को पुस्तकालय से जोड़कर पढ़ने की आदत डालें और यही अच्छी आदत सफलता की सीढ़ी चढ़ने में मददगार बना। आज उनके बच्चे सीढ़ी चढ़ने के बाद ठोकर मार दिए। एक बुजुर्ग को क्या चाहिए सिर्फ सम्मान और दो सुखी रोटी वो भी नहीं दे सके। सच ही कहते हैं जिस घर में बुजुर्गो के आंसू गिरे वो घर कंगाल है। उत्सव के आंखों के सामने से पूरा सीन गुजर गया। वो थककर उनके बगल में बैठ गया तभी एम्बुलेंस आ गई। उन्हें अस्पताल ले जाया गया जहां डॉक्टर ने दीपक सर को मृत घोषित कर दिया। उत्सव, दीपक सर का पैर छूकर प्रणाम किया। रोते हुए उसने कहा कि "सर आप न करोना से मरे हैं । न ही ‌अनाथ मरे हैं। आपका ये बेटा आपके पास है। और आपके संतान आपका अंतिम संस्कार पूरे विधि पूर्वक करेंगे। मैं जानता हूं यही आपकी अन्तिम इच्छा होगी।"

उनके बेटों ने उनका अंतिम संस्कार किया। उत्सव, दीपक सर के पुण्य तिथि पर वृद्धाश्रम में कुछ दान निश्चित करता है।



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